नई दिल्ली: कांग्रेस के नेतृत्व में 14 विपक्षी दलों द्वारा दायर याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. इस याचिका को केंद्र विपक्ष की 14 पार्टियों द्वारा संयुक्त रूप से दायर किया गया था. जिसमें कांग्रेस, सपा जैसी कई प्रमुख पार्टियां शामिल थीं. दरअसल इस याचिका में केंद्र सरकार […]
नई दिल्ली: कांग्रेस के नेतृत्व में 14 विपक्षी दलों द्वारा दायर याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. इस याचिका को केंद्र विपक्ष की 14 पार्टियों द्वारा संयुक्त रूप से दायर किया गया था. जिसमें कांग्रेस, सपा जैसी कई प्रमुख पार्टियां शामिल थीं. दरअसल इस याचिका में केंद्र सरकार पर विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के “मनमाने उपयोग” का आरोप लगाया गया था. इस याचिका के माध्यम से एक नए सेट की मांग की गई थी जिसमें गिरफ्तारी, रिमांड और जमानत को नियंत्रित करने वाले दिशा-निर्देश दिए जाएं.
Supreme Court refuses to entertain a plea filed by 14 opposition parties, led by the Congress, alleging “arbitrary use” of central probe agencies like Central Bureau of Investigation (CBI) and the Enforcement Directorate (ED) against opposition leaders and seeking a fresh set of… pic.twitter.com/0DfvhhYxjN
— ANI (@ANI) April 5, 2023
बता दें, विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली है. क्योंकि शीर्ष अदालत ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट अब विपक्ष की इस संयुक्त याचिका पर विचार नहीं करेगा. बता दें, याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राजनेताओं के लिए अलग-अलग दिशानिर्देश नहीं बना सकते हैं, क्योंकि अदालत ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले 14 विपक्षी दलों द्वारा दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का विपक्षी नेताओं के खिलाफ “मनमाना उपयोग” करने का आरोप लगाया गया था।
इस मामले को लेकर कोर्ट ने दो टूक कहा है की देश में नेताओं के लिए अलग से नियम नहीं बनाए जा सकते हैं. इस तरह से इस याचिका पर सुनवाई संभव ही नहीं है. दूसरी ओर विपक्ष की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से कहा कि आंकड़े बताते हैं कि 885 अभियोजन शिकायतें दर्ज की गई थी लेकिन केवल 23 में ही सजा हुई. 2004 से 2014 तक आधी अधूरी जांच हुई हुई है. साथ ही ये भी तर्क दिया गया है कि 2014 से 2022 के बीच ईडी ने जिन 121 राजनीतिक नेताओं की जांच की गई है, उनमें से 95% विपक्ष से हैं.
सीजेआई जस्टिस डी वाई चंद्रचूड ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि ये एक या दो पीड़ित व्यक्तियों की दलील नहीं है बल्कि 14 राजनीतिक दलों की दलील है. क्या आंकड़ों के आधार पर हम कुछ कह सकते हैं कि जांच में किस तरह की छूट होनी चाहिए? ये आंकड़ें अपनी जगह सही हैं लेकिन क्या राजनेताओं के पास जांच से बचने का भी कोई विशेष अधिकार होना चाहिए? आखिरकार वह भी देश के ही नागरिक हैं.
जानकारी के लिए बता दें, 14 विपक्षी दलों ने 24 मार्च को सर्वोच्च न्यायलय में ED और CBI की कार्रवाई के खिलाफ याचिका दायर की थी. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, जनता दल यूनाइटेड, भारत राष्ट्र समिति, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव) नेशनल कॉन्फ्रेंस, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी सीपीआई, सीपीएम, डीएमके इस याचिका को पेश करने वाली पार्टियों में शामिल हैं. सभी दलों का तर्क है कि देश में लोकतंत्र खतरे में हैं और केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरूपयोग कर रही है. गैर-बीजेपी सियासी दलों पर गलत तरीके से कार्रवाई की जा रही है. इसमें पीएम मोदी पर विपक्ष के नेताओं ने CBI और ED का गलत इस्तेमाल होने का आरोप लगाया था.
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