विद्याशंकर तिवारी नई दिल्ली। राज्यसभा में भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र में बने रामसेतु को लेकर चर्चा हुई, हरियाणा से राज्यसभा सदस्य कार्तिकेय शर्मा ने सवाल पूछा था कि क्या केंद्र सरकार हमारे गौरवशाली इतिहास खासतौर से द्वारका व रामसेतु को लेकर इस वक्त कोई रिसर्च कर रही है? इस पर पृथ्वी विज्ञान मंत्री […]
विद्याशंकर तिवारी
नई दिल्ली। राज्यसभा में भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र में बने रामसेतु को लेकर चर्चा हुई, हरियाणा से राज्यसभा सदस्य कार्तिकेय शर्मा ने सवाल पूछा था कि क्या केंद्र सरकार हमारे गौरवशाली इतिहास खासतौर से द्वारका व रामसेतु को लेकर इस वक्त कोई रिसर्च कर रही है? इस पर पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने केंद्र सरकार की तरफ से बताया रामसेतु के वजूद के अभी तक स्पष्ट सबूत नहीं मिले हैं। प्राचीन द्वारका और रामसेतु के लिए छानबीन चल रही है.
हरियाणा से राज्यसभा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने संसद के उच्च सदन राज्यसभा में पूछा था कि क्या केंद्र सरकार हमारे गौरवशाली इतिहास को लेकर इस वक्त कोई रिसर्च कर रही है? पिछली सरकारों ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे को ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी। राज्यसभा सांसद के सवाल पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने जो जवाब दिया उसको लेकर विपक्ष खासतौर से कांग्रेस घेरेबंदी में जुट गई है.
Whether the Govt is making efforts for conducting scientific assessment of glorious history and historical facts of India from the Vedic period to the present day and introducing it into the curriculum? (My question in RS) pic.twitter.com/Tu6MrtiFCP
— Kartik Sharma (@Kartiksharmamp) December 22, 2022
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि मुझे इस बात की खुशी है कि हमारे सांसद ने रामसेतु के विषय पर सवाल किया है। दरअसल ये करीब 18 हजार साल पुराना इतिहास है, ऐसे में हमारी कुछ सीमाएं है। सिंह ने कहा कि जिस ब्रिज की बात हो रही है वह 56 किलोमीटर लंबा था। स्पेस टेक्नोलॉजी के जरिए हमने पता लगाया है कि समुद्र में पत्थरों के कुछ टुकड़े पाए गए हैं। हालांकि अभी ये कहना मुश्किल है कि रामसेतु का वास्तविक स्वरूप अभी वहां मौजूद है। कुछ संकेत जरूर मिले हैं, जिससे पता चलता है कि वहां कोई स्ट्रक्चर मौजूद हो सकता है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारतीय सेटेलाइट के चित्रों में भारत के धनुषकोडि से श्रीलंका के जाफना तक एक पतली रेखा दिखती है, इसे ही रामसेतु माना जाता है। भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिम में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक श्रृंखला है। इन चट्टानों की गहराई समुद्र में करीब 3 फुट से लेकर 30 फुट तक है। वहीं इस पुल की लंबाई करीब 48 किलोमीटर है। बता दें कि रामसेतु को लेकर विवाद है, जहां कुछ वैज्ञानिक इसे प्राकृतिक पुल मानते है, वहीं कुछ इसे मानव निर्मित बताते हैं। ईसाई या पश्चिमी लोग इस पुल को एडम ब्रिज कहते हैं। साल 1993 में जब नासा ने उपग्रह द्वारा खींचे रामसेतु के चित्रों को जारी किया तो भारत में इसे लेकर काफी विवाद पैदा हो गया।
भारत सरकार ने 2005 में सेतुसमुद्रम परियोजना का ऐलान किया। इसके तहत भारत सरकार तमिलनाडु को श्रीलंका से जोड़ने के लिए योजना लेकर आई, इस परियोजना से श्रीलंका से व्यापार में ईंधन और समय की बचत का वास्ता दिया गया, व्यापारिक फायदा होने की बात कही गई. सेतुसमुद्रम परियोजना में रामसेतु के कुछ इलाको को गहरा कर समुद्री जहाजों को आने-जाने के लायक बनाया जाना था. स्वभाविक है कि इसके लिए सेतु के चट्टानों को तोड़ा जाता, प्राकृितिक सौंदर्य, समुद्री जीव जंतु के जीवन पर प्रभाव पड़ता. प्राकृतिक छेड़छाड़ से सुनामी की आशंका भी जाहिर की गई. भाजपा ने तब इसका पुरजोर विरोध किया था.
रामसेतु की रक्षा की लड़ाई लड़ रहे लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से इसको बचाने की गुहार लगाई। इसके बाद 14 सितंबर 2007 को उच्चतम न्यायालय में इस मामले की सुनवाई हुई। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामे में रामसेतु को लेकर कहा कि वर्तमान हिस्सा मानव निर्मित न होकर भौगोलिक रूप से प्रकृति द्वारा निर्मित है। इसमें रामसेतु जैसी कोई चीज नहीं है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने भी उच्चतम न्यायालय में रामायण में उल्लिखित पौराणिक चरित्रों के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिए थे, जिसको लेकर तत्कालीन यूपीए सरकार की खासी आलोचना हुई. तत्कालीन मनमोहन सरकार घिर गई.
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक जब श्रीराम ने रावण से सीता को छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की तो उस वक्त उन्होंने सभी देवताओं से आह्वान किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद मांगा। इनमें समुद्र के देवता वरूण भी थे। श्रीराम ने वरूण से समुद्र पार जाने के लिए रास्ता मांगा, जब वरूण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र सुखाने के लिए धनुष उठाया। डरे हुए वरूण ने क्षमायाचना करते हुए बताया कि नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर श्रीराम का नाम लिखकर समुद्र में डालेंगे, वह तैर जाएगा। इस तरह से सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर पाएगी। इसके बाद श्रीराम की सेना ने लंका के रास्ते में पुल बनाया और रावण का अंत कर सीता को वापस लाये.
रामसेतु का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस में भी है। जहां पर एक दोहे में रामसेतु के बनने का जिक्र किया गया है।
अति उतंग गिरि पादप लीलहिं लेहिं उठाइ।
आनि देहिं नल नीलहि रचहिं ते सेतु बनाइ॥1॥
यानी श्रीराम की सेना के वानर बहुत ऊँचे-ऊँचे पर्वतों और वृक्षों को खेल की तरह ही (उखाड़कर) उठा लेते हैं और ला-लाकर नल-नील को देते हैं। इस तरह वे अच्छी तरह गढ़कर (सुंदर) सेतु बनाते हैं।
गीताप्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में रामसेतु का वर्णन है। पुस्तक में बताया गया है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा। महाभारत में भी श्रीराम के नल सेतु का जिक्र हुआ है। इसके साथ ही अन्य ग्रंथों में रामसेतु का उल्लेख है। जिसमें कालिदास की रघुवंश, स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) शामिल हैं।