नई दिल्ली : भारत के लिए रूस लागातार पीछले 6 महीनों से नंबर 1 तेल सप्लायर रहा है। आर्थिक रोक लगने के बावजूद भी भारत रूस से भारी मात्रा में तेल इम्पोर्ट कर रहा है। क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ने के कारण भारत भी प्राइस कैप ज्यादा भुगतान कर रहा है। वहीं अमेरिका ने सभी […]
नई दिल्ली : भारत के लिए रूस लागातार पीछले 6 महीनों से नंबर 1 तेल सप्लायर रहा है। आर्थिक रोक लगने के बावजूद भी भारत रूस से भारी मात्रा में तेल इम्पोर्ट कर रहा है। क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ने के कारण भारत भी प्राइस कैप ज्यादा भुगतान कर रहा है। वहीं अमेरिका ने सभी कंपनियों को चेतावनी देते हुए सुनिश्चित करने को कहा कि रूसी तेल का निर्यात प्राइस कैप के अंदर ही हो।
पिछले सप्ताह अमेरिका ने चेतावनी देते हुए कहा था कि हमें इस बात की खबर मिली है कि कुछ रूसी तेल प्राइस कैप से ऊपर एक्सपोर्ट किया जा रहा है। सभी कंपनियां सुनिश्चित करें कि प्राइस कैप के भीतर ही रूसी तेल का एक्पोर्टेशन हो। मतलब रूसी तेल 60 डॉलर प्रति बैरल या उससे कम कीमत पर लिया जाए।
दिसंबर 2022 से ही अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की प्राइस कैप लगाए हुए हैं। मतलब 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर तेल आयात होने पर उस तेल के लिए कंपनियों को बैंकिग, बीमा, शिपिंग, और वित्तीय सहायता नहीं मिलेगी।
रूस से तेल खरीदने में भारत को इन दो तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पहला- माइक्रो और दूसरा- मैक्रो. पहला तेल ट्रांसपोर्टिंग के भौतिक भाग से संबंधित है वहीं दूसरा पश्चिमी देशों के साथ रिलेशन मेंटेन रखना, ऊर्जा सुरक्षा, एवं रुपये से कारोबार जैसी समस्याओं से संबंधित है। बता दें कि भारत को रूस से प्रतिदिन लगभग 20 लाख बैरल तेल खरीदना मुश्किलें खड़ी कर रहा है।
दोनों देशों के बीच तेल व्यापार के कारण व्यवसाय उच्चे स्तर पर है। दोनों देशों के बीच पिछले साल द्विपक्षीय व्यापार लगभग 35 अरब डॉलर का रहा। पर इसमें भारत का एक्सपोर्टेशन दर 10 प्रतिशत से भी कम है। इसी कारण से रूस रुपये में व्यापार करने के बजाय दिरहम या डॉलर में लेन देन के लिए कहता है।