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हिंदी भाषा को लेकर एक और द्रमुक नेता का विवादित बयान, बोले- सिर्फ शुद्र बनाएगी

चेन्‍नई, टॉलीवूड और बॉलीवुड में भाषा को लेकर चल रही बयानबाज़ी ने अब राजनीतिक रूप ले लिया है. जहां अब द्रमुक नेता और राज्यसभा सांसद टीकेएस एलनगोवन ने हिंदी भाषा को लेकर विवादास्पद बयान दिया है. द्रमुक नेता ने जहां हिंदी भाषा को शुद्र बनाने वाला बताया है. क्या बोले एलनगोवन? सांसद टीकेएस एलनगोवन ने […]

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हिंदी भाषा को लेकर एक और द्रमुक नेता का विवादित बयान, बोले- सिर्फ शुद्र बनाएगी
  • June 6, 2022 7:20 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 years ago

चेन्‍नई, टॉलीवूड और बॉलीवुड में भाषा को लेकर चल रही बयानबाज़ी ने अब राजनीतिक रूप ले लिया है. जहां अब द्रमुक नेता और राज्यसभा सांसद टीकेएस एलनगोवन ने हिंदी भाषा को लेकर विवादास्पद बयान दिया है. द्रमुक नेता ने जहां हिंदी भाषा को शुद्र बनाने वाला बताया है.

क्या बोले एलनगोवन?

सांसद टीकेएस एलनगोवन ने हाल ही में हिंदी भाषा को लेकर काफी विवादास्पद बयान दिया है. जिसमें उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा बोलने वाले राज्य ज़्यादा विकसित नहीं हैं. उन्होंने आते भाषा के संबंध में कहा कि यह तमिलों का दर्ज़ा घटा कर शुद्र कर देगी. उन्होंने कहा है कि जिन राज्यों की मातृ भाषा उनकी स्थानीय भाषा है वह अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. बता दें, द्रमुक सांसद का यह बयान भाषा थोपने को लेकर द्रविड़र कझगम की ओर से आयोजित पत्रकार वार्ता में सामने आया है. अब उनकी यह टिप्पणी वायरल भी हो रही है.

अमित शाह की भी आलोचना

इतना ही नहीं द्रमुक नेता ने हिंदी की पैरवी करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भी आलोचना की. उनकी टिप्पणी कुछ इस प्रकार थी, “ हिंदी क्या करेगी? सिर्फ हमें शुद्र बनाएगी. यह हमें फायदा नहीं देगी.” बता दें, ‘शुद्र’ शब्द का इस्तेमाल सबसे निचले वर्ण के लिए किया जाता रहा है. जब द्रमुक नेता से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात क्या विकसित राज्य हैं या नहीं? का सवाल पूछा गया तब उन्होंने (हिंदी भाषी) मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और नव निर्मित राज्य (ज़ाहिर तौर पर उत्तराखंड) का हवाला देते हुए कहा कि ‘मैं यह इसलिए पूछ रहा हूं, क्योंकि इन राज्यों की मातृभाषा हिंदी नहीं है. अविकसित राज्य (हिंदी भाषी) मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और नव निर्मित राज्य (ज़ाहिर तौर पर उत्तराखंड) है. मैं हिंदू क्यों सीखूं.?”

एक संवेदनशील मसला

द्रमुक नेता ने आगे अपने बयान में कहा, “तमिलनाडु राज्य में लोगों पर हिंदी को कथित रूप से थोपना एक संवेदनशील मुद्दा है और द्रमुक ने 1960 के दशक में जनता का समर्थन जुटाने के लिए इस मुद्दे का राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया था जिसमें उन्हें कामयाबी भी मिली थी. उन्होंने आगे हिंदी को ‘थोपने’ के प्रयासों की निंदा की है. साथ ही राज्य सरकार का यह भी आरोप है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में हिंदी को थोपा गया है.

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