Holi 2021: आखिर क्यों किया जाता है होलिका का दहन? जानिए इसकी पौराणिक कथा

Holi 5021: होली का दहन भक्त प्रहलाद की याद में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के काल में इस त्योहार से रंग जुड़ गया और इसे उत्सव की तरह मनाया जाने लगा। आओ जानते हैं भक्त प्रहलाद की कथा..

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Holi 2021: आखिर क्यों किया जाता है होलिका का दहन? जानिए इसकी पौराणिक कथा

Aanchal Pandey

  • March 20, 2021 1:05 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 years ago

नई दिल्ली/ होली का दहन भक्त प्रहलाद की याद में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के काल में इस त्योहार से रंग जुड़ गया और इसे उत्सव की तरह मनाया जाने लगा। आओ जानते हैं भक्त प्रहलाद की कथा। एक बार असुरराज हिरण्यकशिपु विजय प्राप्ति के लिए तपस्या में लीन था मौका देखकर देवताओं ने उसके राज्य पर कब्जा कर लिया। उसकी गर्भवती पत्नी को ब्रह्मर्षि नारद अपने आश्रम में ले आए। वे उसे प्रतिदिन धर्म और विष्णु महिमा के बारे में बताते। यह ज्ञान गर्भ में पल रहे पुत्र प्रहलाद ने भी प्राप्त किया। बाद में असुरराज ने ब्रह्मा के वरदान से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली तो रानी उसके पास आ गई। वहां प्रहलाद का जन्म हुआ।

बाल्यावस्था में पहुंचकर प्रहलाद ने विष्णु- भक्ति शुरू कर दी। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने गुरु को बुलाकर कहा कि ऐसा कुछ करो कि यह विष्णु का नाम रटना बंद कर दे। गुरु ने बहुत कोशिश की किन्तु वे असफल रहे। तब असुरराज ने अपने पुत्र की हत्या का आदेश दे दिया। उसे विष दिया गया, उस पर तलवार से प्रहार किया गया, विषधरों के सामने छोड़ा गया, हाथियों के पैरों तले कुचलवाना चाहा, पर्वत से नीचे फिंकवाया, लेकिन ईश कृपा से प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।

हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को बुलाकर कहा कि तुम प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ जाओ, जिससे वह जलकर भस्म हो जाए। होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि तब तक कभी हानि नहीं पहुंचाएगी, जब तक कि वह किसी सद्वृत्ति वाले मानव का अहित करने की न सोचे। अपने भाई की बात को मानकर  होलिका भतीजे प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ गई। उसका अहित करने के प्रयास में होलिका तो स्वयं जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद हंसते हुए अग्नि से बाहर आ गया। इसलिए होली पर्व मनाते समय वास्तविक भाव को ध्यान में रखकर होली दहन करें। इसके लिए फिर आप चाहे तो विगत वर्षों के बुरे अनुभवों और असफलताओं को एक कागज पर लिखकर अग्नि को समर्पित कर दें। अपने मन में चल रहे नकारात्मक भावों को होली दहन में डाल दें। तभी आप भी सकारात्मकता सोच से आगे बढ़ते हुए प्रहलाद की तरह ईश कृपा के पात्र बन जाएंगे।

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