नई दिल्ली : तीन सालों बाद आखिरकार मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में खड़गे 7,897 वोट लेकर अध्यक्ष बने. वहीं थरूर के हिस्से केवल 1072 वोट आए. खड़गे के मुकाबले उन्हें करीब 7 गुना कम वोट प्राप्त हुए हैं. लेकिन इसके क्या मायने हैं? क्या थरूर के […]
नई दिल्ली : तीन सालों बाद आखिरकार मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में खड़गे 7,897 वोट लेकर अध्यक्ष बने. वहीं थरूर के हिस्से केवल 1072 वोट आए. खड़गे के मुकाबले उन्हें करीब 7 गुना कम वोट प्राप्त हुए हैं. लेकिन इसके क्या मायने हैं? क्या थरूर के इन 1072 वोट के पीछे गांधी परिवार और कांग्रेस के लिए कोई सन्देश छिपा है?
थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव केवल अपने दम पर लड़ा और उन्हें एक हजार से भी अधिक वोट प्राप्त हुए. शरद पवार, राजेश पायलट और जितेंद्र प्रसाद जैसे दिग्गज नेताओं से भी अधिक वोट पाकर थरूर ने इतिहास रच दिया है. इस इतिहास में गांधी परिवार के लिए एक बड़ा सन्देश भी छिपा हुआ है. दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में भले ही गांधी परिवार तटस्ठ होने की बात करती हो लेकिन उनकी नज़दीकियां खड़गे से ही रहीं. खड़गे को गांधी परिवार का ही एक औपचारिक कैंडिडेट माना गया था. इससे ये तो स्वाभाविक था की उन्हीं की जीत होगी. लेकिन थरूर की हार के भी अलग मायने हैं.
थरूर के पास ना तो कांग्रेस के दिग्गजों का समर्थन था और ना ही जी-23 का. कई राज्यों में प्रदेश कांग्रेस समिति भी उनके समर्थन में है आई. भले ही उन्हें इन चुनावों में चुनौती का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने इस पेशकर चुनाव को दिलचस्प ही नहीं बनाया, बल्कि 1072 वोट भी हासिल किए हैं. बता दें, साल 2000 और 1997 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनावों में भी कई दिग्गज नेता भी थरूर के बराबर वोट नहीं ले पाए थे. इसमें सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट का नाम भी शामिल है.ऐसे में थरूर भले ही खड़गे से हार गए हों लेकिन ये चुनाव उनके लिए काफी फायदेमंद रहा.
यदि कांग्रेस पार्टी का बीते 25 वर्ष का इतिहास में देखा जाए तो थरूर ने बाकी के हारे हुए नेताओं से काफी अच्छा प्रदर्शन किया. पहली बार किसी नेता को हारने पर भी एक हजार वोट प्राप्त हुए. दूसरी ओर संगठनात्मक बदलाव लाने और सुधार के कदम उठाकर भी थरूर ने आम कार्यकर्ताओं का ध्यान खींचा है. इस कड़ी में वह खुद को पहली पंक्ति के नेता के तौर पर स्थापित कर चुके हैं.
शशि थरूर की इस ऐतिहासिक जीत में गांधी परिवार के लिए बेहद ख़ास संदेश छिपा है. संदेश है बदलाव को लेकर. शशि थरूर इन कांग्रेस चुनावों में बदलाव का प्रतीक बनकर उभरे. पार्टी के नेतृत्व का उनपर कोई दबाव नहीं था. उन्होंने ये चुनाव बदलाव लाने के लिए लड़ा. जहां कांग्रेस और गांधी परिवार को इस बात को समझने की जरूरत है. 1000 वोट इस बात का सबूत है कि पार्टी कार्यकर्त्ता भी अब पार्टी में बदलाव देखना चाहते हैं.
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