देहरादून: भगवान राम के वनवास से आने की खबर 11 दिन के बाद मिली, इसलिए यहां के लोग दिवाली के 11 दिन बाद धूमधाम से त्यौहार मनाते हैं। टिहरी गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली के त्यौहार के 11 दिन बाद इगास दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है, जिसे स्थानीय शब्दों में इगास बग्वाल कहा जाता है. […]
देहरादून: भगवान राम के वनवास से आने की खबर 11 दिन के बाद मिली, इसलिए यहां के लोग दिवाली के 11 दिन बाद धूमधाम से त्यौहार मनाते हैं।
टिहरी गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली के त्यौहार के 11 दिन बाद इगास दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है, जिसे स्थानीय शब्दों में इगास बग्वाल कहा जाता है. इसमें दीये और पटाखे नहीं बल्कि भैला खेला जाता है, जो कि एक पारंपरिक रिवाज है. इगास बग्वाल को लेकर कई कहानियां हैं. ऐसी मान्यता है कि मां लक्ष्मी सभी के दुखों को दूर करती हैं. इगास बग्वाल पर घरों में पूड़ी, पकोड़ी जैसे पकवान बनाकर वितरण किए जाते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के पहुंचने की जानकारी दीपवाली के ग्यारह दिन बाद मिली और इसलिए ग्रामीणों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए दीपावली के ग्यारह दिन बाद त्यौहार मनाया. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि गढ़वाल के राजा महिपत शाह ने वीर माधवसिंह भंडारी को गढ़वाल राज्य की सीमा का विस्तार करने का आदेश दिया था और माधवसिंह लड़ते-लड़ते बहुत दूर तक चले गए और वीरगति को प्राप्त हुए, ये जानकारी दीपावली के 11 दिन बाद एकादशी को पता चली, इसलिए उनकी यादों में इगास मनाया जाता है और भैलो खेला जाता है।
दंत कथाओं के मुताबिक चंबा का एक व्यक्ति भैला बनाने के लिए लकड़ी लेने घने जगंल गया था, लेकिन उस दिन वापस नहीं आया. बहुत खोजबीन करने के बाद भी उस व्यक्ति का कहीं पता नहीं चला तो ग्रामीणों ने दीपावली नहीं मनाई, लेकिन ग्यारह दिन बाद वो व्यक्ति जब गांव में वापस लौटा तो ग्रामीणों ने दीपावली मनाई और भैला खेला। तब से इगास बग्वाल के दिन भैला खेलने की पारंपरिक रिवाज शुरू हुआ. स्थानीय निवासियों का कहना है कि टिहरी गढ़वाल में इगास बग्वाल के दिन लकड़ी और बेल से भैला तैयार किया जाता है और स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला जलाकर घुमाया जाता है।
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