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बसपा के वोटबैंक पर सपा की सेंधमारी, इस वजह से अखिलेश बढ़ाएंगे मायावती की परेशानी

लखनऊ: इस समय सपा प्रमुख अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की सियासत में काफी सुर्खियों में हैं. अखिलेश इस समय नई राजनीतिक इबारत लिखने की कवायद में जुटे हैं. उनका निशाना अपने कोर वोटबैंक यादव-मुस्लिम के साथ-साथ दलित-ओबीसी को जोड़ने पर है.रामचरितमानस से लेकर जातिगत जनगणना तक इस समय वह सभी मुद्दों को लेकर नेरेटिव सेट […]

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बसपा के वोटबैंक पर सपा की सेंधमारी, इस वजह से अखिलेश बढ़ाएंगे मायावती की परेशानी
  • February 6, 2023 5:41 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

लखनऊ: इस समय सपा प्रमुख अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की सियासत में काफी सुर्खियों में हैं. अखिलेश इस समय नई राजनीतिक इबारत लिखने की कवायद में जुटे हैं. उनका निशाना अपने कोर वोटबैंक यादव-मुस्लिम के साथ-साथ दलित-ओबीसी को जोड़ने पर है.रामचरितमानस से लेकर जातिगत जनगणना तक इस समय वह सभी मुद्दों को लेकर नेरेटिव सेट कर रहे हैं. उनके इस नेरेटिव से बीजेपी ही नहीं बल्कि बसपा के भी वोटबैंक पर असर पड़ने वाला है.

सियासी गठजोड़ बैठा रही सपा

अंबेडकर की विरासत को अपनाने के साथ-साथ सपा अंबेडकरवादी नेताओं को भी प्रमुखता दे रही है. ऐसे में मायावती भी बेचैन हो गई हैं. अब इसलिए मायावती ने गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाकर सपा के दलित एजेंडे की हवा निकालने की कोशिश की है. दरअसल इस समय सपा अपने साथ बसपा के बचे हुए दलित वोटबैंक और बीजेपी के साथ गए अति पिछड़े समुदाय के वोटों को जोड़ने का प्रयास कर रही है. सपा के वो कौन से कदम हैं कदम हैं जिनसे मायावती की बैचेनी बढ़ गई है.

 

 

1. अंबेडकर की विरासत पर दावा

दलितों के मसीहा बाबा साहब डा. भीमराव अंबेडकर की राजनीतिक बसपा की नींव है. अंबेडकर का नाम बसपा के महापुरुषों में सबसे ऊपर दर्जा था, दूसरी ओर सपा लोहिया की समाजवादी विचाराधारा के साथ शुरू हुई. लेकिन समय के साथ अखिलेश यादव ने लोहिया के साथ-साथ अंबेडकर की सियासत को भी अपनाना शुरू किया। कार्यक्रमों और मंचों पर सपा ने अंबेडकर की तस्वीर लगानी शुरू की और अंबेडकरवादी नेताओं को सपा में खास अहमियत मिलने लगी.

2. बसपा से आए नेताओं को तवज्जो

अखिलेश यादव ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बसपा पृष्ठभूमि वाले नेताओं को गंभीर जिम्मेदारियां सौंपी हैं. इसके पीछे सियासी मकसद भी है. स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर रामअचल राजभर, लालजी वर्मा, इंद्रजीत सरोज तक राष्ट्रीय महासचिव का जिम्मा दिया गया है. इतना ही नहीं त्रिभवन दत्त, डा. महेश वर्मा और विनय शंकर तिवारी भी इस समय शीर्ष जिम्मेदारियों पर हैं. बसपा में रहते हुए इसमें से तीन नेता प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. इतना ही नहीं कई पार्टी विधायक दल के नेता सदन रह चुके हैं. अखिलेश ने जिस तरह इन नेताओं को इज्जत दी है, उसके पीछे बसपा के वोटबैंक को अपने पाले में लाने की रणनीति मानी जा रही है.

3. रामचरितमानस पर सियासत

रामचरितमानस पर बिहार से शुरू हुई सियासत को अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में दलित वोटबैंक साधने के लिए खींच आए हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादास्पद बयान के बाद भी उन्हें सपा महासचिव बनाया गया. जिस तरह से अखिलेश यादव नेजातिगत जनगणना पर आगे बढ़ने के लिए बयान दिया, उससे भी यह साफ है कि सियासत किस दिशा में जा रही है. सपा अध्यक्ष ने खुद को ही शूद्र बताया था.दरअसल समाजवादी पार्टी का प्रयास बसपा के दलित और अति पिछड़ों को अपने पाले में लाने की है.

 

4. बी-टीम का नेरेटिव

अखिलेश यादव मायावती की बसपा पर लगातार बीजेपी की बी-टीम बताते हैं. इस नेरेटिव के बाद बसपा को विधानसभा चुनाव में भी बड़ा झटका लगा था. मुस्लिम वोटबैंक सपा के पास आ गया था. दलित समुदाय का वोट भी सपा को पहले से ज्यादा मिला.

5. चंद्रशेखर आजाद से नजदीकी

मायावती का विकल्प बनने के लिए दलित नेता चंद्रशेखर आजाद लगातार कोशिश कर रहे हैं. चंद्रशेखर की सपा के साथ नजदीकियां भी बढ़ने लगी हैं. चंद्रशेखर ने खतौली उपचुनाव में रालोद-सपा गठबंधन के प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार किया था. आजम खान और अखिलेश यादव के साथ उन्होंने रामपुर लोकसभा उपचुनाव में मंच शेयर किया था. इतना ही नहीं RLD के प्रमुख जयंत चौधरी ने चंद्रशेखर को सपा गठबंधन में शामिल होने पर मुहर भी लगा दी है. इस एंट्री से भी मायावती बेचैन हैं, क्योंकि दलितों का एक बड़ा भाग चंद्रशेखर के साथ है.

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