नई दिल्ली. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कहा है कि अल्पसंख्यकों पर लगातार बढ़ते हमलों की वजह सिर्फ असिहष्णुता नहीं है बल्कि यह मुसलमानों के खिलाफ लगातार चलाए जाने वाले अभियान का नतीजा है. इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा जिम्मेदार है.
माकपा के मुखपत्र पीपुल्स डेमोक्रेसी में लिखा गया है कि यह जनता का ध्यान दाल की आसमान छूती कीमतें, कृषि संकट और रोजगार के घटते अवसरों से ध्यान हटाने के लिए भी किया जा रहा है.
लेख में दादरी में अखलाक, हिमाचल के सिरमौर में नोमान और ऊधमपुर में ट्रक पर पेट्रोल बम के हमले में जाहिद की मौत का जिक्र भी किया गया है. इसमें कहा गया कि इन सभी को गोहत्या करने या करने की कोशिश करने की आड़ में मारा गया. इन सभी में आरएसएस जिम्मेदार है.
लेख में कहा गया है कि इसी तरह मैनपुरी में दो मुसलमानों की बर्बर पिटाई की गई और उत्तर प्रदेश के बहराइच में अफसर नाम के लड़के को पीटा गया. यह गोहत्या के खिलाफ मुस्लिम समुदाय पर निशाना लगाकर छेड़े गए अभियान का नतीजा हैं. हर मामले में मरने वाला या पिटने वाला मुसलमान है.
माकपा के मुखपत्र में कहा गया है कि गोहत्या के खिलाफ अभियान “उस सांप्रदायिक विचारधारा का नतीजा है जो मुसलमानों को हिंदुओं और उनके धार्मिक विश्वासों का दुश्मन बताती है. लेख में कहा गया है कि नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान मांस निर्यात का मुद्दा उठाया और “जान बूझकर भैंस के मांस को गोमांस (बीफ) में मिलाकर भ्रम फैलाया था.
माकपा ने लिखा है कि मोदी राज के आने के बाद से आरएसएस और इसके संगठन समाज के सांप्रदायिकरण में लगे हुए हैं. इनकी योजना कितनी पुख्ता है इसका सबूत इस मामले में पुलिस, प्रशासन और यहां तक कि न्यायपालिका के रवैये से मिल रहा है.
लेख में कहा गया है कि इन हमलों का मकसद जानवरों के व्यापार और चमड़े (लेदर) के कारोबार में लगे लाखों मुसलमानों की रोजी रोटी को छीनना है. मुसलमानों के बाद दलित इसमें पीड़ित होंगे क्योंकि वे चमड़ा उतारने और बनाने के काम में लगे हुए हैं.