नई दिल्ली: क्या छोटे बच्चों को भी हो सकता है डायबिटीज? वैसे तो डायबिटीज दो तरह के होते है टाइप 1 डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज। आपको आज दोनों तरह के डायबिटीज में फर्क बताते हैं. टाइप 1 डायबिटीज में आपके शरीर में इंसुलिन बनता ही नहीं है इसलिए इसमें मरीज को समय-समय पर इंसुलिन […]
नई दिल्ली: क्या छोटे बच्चों को भी हो सकता है डायबिटीज? वैसे तो डायबिटीज दो तरह के होते है टाइप 1 डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज। आपको आज दोनों तरह के डायबिटीज में फर्क बताते हैं. टाइप 1 डायबिटीज में आपके शरीर में इंसुलिन बनता ही नहीं है इसलिए इसमें मरीज को समय-समय पर इंसुलिन के इंजेक्शन या फिर पंप के जरिए इंसुलिन को लेना पड़ता है। लेकिन टाइप 2 डायबिटीज में इंसुलिन बहुत कम बनता है इसलिए इसमें दवाओं के जरिए शरीर में इंसुलिन की मात्रा बढ़ाने की कोशिश की जाती है.
दुनियाभर की बात करें तो डायबिटीज के ज्यादातर मरीज टाइप 2 डायबिटीज के है जबकि, टाइप 1 डायबिटीज से शिकार लोगों की संख्या दुनियाभर में बहुत कम है। दरअसल, टाइप 1 डायबिटीज में आपके शरीर में इन्सुलिन बनता ही नहीं है. इस तरीके की जो स्थिति होती है वह जन्मजात स्थिति होती है और ये एक ऐसी परेशानी है जो जिंदगी भर बनी रहती है जो ठीक नहीं होती है।
इतना ही नहीं, टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्त बच्चों में मेंटल हेल्थ यानी की मानसिक समस्याओं का खतरा भी ज्यादा होता है। ऐसे में टाइप 1 डायबिटीज के जो बच्चें है और उनके परिवार है उनको डायबिटीज केयर के दौरान साइकोलॉजिकल कंसल्टिंग की जानी चाहिए। चलिए आइये जानते हैं कि डायबिटीज और मेंटल हेल्थ का क्या कनेक्शन है?
रिसर्च में ये खुलासा हुआ कि टाइप 1 डायबिटीज वाले टीनएजर्स में (depression), (anxiety) और तनाव से डिसॉर्डर्स का रिस्क काफी ज्यादा होता हैं। बच्चों में मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम की देखभाल करना बेहद जरुरी होता है, लेकिन कई बार बच्चों के माता-पिता को मेंटल हेल्थ कंसल्टेशन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है. चलिए आइए जानते हैं कि बच्चे को डायबिटीज से मैनेज करने में मदद कैसे करें?
डायबिटीज के बच्चों के लिए हेल्दी रहने का मतलब है अपने ब्लड शुगर लेवल को हर हाल में नॉर्मल या उससे कम रेंज में रखना। ऐसी ही कुछ टिप्स के बारे में जानते हैं जिनका ध्यान आपको अपने बच्चे के लिए रखना चाहिए:
आप अपने बच्चे के मेडिकल सपोर्ट स्टाफ से बच्चे के हेल्थ की समय-समय पर पूरी जानकारी लेते रहें और उसके हिसाब से आप अपने बच्चे की मदद करें।
बच्चे के ब्लड शुगर लेवल को नियमित रूप से चेक करते रहें। इसके साथ ही उनको समय-समय पर दवाइयां देते रहें।
केवल डॉक्टर की सलाह से ही बच्चे को दवाएं और इंसुलिन दें। अपनी मर्ज़ी से कोई भी दवाई न दें.
इसके अलावा आप बच्चे को हेल्दी मील प्लान फॉलो करने के लिए कहें।
अपने बच्चे को टाइम पर नाश्ता और खाना दें और बच्चे की डाइट में हेल्दी फूड्स को जरूर शामिल करें।
बच्चे के खाने-पीने और लाइफस्टाइल से जुड़ी अच्छी आदतों का ध्यान रखें।