नई दिल्ली. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की एक याचिका को ख़ारिज किए जाने की मांग की है. बता दें कि स्वामी ने ऐसे भाषणों और लेखों से जुड़े दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गयी है जो विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता और घृणा पैदा कर सकते हैं. केंद्र ने स्वामी की किताब को भी घृणा फैलाने वाली करार दिया है.
क्या है पूरा मामला
गृह मंत्रालय के एक अवर सचिव ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए की संवैधानिकता को चुनाती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिए. भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनाती दी गयी है कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी का उल्लंघन करती है.
सरकार ने चुनौती को खारिज करने की मांग की क्योंकि यह धारा ऐसे कृत्यों में ही दंड पर जोर देता है जिसमें विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता या घृणा को बढ़ावा देने की प्रवृति है, जिसमें लोक शांति के बाधित होने की प्रवृति हो और विभिन्न वर्गों के बीच सौहार्द बनाए रखने के प्रतिकूल हो. हलफनामे में कहा गया है कि ऐसे कृत्य स्पष्ट रूप से लोक व्यवस्था को प्रभावित करने के लिए हैं. हफलनामे में भाजपा नेता द्वारा लिखी गयी एक पुस्तक का जिक्र भी किया गया है.
केंद्र ने स्वामी की किताब को बताया घृणा फैलाने वाली
केंद्र ने हलफनामे में कहा है कि याचिकाकर्ता स्वामी ने एक पुस्तक ‘टेरोरिज्म इन इंडिया’ लिखी है जिसमें उन्होंने भारत के समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाने वाले भाषण दिए हैं. किताब के विषय, उसकी भाषा, कहानी की नैतिकता आदि का जिक्र करते हुए कहा गया है कि किताब में ऐसी सामग्री है जो भारत में हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच कटुता और घृणा को बढ़ावा देती हैं. इसलिए याचिकाकर्ता ने भारतीय दंड संहिता की धाराओं का उल्लंघन किया है. काजीरंगा विश्वविद्यालय में कथित तौर पर एक भड़काउ भाषण देने को लेकर स्वामी असम के करीमगंज में एक अदालती मामले का सामना कर रहे हैं. उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत प्रदान करने का अनुरोध किया है. उन्होंने भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी है.