रांची: 2018 का तीन तलाक कानून काफी सुर्ख़ियों में रहा है। उस दरमियान हल्ला इतना मचा था कि इस कानून को शरीयत से भी छोटा बनाने की कोशिश की गई। लेकिन चार साल बाद झारखंड में देखा गया इस कानून का असर वाकई हैरान कर देने वाला है. इस्लाम के मुताबिक निकाह हो या सनातन […]
रांची: 2018 का तीन तलाक कानून काफी सुर्ख़ियों में रहा है। उस दरमियान हल्ला इतना मचा था कि इस कानून को शरीयत से भी छोटा बनाने की कोशिश की गई। लेकिन चार साल बाद झारखंड में देखा गया इस कानून का असर वाकई हैरान कर देने वाला है. इस्लाम के मुताबिक निकाह हो या सनातन धर्म की शादी, दोनों का मतलब और मक़सद एक ही है, दो दिलों का मज़बूती से मिलन और आपसी मोहब्बत”.
सबसे पहले तो आप जान लें कि खुला है क्या? आपको बता दें, इस्लाम में औरतों को भी तलाक लेने का हक़ है। औरतें खुला तलाक ले सकती हैं। हालांकि इस तरह के तलाक में महिला को मेहर यानी कि निकाह के समय पति की तरफ से दिए गए पैसे चुकाने होते हैं। इसके साथ ही खुला तलाक में शौहर की रजामंदी भी जरूरी होती है।
मोमिनों में बेमतलब तलाक के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2018 में तीन तलाक कानून को पेश किया था. इस कानून लागू होने के चार साल बाद आज इसका असर देखने को मिल रहा है. राज्य के एदारे शरिया से मिले जराए के मुताबिक, 2020 के बाद, तलाक के लिए फाइल करने वाली औरतों की तादाद में इजाफा हुआ है. जिससे साफ़ होता है कि कानून के लागू होने के बाद, अपने पति से “खुला” मांगने वाली औरतों की तादाद में आमक इज़ाफ़ा हुआ है.
इस मामले में मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी का कहना हैं कि तीन तलाक कानून के बजाय इसकी वजह कोरोना के दरमियान मियां-बीवी का घर में एक साथ ज़्यादा समय बिताना है. उनका कहना है कि घर में साथ रहने के चलतेम मियां-बीवी के दरमियान कई मसले रहते थे जिससे तमाम लोगों में तकरार और लड़ाई-झगड़े होते थे. इसी के चलते खुला के मामलों में इज़ाफ़ा देखने को मिला है.
इस मामले में काफी सारी महिलाओं का मानना है कि शरीयत में महिलाओं की सुरक्षा और कई सारे हक़ दिए गए हैं. बदलते वक्त के साथ महिलाओं को लेकर एक तरह की मॉर्डर्न सोच भी देखने को मिल रही है और खुला मामलों में इजाफा इसी का नतीजा है. एक निखत नाम की औरत कहती हैं कि मुस्लिम औरतें आज घर में जुल्म और सितम के साथ रहने के लिए राज़ी नहीं हैं, और अब वो अपने हक़ के लिए फैसले ले सकती है.