नई दिल्ली. देशभर में दशहरे पर रावण दहन की तैयारियां जोरों पर हैं, वहीं महाराष्ट्र में दशहरा रैली पर शिवसेना के दोनों गुट अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में जुटे हैं तो दिल्ली के रामलीला मैदान में रावण दहन की भव्य तैयारी हो रही है. बुराई पर अच्छाई की जीत के जीत के तौर पर […]
नई दिल्ली. देशभर में दशहरे पर रावण दहन की तैयारियां जोरों पर हैं, वहीं महाराष्ट्र में दशहरा रैली पर शिवसेना के दोनों गुट अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में जुटे हैं तो दिल्ली के रामलीला मैदान में रावण दहन की भव्य तैयारी हो रही है. बुराई पर अच्छाई की जीत के जीत के तौर पर देशभर में दशहरा मनाई जाती है, इसके साथ ही देशभर में रावण का पुतला भी जलाया जाता है. लेकिन मध्य प्रदेश में कुछ गांव ऐसे हैं जहां रावण को आस्था का प्रतीक माना जाता है और दशहरे के दिन यहां रावण का पुतला नहीं फूंका जाता बल्कि रावण की पूजा की जाती है. मध्य प्रदेश में ये मान्यता है कि जो लोग रावण की पूजा करके उनसे मन्नत मांगते हैं उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है.
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के भाटखेड़ी गांव में सड़क के किनारे रावण और कुंभकर्ण की प्रतिमा बनी हुई है. यहां के लोगों का मानना है कि ये रावण मन्नत पूर्ण करने वाला है. इसलिए ग्रामीण यहां नियमित पूजा अर्चना करते हैं. यहां आस-पास के गांव के लोग भी मन्नत मांगने के लिए आते हैं और मन्नत पूरी हो जाने पर प्रसाद चढ़ाया जाता है. इतना ही नहीं, शारदीय नवरात्रि के दौरान यहां पर नौ दिन तक रामलीला का आयोजन किया जाता है और दशहरे के दिन रावण की पूजा अर्चना कर राम और रावण के पात्रों द्वारा भाला छुआ कर गांव और जनकल्याण की खुशी के लिए मनौती मांगी मानी जाती है.
रावण की पत्नी मंदोदरी मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले से मानी जाती है इसलिए यहां रावण को दामाद के रूप में पूजा जाता है, ऐसे में रावण को यहाँ सम्मान के साथ रावण बाबा बोला जाता है. दशहरे दिन यहां रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है, बल्कि इस दिन रावण की नाभि में रुई में तेल लेकर लगाया जाता है और रावण की पूजा की जाती है. मान्यता है कि ऐसा करने से रावण की नाभि में लगे तीर का दर्द कम हो जाता है. इस दिन लोग रावण की पूजा करके उनसे विश्वकल्याण और गांव के लिए मन्नत मानी जाती है.
मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के काचिखली गांव में भी दशहरे के दिन रावण का पुतला नहीं फूंका जाता है बल्कि रावण की पूजा की जाती है. इस जगह के बारे में ऐसी मान्यता है कि यदि रावण की पूजा नहीं की जाएगी तो गांव जलकर राख हो जाएगा. इसीलिए डर से गाँव वाले यहां पर आज भी दशहरे के दिन रावण का दहन न करके उसकी पूजा करते हैं.