नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिन एक ऐसा फैसला सुनाया जिसकी वजह से अब विवाद हो रहा है. दरअसल, बीते दिन सुप्रीम कोर्ट ने छावला रेप केस के आरोपियों को रिहा कर दिया. जिन आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने रिहा किया है उनपर पीड़िता के साथ बलात्कार, उत्पीड़न और हत्या करने का आरोप है. […]
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिन एक ऐसा फैसला सुनाया जिसकी वजह से अब विवाद हो रहा है. दरअसल, बीते दिन सुप्रीम कोर्ट ने छावला रेप केस के आरोपियों को रिहा कर दिया. जिन आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने रिहा किया है उनपर पीड़िता के साथ बलात्कार, उत्पीड़न और हत्या करने का आरोप है. इस मामले में निचली अदालत और हाई कोर्ट ने उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आरोपियों को रिहा कर दिया. अब सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले की वजह से लोगों में आक्रोश है. उनके मन में ये सवाल है कि आखिर इन्हें रिहा क्यों किया गया. वहीं, बीते दिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आबाद पीड़िता की माँ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला चौंकाने वाला है, कम से कम आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा तो देनी चाहिए थी.
दिल्ली के छावला गैंगरेप केस मामले में सुप्रीम कोर्ट से आए फैसले को पीड़ित परिवार रिव्यू पिटिशन के रूप में चुनौती देने वाला है, यह जानकारी पीड़ित परिवार ने दी है. पीड़ित परिवार ने आज दिल्ली के झंडेवालान स्थित गढ़वाल भवन में समाज के लोगो के साथ एक बैठक की, जिसमें सैकड़ों लोग एकत्रित हुए, इस बैठक में एक कमेटी का गठन किया गया है, जिसमें कई वकील भी शामिल होंगे. पीड़ित परिवार और कमेटी के मेंबर्स का कहना है कि वह मामले में रिव्यू पिटिशन फाइल करने वाले हैं जिसके लिए वह तैयारी शुरू कर चुके हैं. उनका कहना है कि उन्हें रिव्यू पिटिशन करने से इंसाफ की उम्मीद रहेगी.
छावला रेप केस में फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी की पहचान अब तक साबित नहीं कर सका है और यह इस ट्रायल की एक बड़ी खामी रही है. इसके साथ ही इस मामले में जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने कहा कि पूरे ट्रायल के दौरान 49 गवाहों में से 10 का क्रॉस एग्जामिनेशन भी नहीं किया गया, इसके साथ ही सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने निचली अदालतों को नसीहत भी दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ‘अदालतों को कानून के मुताबिक मेरिट के आधार पर ही फैसला सुनाना चाहिए ऐसे मामलों में कोर्ट को किसी भी तरह के बाहरी नैतिक दबाव में नहीं आना चाहिए.’ इस बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस रविंद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी भी शामिल थे, और इस बेंच ने आरोपियों को रिहा करने का फैसला सुनाया.
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