नई दिल्ली : एक बार फिर भोजपुरी भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई है. इस बार ये मांग निरहुआ ने उठाई है. हाल ही में हुए उपचुनवों में उत्तरप्रदेश में आजमगढ़ को बीजेपी का गढ़ बनाने वाले सांसद निरहुआ उर्फ़ दिनेश लाल यादव ने एक बार फिर भोजपुरी भाषा को […]
नई दिल्ली : एक बार फिर भोजपुरी भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई है. इस बार ये मांग निरहुआ ने उठाई है. हाल ही में हुए उपचुनवों में उत्तरप्रदेश में आजमगढ़ को बीजेपी का गढ़ बनाने वाले सांसद निरहुआ उर्फ़ दिनेश लाल यादव ने एक बार फिर भोजपुरी भाषा को मान्य भाषा बनाने की मांग की है.
दरअसल साल 1960 से भोजपुरी भाषा को संविधान के 8वीं अनुसूची में शामिल करने की माँग उठ रही है. बता दें, संविधान के 8वीं अनुसूची में उन भाषाओं को जगह दी गई है जिसकी अपनी कोई लिपि हो और जिसे बोलने वालों की संख्या अधिक हो. इस सूची में शामिल सभी भाषाएं आधिकारिक रूप से भाषा की श्रेणी में आती हैं. यदि कोई भाषा इस श्रेणी से बाहर है तो वह अब तक केवल बोली ही है जैसा भोजपुरी के साथ हो रहा है. इसके भाषा ना होने के पीछे तर्क यह है कि भोजपुरी कि अपनी कोई लिपि नहीं होती है.
आपको ये जानकार हैरानी होगी कि समय-समय पर भोजपुरी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग उठती रही है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि भारत में इस भाषा को एक बड़ा वर्ग बोलता है. इतना ही नहीं भोजपुरी दुनिया के 15 से अधिक देशों जिनमें मॉरीशस, सूरीनाम, फ़िजी, ब्रिटिश गुयाना, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, हॉलैंड, नेपाल और दक्षिण अमेरिका के कई द्वीप शामिल हैं में बोली भी जाती है.
भारत में इसे बोलने वाला अधिकांश वर्ग बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में है. इसके अलावा भी भोजपुरी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, सूरत और अहमदाबाद जैसे शहरों में आए लोगों के बीच भी प्रसिद्द भाषा है. एक अनुमान के मुताबिक इस भाषा को देश और दुनिया भर में 15 करोड़ के आसपास लोग बोलते हैं. संसद में दिए गए अलग-अलग भाषणों में अलग-अलग सांसदों ने ये आंकड़ा साझा किया है. 2011 की जनगणना रिपोर्ट बताती है कि भारत में तक़रीबन पांच करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं.
इस मुद्दे पर 18 बार प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया जा चुका है लेकिन आज तक ये बहस जारी है. संसद में इससे जुड़े कई किस्से भी हैं. एक बार तमिल भाषी गृह मंत्री पी चिदंबरम ने साल 2012 में सांसद जगदंबिका पाल, रघुवंश प्रसाद सिंह और शैलेन्द्र सिंह की माँग पर सदन को भोजपुरी में आश्वासन देते हुए कहा था, ” हम रउआ सब के भावना समझतानी”. उनका यह आश्वासन काफी सुर्खियों में भी रहा था. बावजूद इसके भोजपुरी के 8वीं अनुसूची में शामिल किए जाने का इंतज़ार ख़त्म नहीं हुआ.
आजमगढ़ से भाजपा के सांसद दिनेश लाल यादव उर्फ़ निरहुआ ने संसद के अंदर अपना पहला भाषण दिया। पहले भाषण में भोजपुरी को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की माँग को दोहराया गया. क्योंकि संसद के अंदर भोजपुरी भाषा में बोलने की इजाज़त नहीं है इसलिए उनका पूरा भाषण हिंदी में था. लेकिन अंत में उन्होंने ‘जय भारत जय भोजपुरी’ कह कर अपना भाषण ख़त्म किया. बता दें, ये वहीं शब्द हैं जिन्हें निरहुआ ने सांसद के तौर पर शपथ ग्रहण करने के बाद भी कहा था. इस नारे के कारण किसी को उनकी इस मांग को लेकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ.
निरहुआ से पहले भी कई बार भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को दोहराया गया है. निरहुआ से पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर पूर्व कांग्रेस नेता और अब बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल, रघुवंश प्रसाद और रविशंकर प्रसाद सभी इस मुद्दे को उठाते आए हैं. बता दें, संविधान की 8वीं अनुसूची में शुरुआत में 14 भाषाओं को शामिल किया गया था और 38 अलग-अलग भाषाओं शामिल किए जाने की मांग आज तक की जा रही है. इन भाषाओं में से एक है भोजपुरी भाषा. जिसकी मांग को निरहुआ ने ताजा कर दिया.
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