Manmohan Singh on 1984 Sikh Riots: कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि साल 1984 के सिख दंगों को लेकर बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि उस दौरान तत्कालीन गृह मंत्री पी वी नरसिम्हा राव अगर आईके गुजराल की बात मानकर सेना तैनात कर देते तो इस नरसंहार से बचा जा सकता था.
नई दिल्ली. पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा कि 1984 के सिख दंगों के दौरान तत्कालीन गृह मंत्री पी वी नरसिम्हा राव अगर आईके गुजराल की बात मानकर सेना तैनात कर देते तो नरसंहार से बचा जा सकता था. मनमोहन सिंह ने यह बात पू्र्व पीएम आईके गुजराल की जयंति पर आयोजित एक कार्यक्रम में की. मनमोहन सिंह ने जिन सिख दंगों की बात की वे पू्र्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में भड़के जिसमें हजारों सिखों की जान गई.
दरअसल, पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही सुरक्षाकर्मियों ने की जो सरदार थे. हत्या के अगले दिन 1 नवंबर की रात शायद कई शहरों में रहने वाले सिख समुदाय के लोगों में खौफ का समय था. पूरे देश में तत्कालीन पीएम की हत्या से खलबली थी. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर सिखों पर हमला शुरु कर दिया. उस दौरान दिल्ली में सबसे ज्यादा सिख लोगों की हत्या की गई. कुछ दिनों में हालात तो ठीक हो गए लेकिन ये दर्द जरूर लोगों के मन में रह गया.
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने भी इसी दर्द को झलकाते हुए यह बात कही लेकिन पूरा इल्जाम उन्होंने सिर्फ तत्कालीन गृहमंत्री नरसिम्हा राव पर थोप दिया ये जरा समझ से बाहर है. और ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के एक इंसान पर आरोप थोपने से सिख दंगों का दर्द भुलाया जा सकता है.? इससे पहले जब मनमोहन सिंह पीएम रहते हुए सिख दंगे पर बोले तो बाद में उन्होंने माफी मांग ली थी.
Ex-PM Manmohan Singh: When the sad event of '84 took place, IK Gujral ji went to the then HM PV Narasimha Rao&told him,situation is so grave that it's necessary for govt to call Army at the earliest. If that advice had been heeded perhaps '84 massacre could've been avoided.(4.12) pic.twitter.com/bQmnktnmem
— ANI (@ANI) December 4, 2019
सत्ता- सरकार पूरी कांग्रेस की तो सिर्फ गृहमंत्री ही जिम्मेदार क्यों भई ?
पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि पूरे देश का एक बड़ा नुकसान है. 31 अक्टूबर जब इंदिरा गांधी की हत्या की गई तो पार्टी में खलबली मच गई. मचती भी क्यों नहीं, भारत जैसे बड़े देश के प्रधानमंत्री की हत्या पूरी दुनिया के लिए बड़ी खबर थी. दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी में भी इंदिरा गांधी की कैबिनेट कुछ नहीं समझ पा रही कि आगे क्या होगा.
इंदिरा गांधी की हत्या की खबर देशभर में पहुंच ही रही थी कि सिखों पर हमले की खबरें भी आने लगी. हालांकि, शुरुआत में सरकारी अधिकारियों से किसी दंगे की बात को खारिज कर दिया लेकिन जब लोग सड़कों पर नंगी तलवारें लेकर सिखों को मारने लगे तो उस समय किसी अफसर की सफाई की जरूरत बाकी नहीं रही.
अचानक फैले दंगे ने सरकार को परेशान कर दिया. बिन प्रधानमंत्री के ही कैबिनेट मीटिंग होने लगीं. उस दौरान पी वी नरसिम्हा राव ने ही कमान संभाली. अब कमान संभालने का मतलब ये भी नहीं कि उन्होंने अपनी मर्जी से फैसले लेने शुरू कर दिए. उन्होंने कमान संभाली क्योंकि वे देश के तत्कालीन गृह मंत्री थे और लोगों की सुरक्षा उनकी जिम्मेदारी.
उस दौरान नेताओं के साथ बैठक के बाद जो ठीक लगे वे सभी फैसले किए गए. हो सकता है पूर्व पीएम आईके गुजराल के सेना बुलाने का फैसला पीवी नरसिम्हा राव समेत बाकी नेताओं को न पसंद आया हो लेकिन सिर्फ इस फैसले को लेकर ही पूर्व गृह मंत्री पर सीधा इल्जाम थोप देना भी ठीक नहीं होगा.
