नई दिल्ली: चुनाव में कोई उम्मीदवार हारता है तो कोई जीतता है, मगर कई बार ऐसा वाकिया भी होता है जब हार और जीत का अंतर इतना कम होता है कि यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है। अगर बात की जाए 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव की तो आज हम कुछ ऐसी ही सीटों की […]
नई दिल्ली: चुनाव में कोई उम्मीदवार हारता है तो कोई जीतता है, मगर कई बार ऐसा वाकिया भी होता है जब हार और जीत का अंतर इतना कम होता है कि यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है। अगर बात की जाए 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव की तो आज हम कुछ ऐसी ही सीटों की बात करेंगे, जिनपर हार और जीत का अंतर बेहद कम या न के बराबर ही रहा। इस दौरान हम इस बात को भी समझने की कोशिश करेंगे की कैसे नोटा के वोट चुनाव में किसी प्रत्याशी को अप्रत्यक्ष रुप से जीत या हार दिलाने में गंभीर भूमिका निभाते हैं।
1. धनेरा सीट – कांग्रेस के “पटेल नाथाभाई हेगोलाभाई” धनेरा सीट पर कुल 82909 वोट मिले और वो इस सीट पर चुनाव जीत गए मगर दूसरे स्थान पर रहने वाले भाजपा के प्रत्याशी उनसे बहुत पीछे नहीं रहे और वो 80816 वोट पाने में कामयाब रहे थे, वोट शेयर के लिहाज़ से इस सीट पर ज़रा सी भी फ़ेरबदल की स्थिति में भाजपा को फ़ायदा मिल सकता है। अगर नोटा के 2341 वोचों को हम भाजपा प्रत्याशी के वोटों के साथ जोड़ कर देखें तो साफ़ है कि भाजपा इस सीट पर मामूली अंतर से चुनाव जीत सकती थी।
2. उमरेठ सीट – भाजपा प्रत्याशी “परमार गोविंदभाई राईजीभाई” 68326 मतों के साथ उमरेठ की सीट जीते थे लेकिन हारने वाली उम्मीदवार “कपिलाबेन गोपालभाई चावदा” 66443 मतों के साथ दूसरे नम्बर पर रहे, वोटों के लिहाज़ से ये मत प्रतिशत बेहद कम है। इस सीट पर अगर नोटा के कुल 3710 वोट पड़े, आसान शब्दों में अगर हम कहें तो, नोटा के वोट अगर कांग्रेस के उम्मीदवार को मिल जाते तो वो ये चुनाव जीत सकते थे।
3. दसाडा सीट – कांग्रेस के सोलंकी नौशादजी भालजीभाई 64358 मतों को साथ ये सीट जीते थे, वहीं अगर बात करें भाजपा के रमनलाल ईश्वरलाल वोरा की तो उन्होंने कुल 63514 वोट हासिल किए थे, इस सीट पर 2.46% वोट नोटा को भी गए थे, इस सीट पर हार-जीत का अंतर बहुत कम था, अगर नोटा की ही संख्या को दूसरे नम्बर के प्रत्याशी के साथ जोड़ दिया जाए तो रमनलाल वोरा 0.1% के बहुत मामूली अंतर से चुनाव जीत सकते थे।
4. तलाजा सीट – कांग्रेस के कनुभाई मथुराभाई बरैया 66862 से चुनाव जीते थे , इस सीट पर भी भाजपा के चौहान गौतमभाई गोपाभाई 65083 के साथ 1.3% के मामूली अंतर से हारे थे। इस सीट पर नोटा को 2.06 % यानि 2918 मत मिले थे,
5. विजापुर सीट – भाजपा के पटेल रमनभाई धुलाभाई 72326 मतों के साथ इस सीट पर चुनाव जीतने में कामयाब रहे जबकि पटेल नाथभाई प्रभूदास 71162 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। नोटा को इस सीट पर 0.85% यानि 1280 मत मिले, अब अगर हम हारे हुए प्रत्याशी के वोटों के साथ नोटा के वोटों को जोड़ दे तो संख्या होती है 72442, जिसका मतलब ये है कि नोटा के वोट पाकर हारा हुआ प्रत्याशी 116 वोटों के साथ ये चुनाव जीत जाता।
6. ढोलका सीट – भूपेंद्रसिंह चुदासमा 71530 मतों के साथ भाजपा के टिकट पर विजयी रहे, वहीं कांग्रेस के अश्विनभाई कामसुभई रथोड 71203 मतों के साथ बहुत ही मामूली अंतर से उनसे हार गए। नोटा को इस सीट पर 1.46% वोट मिले, यहां भी नोटा के 2347 वोटों को अगर हारे हुए प्रत्याशी के कुल वोटों के साथ जोड़ दिया जाए तो संख्या होती है 73550 यानि कांग्रेस के अश्विनभाई रथोड 2020 वोटों के साथ चुनाव जीत सकते थे।
7. विसनगर सीट – विसनगर सीट पर भाजपा के पटेस रुशिकेश गणेशभाई 67355 मतों क साथ चुनाव जीते वहीं कांग्रेस के पटेल महेंद्र कुमार एस 66231 मतों के साथ चुनाव हार गए। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बाद नोटा तीसरे नम्बर पर था और वोटों की कुल संख्या थी 2536 जिसकी बदौलत हारा हुआ प्रत्याशी चुनाव जीत सकता था।
8. दीओदर से कांग्रेस के भूरिया शिवभाई अमरभाई 79599 मतों के साथ चुनाव जीते जबकि भाजपा के चौहान केशाजी शिवाजी 79047 मतों के साथ दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा, हार जीत का ये अंतर वाकई बेहद मामूली है। नोटा को इस सीट पर 1.80% यानि 2984 वोट मिले, इस सीट पर भाजपा के हारे हिए प्रत्याशी अगर नोटा के वोट पा जाते तो चुनाव के विजेता होते।
9. मातर सीट पर भाजपा के केसरीसिंह जेसंगभाई सोलंकी 81509 मतों के साथ इस सीट पर जीते वहीं कांग्रेस के पटेल संजयभाई हरिभाई 79103 मतों के साथ दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। इस सीट पर नोटा 2.41% था जो कि वोटों के लिहाज़ से 4090 मत होता है, जिससे साफ़ होता है कि नोटा इस सीट पर भी निर्णायक भूमिका अदा कर रहा है।
10. हिम्मतनगर सीट पर भी चुनाव बेहद दिलचस्प रहे थे, यहां भाजपा उम्मीदवार राजेंद्रसिंह रंजीतसिंह चावड़ा 94340 मतों के साथ चुनाव जीते जबकि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार कमलेशकुमार जयंतभाई पटेल 92628 वोटों के साथ महज़ मामूली अंतर से चुनाव हार गए। इस सीट पर नोटा का 1.71% था, जो कि वोटों में देखा जाए तो 3334 होते हैं।
नोटा की आम जनमानस में कोई ख़ास पैठ नहीं है, ज़्यादातर लोग नोटा को निर्णायक नहीं मानते मगर हमने देखा कि किस तरह नोटा बड़ी ही ख़ामोशी के साथ उम्मीदवारों के हारने या जीतने में अहम भूमिका निभाता है। उम्मीद है नोटा के इस विश्लेषण के बाद बतौर मतदाता आप इसकी अहमियत को समझेंगे और जहां कहीं आपो ज़रुरत महसूस होगी आप इस ताकत का इस्तेमाल करके प्रजातंत्र को सार्थक रुप देने की कोशिश करेंगे।
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