Iffco Sahitya Samman: रणेन्द्र को श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान

Iffco Sahitya Samman: इफको द्वारा वर्ष 2020 के ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान’ के लिए कथाकार श्री रणेन्द्र के नाम की घोषणा की गई है. सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ. नित्यानन्द तिवारी की अध्यक्षता वाली चयन समिति में वरिष्ठ कथाकार श्रीमती चंद्रकांता, कवि-पत्रकार श्री विष्णु नागर, लेखक प्रो. रविभूषण, वरिष्ठ आलोचक श्री मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और वरिष्ठ कवि डॉ. दिनेश कुमार शुक्ल शामिल थे.

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Iffco Sahitya Samman: रणेन्द्र को श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान

Aanchal Pandey

  • December 5, 2020 7:57 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 years ago

Iffco Sahitya Samman:  उर्वरक क्षेत्र की अग्रणी सहकारी संस्था इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) द्वारा वर्ष 2020 के ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान’ के लिए कथाकार श्री रणेन्द्र के नाम की घोषणा की गई है. सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ. नित्यानन्द तिवारी की अध्यक्षता वाली चयन समिति में वरिष्ठ कथाकार श्रीमती चंद्रकांता, कवि-पत्रकार श्री विष्णु नागर, लेखक प्रो. रविभूषण, वरिष्ठ आलोचक श्री मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और वरिष्ठ कवि डॉ. दिनेश कुमार शुक्ल शामिल थे. इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने ट्वीट के जरिये रणेन्द्र को बधाई दी है. वर्ष 2020 के श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान के लिए आदिवासी जीवन पर लिखने वाले कथाकार श्री रणेन्द्र को चुनने के लिए उन्होंने सम्मान चयन समिति के प्रति आभार व्यक्त किया है.

श्री रणेन्द्र का जन्म 10 फरवरी 1960 को बिहार के नालंदा जिले में एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में हुआ. रणेन्द्र ने आदिवासी जीवन को अपनी लेखनी का मुख्य विषय बनाया है. अपनी रचनाओं में वे वैश्वीकरण एवं विकास के दौर में आदिवासी समुदायों के अंदर हो रहे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की बारीकी से पड़ताल करते हैं. अपने पहले ही उपन्यास ‘ग्लोबल गाँव के देवता’ से वे साहित्य जगत में चर्चा में आए. ‘असुर’ के जीवन के माध्यम से लेखक ने इस उपन्यास में आदिवासी समाज को देखने का नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है. ‘गायब होता देश’ उनका दूसरा उपन्यास है जिसमें ‘मुंडा’ आदिवासियों के जीवन संघर्ष का चित्रण किया गया है. अपनी इन रचनाओं में उन्होंने अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, विस्थापन, घुसपैठ, स्त्री-शोषण, धार्मिक-भाषिक अस्मिता जैसे प्रश्नों को संवेदनशीलता के साथ उठाया है. रणेन्द्र ने आदिवासी जीवन को उसकी संपूर्णता में चित्रित किया है. आदिवासियों के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक जीवन की विशेषताओं के साथ-साथ उनकी विसंगतियों को भी वे सामने लाते हैं.

कहानी और उपन्यास के साथ-साथ उन्होंने कविताएं भी लिखीं हैं. उनकी रचनाएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रही हैं. अब तक उनके दो कहानी संग्रह, ‘रात बाकी’ और अन्य कहानियां’ तथा ‘छप्पन छुरी बहत्तर पेंच’ नाम से प्रकाशित हो चुके हैं. उनकी कविताओं का संकलन ‘थोड़ा सा स्त्री होना चाहता हूं’ नाम से प्रकाशित है. उन्होंने 1999 से 2005 के दौरान ‘कांची’ नामक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का संपादन भी किया है. शास्त्रीय संगीत के घरानों पर आधारित उनका उपन्यास ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ जल्दी ही प्रकाशित होने वाला है.

मूर्धन्य कथाशिल्पी श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में वर्ष 2011 में शुरू किया गया यह सम्मान प्रत्येक वर्ष ऐसे हिन्दी लेखक को दिया जाता है जिसकी रचनाओं में मुख्यत: ग्रामीण व कृषि जीवन तथा हाशिए के लोग, विस्थापन आदि से जुड़ी समस्याओं, आकांक्षाओं और संघर्षों का चित्रण किया गया हो.

अब तक यह सम्मान विद्यासागर नौटियाल, शेखर जोशी, संजीव, मिथिलेश्वर, अष्टभुजा शुक्ल, कमलाकांत त्रिपाठी, रामदेव धुरंधर, रामधारी सिंह ‘दिवाकर’ और महेश कटारे को दिया गया है. सम्मानित साहित्यकार को एक प्रतीक चिह्न, प्रशस्ति पत्र तथा ग्यारह लाख रुपये की राशि का चैक प्रदान किया जाता है. श्री रणेन्द्र को यह सम्मान 31 जनवरी, 2021 को नई दिल्ली में एक समारोह में प्रदान किया जाएगा.

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