पटना. बिहार में इस समय सियासत गरमाई हुई है, एक ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की क़वायद कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पड़ोसी राज्य झारखंड में कुर्मी आंदोलन तेज़ हो गया है. ऐसे में, विपक्षी दलों को एकजुट करना सुशासन बाबू के लिए इतना आसान नहीं होने […]
पटना. बिहार में इस समय सियासत गरमाई हुई है, एक ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की क़वायद कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पड़ोसी राज्य झारखंड में कुर्मी आंदोलन तेज़ हो गया है. ऐसे में, विपक्षी दलों को एकजुट करना सुशासन बाबू के लिए इतना आसान नहीं होने वाला है, इस समय उनकी राह में कुर्मी आंदोलन सबसे बड़ा रोड़ा बन रहा है, क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी खुद कुर्मी समुदाय से ही आते हैं.
झारखंड में कुर्मी समाज का 20 फीसदी से ज्यादा बड़ा वोटबैंक है, लेकिन यहां सरकार की ओर से 1932 का खतियान लागू करने के ऐलान के बाद कुर्मी समाज अब आंदोलन पर उतारू हो गया है. दरअसल, कुर्मी समाज अपने को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग कर रहा है. इस समय झारखंड में झामुमो और कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और इस सरकार पर कुर्मी आंदोलन का कोई ख़ास पड़ता नज़र नहीं आ रहा है.
बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड में कुर्मी और आदिवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है. आदिवासियों की आबादी कुर्मी समुदाय से तीन फीसदी ज्यादा है, जबकि यहाँ तकरीबन 23 फीसदी आदिवासी समुदाय राजनीतिक फैसलों में अहम भूमिका अदा करता है, ऐसे में नीतीश कुमार की जेडीयू अगर कुर्मी आंदोलन को समर्थन करती है तो झामुमो या झारखंड की अन्य स्थानीय पार्टियां उससे दूरी बना लेंगी।
झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य का स्पष्ट कहना है कि 1932 का खतियान झारखंड के आदिवासी-मूलवासी की पहचान है और जो भी इसका विरोध करेगा, उसे झारखंड विरोधी कहा जाएगा. ऐसे में ये बताना ख़ास हो गया है कि झामुमो के आदिवासी नेता कुर्मी आंदोलन का मुखर विरोध कर रहे हैं, जबकि अन्य दलों के नेता ने अब तक इसपर कोई बयानबाज़ी नहीं की है, वो इसपर बोलने से बच रहे हैं. गौरतलब है कि झारखंड में कुर्मी आंदोलन से 32 विधानसभा और चार लोकसभा क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं, और अब ये आंदोलन सिर्फ झारखंड तक सीमित भी नहीं है, अब यह आंदोलन झारखंड से बाहर उड़ीसा और पंश्चिम बंगाल तक पहुंच चुका है.
विपक्षी एकता पर बात करते हुए नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की बात ही नहीं की जा सकती, अब अगर कुर्मी आंदोलन की बात करें तो अगर इस आंदोलन में झामुमो जेडीयू के साथ नहीं आया तो कांग्रेस इस पर क्या कदम लेगी. फ़िलहाल, इस मुद्दे पर प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने बताया कि पार्टी ने एक विशेषज्ञ कमेटी बनाई है और रिपोर्ट आने के बाद ही पार्टी तय करेगी, उसे क्या स्टैंड लेना है.
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