सबसे अमीर और कंजूस राजा ‘निजाम’ के किस्से! बची हुई सिगरेट का हिस्सा भी पी जाता था

नई दिल्ली : भारत का जब विभाजन हुआ तो इसमें कई रियासतें थीं. उन्हीं रियासतों में से सबसे बड़ी रियासत हैदराबाद का राजा निजाम आज तक अपनी धन दौलत, अपने राज पाठ और अपनी कंजूसी के लिए जाना जाता है. दुनिया में जब भी किसी व्यक्ति के कंजूसी के किस्सों को याद किया जाएगा तो […]

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सबसे अमीर और कंजूस राजा ‘निजाम’ के किस्से! बची हुई सिगरेट का हिस्सा भी पी जाता था

Riya Kumari

  • September 1, 2022 9:24 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली : भारत का जब विभाजन हुआ तो इसमें कई रियासतें थीं. उन्हीं रियासतों में से सबसे बड़ी रियासत हैदराबाद का राजा निजाम आज तक अपनी धन दौलत, अपने राज पाठ और अपनी कंजूसी के लिए जाना जाता है. दुनिया में जब भी किसी व्यक्ति के कंजूसी के किस्सों को याद किया जाएगा तो उसमें निजाम का नाम जरूर लिया जाएगा. हैरानी की बात ये है कि उनके पास बेशुमार दौलत थी बावजूद इसके वह आज तक के सबसे कंजुद व्यक्तियों में गिने जाते हैं.

राजा भोज से भी अधिक की थी संपत्ति

हैदराबाद रियासत के शासक निजाम ने अपनी कंजूसी से भारत में सभी को हैरान कर दिया था. उनका नाम उस समय के सबसे ताकतवर लोगों में तो था ही साथ ही उन्हें सबसे कंजूस व्यक्ति के रूप में भी दुनिया देखती थी. 1947 के समय में जब देश आज़ाद हुआ तो निजाम के पास पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा दौलत थी. कहा जाता है कि हैदराबाद के शासक से अधिक पैसा, सोना-चांदी-हीरे-जवाहरात किसी और शासक के पास नहीं थे.

लेकिन इस पैसे को लेकर ही निजाम बदनाम भी था क्योंकि वह इतिहास का सबसे ज़्यादा कंजूस व्यक्ति था. आज के समय में निजाम के परिवार के करोड़ों-अरबों रुपये विदेशी बैंकों में जमा हैं जिसके लिए उसके वंशज अदालतों में लड़ाइयां लड़ रहे हैं. इन पैसों का किसी को कोई लाभ नहीं मिला है.

पूरी दुनिया में दौलत के चर्चे

आज़ादी से करीब चार दशक पहले साल 1911 में ओसमान अली खान हैदराबाद के निजाम बने थे. देश के आज़ाद होने के बाद हैदराबाद रियासत के देश में मिलन तक निजाम ने ही उसपर राज किया था. निजाम की कुल नेट वर्थ 17.47 लाख करोड़ यानी 230 बिलियन डॉलर थी. निजाम की कुल संपत्ति उस समय अमेरिका की कुल जीडीपी की 2 फीसदी के बराबर मानी जाती थी. उसके पास अपनी करेंसी थी, सिक्का ढालने के लिए अपना टकसाल था, 100 मिलियन पाउंड का सोना, 400 मिलियन पाउंड के जवाहरात भी निजाम के नाम थे.

आमदनी की बात करें तो इसका सबसे बड़ा जरिया गोलकोंडा माइंस थीं उस समय ये माइंस दुनिया भर में हीरा सप्लाई करने के लिए एकमात्र जरिया थीं. इतना ही नहीं पास निजाम जैकब डायमंड का भी मालिक था जो उस समय दुनिया के सात सबसे महंगे हीरों में गिना जाता था. इस हीरे का इस्तेमाल वह पेपरवेट की तरह किया करता था जिसकी कीमत उस समय में 50 मिलियन पाउंड के बराबर हुआ करती थी.

महाकंजूसी की दास्तां

मशहूर लेखक डोमिनिक लैपीयरे और लैरी कॉलिन्स ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में निजाम की कंजूसी का ज़िक्र किया है. वह लिखते हैं, ‘निजाम ओसमान अली खान केवल पांच फीट तीन इंच के छरहरे व्यक्तित्व के इंसान थे. निजाम एक पढ़ा-लिखा, साहित्यपसंद और धर्मपरायण इंसान था. उनके राज्य में दो करोड़ हिंदू और तीस लाख मुसलमान की प्रजा हुआ करती थी.