मनमोहन सिंह के बयान पर नरसिम्हा राव के पोते सुभाष नाराज
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के बयान पर नरसिम्हा राव के पोते एनवी सुभाष ने अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने बयान पर दुख जताया और कहा कि बिना कैबिनेट मंजूरी कोई गृह मंत्री कैसे फैसला ले सकता है. एनवी सुभाष ने कहा कि वे डॉक्टर मनमोहन सिंह के बयान से काफी दुखी हैं. एनवी सुभाष ने कहा कि अगर उस दौरान सेना बुलाई जाती तो सब तबाह हो जाता.
NV Subash, grandson of PV Narasimha Rao & BJP leader: As a family member I'm feeling saddened by this statement by Dr Manmohan Singh, it's unacceptable. Can any Home Minister take independent decision without Cabinet's approval? If Army had been called,it would've been a disaster https://t.co/Y9yy3j1Sr8 pic.twitter.com/LQZGRc7FoJ
— ANI (@ANI) December 5, 2019
पहचान छुपाने को ना जाने कितने सिखों ने काट दिए थे अपने बाल
एक सिख की पहचान होती है उसके लंबे बाल जिन्हें बांधकर पगड़ी पहनी जाती है. हालांकि, सिख धर्म में ये जरूरी तो नहीं लेकिन आस्था जरूर मजबूत है. तो आप खुद ही सोचिए वो कैसा खौफनाक माहौल रहा होगा जब जान बचाने के लिए सरदारों को अपने बाल तक काटने पड़ गए. इससे काला दिन देश के लिए क्या होगा.
सिख दंगो में हजारों लोग मारे गए. सड़कों पर खुले आम सरदारों का कत्लेआम जारी था. दिल्ली में रहने वाले मोहन सिंह ने ये खौफ महसूस किया. मोहन सिंह ने साल 2013 में बीबीसी से बात करते हुए बताया कि उस दिन का मंजर बेहद दर्दनाक था. त्रिलोकपुरी निवासी मोहन सिंह उस समय ऑटो चलाते थे और रास्ते में खुलेआम हत्या और लूटपाट का नजारा देखकर अपने घर पहुंचने की कोशिश कर रहे थे.
जब सिख दंगा पीड़ित मोहन सिंह को दिल्ली पुलिस ने भगा दिया
किसी तरह मोहन सिंह घर तो पहुंच गए लेकिन उनके इलाके में भी वहशी रूप में लोगों ने मारकाट शुरू कर दी. आखिरकार मोहन सिंह ने पुलिस तक पहुंचने का फैसला किया और साइकिल लेकर घर से निकल गए. हालांकि, बाहर निकलने से पहले मोहन सिंह ने पहचान छुपाने के लिए अपने बाल काट दिए वरना उनका पहुंचना ही मुमकिन नहीं था.
आखिरकार मोहन सिंह पुलिस थाने तक पहुंचने में सफल रहे लेकिन वहां पुलिस ने उनकी कोई बात नहीं सुनी गई. अब जब पुलिस भी मदद नहीं कर रही तो दंगा कर रहे लोगों को रोकने के सभी रास्ते बंद हो गए. उस समय शायद मोहन सिंह समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर उनका सिख होना ही उनके लिए जानलेवा बन जाएगा. मोहन सिंह की तो किसी तरह जान बच गई लेकिन इस दंगे में उनका पूरा परिवार खत्म हो गया.
पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार समेत सैंकड़ों लोग दोषी, सजा कितनो को ?
सिख दंगों में कांग्रेस के बड़े नेता सज्जन कुमार का चेहरा मुख्य साजिशकर्ता के तौर पर सामने आया. दिल्ली कैंट इलाके में मची मारकाट मामले में सज्जन कुमार उम्र कैद की सजा के लिए जेल में है. हाल ही में सज्जन कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी सेहत का हवाला देते हुए जमानत याचिका दाखिल की जिसकी सुनवाई के दौरान पूर्व कांग्रेस नेता कोई राहत नहीं मिली. सज्जन कुमार के साथ-साथ और भी कई बड़े कांग्रेसी नेताओं का इस दंगे में हाथ माना गया. मध्य प्रदेश के सीएम कमलनाथ पर भी उस दौरान दंगा भड़काने का आरोप लगाया जाता रहा है.
सज्जन कुमार से अलग सुप्रीम कोर्ट 88 और याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिन्हें निचली अदालत के फैसले के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने दोषी करार देते हुए पांच साल की सजा सुनाई थी. बीते जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने 33 लोगों को जमानत पर रिहा कर दिया. बाकी याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. ये सभी याचिकाएं आरोपियों ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल की हैं.