नई पीढ़ी के लोगों को अपनी ओर खींचने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने खाकी हॉफ पैंट की जगह पूरे पांव के पैंट यानी ट्राउजर को ड्रेस कोड में शामिल करने की तैयारी कर रहा है.
नई दिल्ली. नई पीढ़ी के लोगों को अपनी ओर खींचने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने खाकी हॉफ पैंट की जगह पूरे पांव के पैंट यानी ट्राउजर को ड्रेस कोड में शामिल करने की तैयारी कर रहा है.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक रांची में पिछले हफ्ते संपन्न संघ की बैठक में प्रस्तावित ड्रेस में कुछ स्वयंसेवकों की परेड भी कराई गई. इस प्रस्ताव पर अगले साल मार्च में नागपुर में होने वाली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में फैसला लिया जाएगा.
रिपोर्ट के मुताबिक सरसंघचालक मोहन भागवत और सरकार्यवाह भैयाजी जोशी दोनों ने ही नए ड्रेस कोड को पसंद किया है. उनका मानना है कि समय के अनुसार बदलना चाहिए. हालांकि कुछ लोगों ने नए ड्रेस कोड का विरोध भी किया है जिनमें ज्यादातर महाराष्ट्र के हैं.
प्रस्तावित ड्रेस कोड में दो विकल्प हैं, नागपुर में होगा फैसला
सूत्रों का कहना है कि नए ड्रेस कोड में दो विकल्प रखे गए हैं. पहले विकल्प में सफेद या दूसरे रंग की टी-शर्ट और काले रंग के ट्राउजर के साथ पुरानी काली टोपी, खाकी मोज़े और सफेद कैनवास जूते हैं.
दूसरे विकल्प में पूरे बांह की सफेद शर्ट के साथ खाकी, नेवी ब्लू, ब्लू या ग्रे रंग का पैंट, काली टोपी, चमड़े या रैक्सीन के काले जूते, खाकी मोज़े और कैनवास बेल्ट शामिल है.
यदि ऐसा होता है तो आरएसएस पहली बार ड्रेस कोड के मसले पर इतने बड़े परिवर्तन से गुजरेगा जिससे संघ की शाखाओं का लुक पूरी तरह बदल जाएगा.
पहले भी बदलता रहा है आरएसएस का ड्रेस कोड
संघ की 50 हजार शाखाएं हैं जिनमें कम से कम 10 लोग आते हैं. ऐसे में ड्रेस चेंज के लिए कम से कम 5 लाख नए ड्रेस की जरूरत होगी जिस पर अमल करने में काफी समय लगेगा.
आरएसएस के ड्रेस कोड में आखिरी बदलाव 2010 में हुआ था जब कपड़े की बेल्ट की जगह चमड़े के बेल्ट ने ली थी. उस फैसले को जमीन पर पूरी तरह उतारने में संघ को दो साल लगे थे.
1925 में आरएसएस के गठन के बाद से 1939 तक संघ का ड्रेस कोड पूरी तरह खाकी था. 1940 में सफेद शर्ट को ड्रेस में शामिल किया गया. 1973 में लंबे बूट की जगह चमड़े के जूतों ने ली.