नई दिल्ली: कर्नाटक को उसका सीएम और डिप्टी सीएम तो मिल गया लेकिन मंत्री मिलने बाकी हैं. 20 मई यानी कल राज्य की राजधानी बेंगलुरु में शपथ समारोह का आयोजन होगा और कर्नाटक के सीएम का ताज सिद्धारमैया के सिर पर सजेगा. वहीं डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम की कुर्सी सौंप दी जाएगी. लेकिन कर्नाटक […]
नई दिल्ली: कर्नाटक को उसका सीएम और डिप्टी सीएम तो मिल गया लेकिन मंत्री मिलने बाकी हैं. 20 मई यानी कल राज्य की राजधानी बेंगलुरु में शपथ समारोह का आयोजन होगा और कर्नाटक के सीएम का ताज सिद्धारमैया के सिर पर सजेगा. वहीं डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम की कुर्सी सौंप दी जाएगी. लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस की चुनौतियां ख़त्म नहीं होती हैं अभी मंत्रिमंडल का गठन एक और समस्या है. आइए जानते हैं वो क्या फैक्टर्स हैं जिसके आधार पर कर्नाटक में मंत्रिमंडल बनाया जाएगा.
1) मंत्रियों की योग्यता को नापने वाला सबसे पहला कारक यह होगा कि उन नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी जो पार्टी के वादों को पूरा करने में मदद कर सकें. ये वो नेता होंगे जो बेहतर सरकार चलाने में अपना योगदान दे सकते हैं.
2) दूसरा महत्वपूर्ण कारक क्षेत्रीय संतुलन को साधना होगा क्योंकि हाल ही में पुराने मैसूर क्षेत्र से चुनकर विधानसभा पहुंचने वाले विधायकों की मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी अधिक रही है. तटीय कर्नाटक से चुनकर आए विधायकों की तुलना में कल्याण कर्नाटक और मध्य कर्नाटक के विधायकों को भी मंत्रिमंडल में पर्याप्त जगह दी जा सकती है. कुछ जिले ऐसे भी हैं, जिनमें कांग्रेस ने अच्छा काम किया है. इन जिलों से भी बड़ी संख्या में मंत्रिमंडल के नेताओं को जगह मिल सकती है. आने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भी इन नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है.
3) इस बार कांग्रेस का पूरा फोकस मंत्रिमंडल में सही जाति संतुलन को साधने का है. वर्चस्वशाली जातियों लिंगायत और वोक्कालिंग को समान जगह दी जा सकती है. इस साल के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जातियों ने कांग्रेस को बड़ी संख्या में समर्थन दिया था. इन जातियों के लोग चाहते हैं कि उनके समूहों से जुड़े लोगों को वरिष्ठ पद मिले.
4) चौथा कारक मंत्रियों के साथ नए चेहरों का संतुलन बैठाना भी है जिसमें कांग्रेस को अग्निपरीक्षा का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि पार्टी के एक चौथाई विधायक पहले भी मंत्री रह चुके हैं. इनमें से किसे जगह दी जाए और किसे नहीं पार्टी के लिए ये वाकई चुनौतीपूर्ण काम होगा। इतना ही नहीं इस बार पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी मंत्रिमंडल में शामिल करने की चुनौती कांग्रेस के सामने होगी.
5) कांग्रेस में कई बार भीतर ही भीतर गुटबाजी की स्थिति भी बन जाती है. ऐसे में पार्टी सामने से अलग-अलग गुटों के प्रतिनिधित्व करने वाले मंत्रियों को भी मंत्रिमंडल में जगह दे सकती है. इन सभी धड़ों के नेता यकीनन मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम पर दबाव बनाएंगे ताकि उन्हें मंत्री बनाया जा सके.
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