नई दिल्ली। बीते आठ वर्षों में दिल्ली में यमुना नदी का प्रदूषण भार दोगुना हो गया है । बता दें , उपराज्यपाल कार्यालय ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आंकड़ों का प्रमाण देते हुए इस बात की जानकारी इस सोमवार(16 जनवरी ) को साझा की थी । डीपीसीसी ने बताए आंकड़े बता दें , […]
नई दिल्ली। बीते आठ वर्षों में दिल्ली में यमुना नदी का प्रदूषण भार दोगुना हो गया है । बता दें , उपराज्यपाल कार्यालय ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आंकड़ों का प्रमाण देते हुए इस बात की जानकारी इस सोमवार(16 जनवरी ) को साझा की थी ।
बता दें , डीपीसीसी और जल बोर्ड ने इस शनिवार(14 जनवरी ) को उपराज्यपाल वीके सक्सेना को यमुना में प्रदूषण पर एक प्रेजेंटेशन दिया था । जानकारी के मुताबिक , नदी की सफाई के लिए 9 जनवरी को एनजीटी द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति की पहली बैठक लेने से पहले एलजी ने जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए उक्त दोनों विभागों की एक बैठक भी की थी। रिपोर्ट के मुताबिक , एनजीटी ने एलजी को ही इस समिति का प्रमुख बनाया हुआ है। डीपीसीसी के आंकड़ों से पता चला है कि जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) का स्तर 2014 से पल्ला में, जहां से नदी दिल्ली में प्रवेश करती है, दो मिलीग्राम प्रति लीटर की अनुमेय सीमा के भीतर तक बना हुआ है।
जैविक आक्सीजन मांग पानी की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए एक महत्वपूर्ण पैरामीटर होता है। जानकारी के लिए बता दें , बीओडी का स्तर तीन मिलीग्राम प्रति लीटर से कम काफी अच्छा माना जाता है। तो वही दूसरी तरफ ओखला बैराज में, जहां से नदी दिल्ली छोड़ती है और उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है, बीओडी का स्तर 2014 में 32 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर 2023 में 56 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हो गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक , डीपीसीसी हर महीने पल्ला, वजीराबाद, आइएसबीटी पुल, आइटीओ पुल, निजामुद्दीन पुल, आगरा नहर, ओखला बैराज, ओखला बैराज और असगरपुर में नदी के पानी के नमूने एकत्र करता रहता है। सूत्र के मुताबिक , पिछले आठ वर्षों में नदी में प्रदूषण का भार दोगुना हो गया है । प्रदूषण में साल-दर-साल वृद्धि 2014 के बाद से 2019 के एकमात्र अपवाद के साथ लगातार बानी हुई है।
बता दें , जब हरियाणा ने यमुना नहर की मरम्मत का काम करते हुए हथिनी कुंड बैराज से यमुना में अधिक पानी छोड़ा था तो इसके परिणामस्वरूप प्रदूषक भी बह गए थे।आइएसबीटी में बीओडी का स्तर, नजफगढ़ नाले के यमुना में गिरने के तुरंत बाद, 2014 में 26 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर 2017 में 52 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हो गया था और आज भी 38 मिलीग्राम प्रति लीटर के उच्च स्तर पर बरक़रार है।
उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली में 35 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में से सिर्फ नौ ही डीपीसीसी मानकों का पालन करते हैं। डीपीसी नियमों के अनुसार, उपचारित अपशिष्ट जल में बीओडी और टीएसएस 10 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम का होना चाहिए। बता दें , दिल्ली एक दिन में लगभग 768 मिलियन गैलन (एमजीडी) सीवेज उत्पन्न करती है, जिनको 530 एमजीडी की संचयी उपचार क्षमता वाले इन 35 एसटीपी में उपचारित किए जाते है । लेकिन, ये एसटीपी अपनी स्थापित क्षमता के केवल 69 प्रतिशत पर ही कार्य करते हैं और इसलिए प्रभावी रूप से रोजाना केवल 365 एमजीडी सीवेज का उपचार होता है।
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