Holashtak Holi 2021: इस बार 22 मार्च से होलाष्टक प्रारंभ होंगे जो 28 मार्च को समाप्त होंगे। होलिका दहन रविवार 28 मार्च को होगा। होलिका दहन मुहूर्त रविवार शाम 6 बज कर 36 मिनट 38 सेकेंड से 8 बजकर 56 मिनट और 23 सेकंड तक रहेगा।
इस बार 22 मार्च से होलाष्टक प्रारंभ होंगे जो 28 मार्च को समाप्त होंगे। होलिका दहन रविवार 28 मार्च को होगा। होलिका दहन मुहूर्त रविवार शाम 6 बज कर 36 मिनट 38 सेकेंड से 8 बजकर 56 मिनट और 23 सेकंड तक रहेगा। जिसकी कुल अवधि 2 घंटे 19 मिनट 39 सेकंड तक रहेगी। होली के दिन पूर्णिमा तिथि 28 मार्च को सुबह 3:27 से शुरू होकर 29 मार्च को रात 12:17 तक रहेगी। होलाष्टक से प्रतिबंधित रहेंगे शुभ कार्य हिंदू धर्म के अनुसार होली से 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाता है। जिस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है।
यही कारण है कि शादी, गृह प्रवेश समेत अन्य मांगलिक कार्य इस दौरान नहीं किए जाते हैं। पंचांग के अनुसार इस वर्ष होलाष्टक का आरंभ 22 मार्च से होने जा रहा है। इस दिन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि रहेगी. चंद्रमा मिथुन राशि में विराजमान रहेगे। इस दिन आर्द्रा नक्षत्र रहेगा। अन्य ग्रहों की बात करें तो वृष राशि में राहु और मंगल, वृश्चिक राशि में केतु, मकर राशि में गुरू और शनि, कुंभ राशि में बुध और मीन राशि में सूर्य व शुक्र विराजमान रहेंगे। होलाष्टक का समापन होलिका दहन के दिन होता है। इस वर्ष होलिका दहन 28 मार्च को किया जाएगा. रंगों की होली 29 मार्च को खेली जाएगी।
फुलेरा दूजा से होली का आरंभ माना जाता है.15 मार्च को फुलेरा दूज का पर्व था? इस दिन भगवान श्रीकृष्ण राधा के साथ फुलों से खेलते हैं। मथुरा और बृज में होली का महोत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। होलाष्टक में करें भगवान विष्णु की पूजा मिलेगा मनचाहा फल होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। वही खरमास भी आरंभ हो चुकें। सूर्य के मीन राशि में प्रवेश के साथ खरमास का आरंभ हो चुका है।
खरमास में मांगलिक कार्यों को करना शुभ नहीं माना जाता है??। होलाष्टक के दौरान पूजा पाठ का विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इस दौरान मौसम में तेजी बदलाव होता है। इसलिए अनुशासित दिनचर्या को अपनाने की सलाह दी जाती है। होलाष्टक में स्वच्छता और खानपान का उचित ध्यान रखना चाहिए। इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा से मनचाहा फल प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह हुआ होली मनाने का शुभारंभ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु भक्त प्रहलाद को राक्षस हिरण्यकश्यप की आज्ञा पर जब उसकी बहन और प्रहलाद की बुआ होलिका आग पर बिठाकर मारने की कोशिश करती है तो वह खुद जल जाती है। इसके नाम पर ही होलिका दहन की परंपरा है।
जानकारों की मानें तो होलिका का अर्थ समाज के बुराई को जलाने के प्रतिक के तौर पर मनाया जाता है। ज्ञात हो कि राक्षस हिरण्यकश्यप चाहता था कि लोग उसे भगवान की तरह पूजे लेकिन, बेटे को भगवान विष्णु की भक्ति पसंद थी। इसी से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने होलिका को गोद में रखकर जलाने का निर्देश दिया था। दरअसल, होलिका को नहीं जलने के लिए एक वर वाला कपड़ा प्राप्त था। लेकिन, प्रहलाद को लेकर जब वह अग्नि में बैठी तो कहा जाता है कि श्री हरि विष्णु की कृपा से वह वस्त्र होलिका के उपर से उड़ कर प्रहलाद पर लिपट गया। जिसके कारण प्रहलाद को अग्नि कोई हानि नहीं पहुंचा पाई, जबकि होलिका वस्त्र हट जाने के चलते जल गई।
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