साहब उस वक्त के भारतीय राजाओं-नवाबों में सबसे विकट माने गए हैं. निजाम को अंग्रेजों ने ‘एग्जाल्टेड हाइनेस’ की अत्यंत उच्च पदवी दी थी, क्योंकि वह एकमात्र ऐसे राजा थे जिसने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान निजाम ने इंग्लैंड को ढाई करोड़ पौण्ड की आर्थिक सहायता दी थी. साल 1947 में निजाम इस धरती के सबसे धनी आदमी थे. क्वीन एलिजाबेथ-2 की ताजपोशी और शादी में निजाम का गिफ्ट दिया शाही नेकलेस काफी चर्चा में रहा था. कहा जाता है कि निजाम के इस तोहफे में 300 हीरे जड़े थे.’

कंजूसी के किस्से

-किस्सों में निजाम के कई किस्से हैं जो उनकी कंजूसी को बताते हैं. कहा जाता है कि ‘यदि वह किसी राजकीय समारोह में लोगों को शैम्पेन पिलाने पर मजबूर हो जाते थे तो वह अपनी गिद्ध-नजरें हमेशा बोतलों पर ही टिका कर रखते थे. बोतलों और उनके बीच का फासला जैसे-जैसे बढ़ता, वैसे-वैसे उनकी अकुलाहट बढ़ती.

-एक क़िस्सा है कि जब लॉर्ड वैवेल, वायसराय की हैसियत से हैदराबाद के दौरे पर पधारने वाले थे तब निजाम ने उनके लिए दिल्ली तार भिजवाया था बस ये पूछने के लिए कि क्या वायसराय महोदय, युद्ध के दिनों की ऐसी महंगाई के बावजूद, शैम्पेन पीने का आग्रह रखेंगे?’

-उस समय ‘अधिकांश राज्यों में साल में एक बार प्रमुख नागरिक द्वारा अपने शासक के सामने किसी सोने की चीज़ को पेश करने का रिवाज था. इसे सांकेतिक उपहार माना जाता था जिसे शासक छूता, फिर उसके स्वामी को वापस कर देता. लेकिन निजाम वापस करने की जगह हर चीज को लपक लेते और सिंहासन के बगल में रखे कागज के थैले में डालते जाते.

एक बार हुआ यूं कि सोने का कोई सिक्का नीचे गिर गया तो निजाम उसके पीछे इस बुरी तरह लपके कि वह घुटनों और हथेलियों के बल ही चलने लगे. इतने बड़े राजा की ये दशा देख आखिर सिक्के के स्वामी ने ही उसे दौड़कर उठाया और निजाम को दिया.’

– निजाम का इलेक्ट्रो-कार्डियोग्राम लिया जाना था जो लेने के लिए बम्बई से डॉक्टर आया था. महल में जब डॉक्टर ने अपना यंत्र चालू किया तो वह ऐसा न कर सका, उसे आश्चर्य हुआ. कारण की खोजबीन हुई, तो पता चलता है कि निजाम ने उस कमरे का करंट ही कटवा दिया था. उन्हें अपने स्वास्थ्य से अधिक बिजली का बिल ज्यादा न आए इसकी चिंता थी.

-शयनकक्ष भी किसी चरम सीमा की गरीबी और बदहाली का साक्षात अवतार कहा जाए तो झूठ नहीं होगा. उसमें एक अत्यंत पुराना पलंग, टूटी टेबल, सड़ी हुई तीन कुर्सियां, राख से लदी ऐश-ट्रे, कचरे से सनी रद्दी की टोकरियां, शाही कागजात के धूल-सने ढेर, कोने-कोने में मकड़ी के जालों का जंगल था. हालांकि निजाम की दौलत बेहिसाब थी. इतनी की अगर किसी और के पास होती तो वह सोने के बिस्तर पर ही सोता लेकिन निजाम तो कुछ अलग इंसान थे.

-गाड़ियों के भी क्या कहने. उस समय में राजा महाराजाओं के पास रोल्स रॉयल्स की एक से बढ़कर एक शानदार कारें हुआ करती. पर निजाम तो निजाम थे. उनके आशियाने में भी गाड़ियां कम ना थी लेकिन ये गाड़ियां उन्होंने कभी खरीदी नहीं थी. दरअसल जब भी राजधानी में उनकी शाही निगाहें किसी शानदार गाड़ी पर पड़ती थी तो वह उसके मालिक के पास एक संदेश भिजवा दिया करते थे कि आपकी गाड़ी हमें तोहफे में चाहिए.

 

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