Bal Thackeray Death Anniversary Special: हम को मिटा सके ये जमाने में दम नहीं, हम से जमाना खुद है जमाने से हम नहीं... शायर जिगर मुरादाबादी की शायरी अगर किसी पर सही बैठती है तो उस शख्सियत का नाम बाला साहेब ठाकरे के अलावा कुछ और हो ही नहीं सकता.
नई दिल्ली. हम को मिटा सके ये जमाने में दम नहीं, हम से जमाना खुद है जमाने से हम नहीं… शायर जिगर मुरादाबादी की शायरी अगर किसी पर सही बैठती है तो उस शख्सियत का नाम बाला साहेब ठाकरे के अलावा कुछ और हो ही नहीं सकता. वो बाल ठाकरे जिन्होंने शिवसेना को बनाकर अपनी जिंदगी महाराष्ट्र के नाम कर दी.
बाला साहेब की इतनी दमदार छवि कि सामने वाला आंख उठाकर अपनी बात को कहने में भी दो बार सोचे. 26 जनवरी 1923 को पैदा हुए और 17 नवंबर 2012 को अलविदा कह गए लेकिन अपनी एक अलग अंदाज वाली राजनीति की छाप लोगों के दिल पर छोड़ गए.
फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट से ह्रदय हिंदू सम्राट तक सबकुछ बदला लेकिन ठाकरे नहीं
बाल ठाकरे के घर मोतीश्री में अक्सर बड़े राजनेताओं, फिल्म स्टारों और तमाम कारोबारियों फरयादी बनकर अपनी मांग रखते. आसन पर भगवा कपड़े और रुद्राक्ष की माला पहनकर बैठे बाला साहेब अपना फैसला सुनाते और वो पत्थर की लकीर हो जाती.
खास बात है कि वे कभी अकेले नहीं बल्कि अपने 10-20 लोगों के साथ बैठकर ही किसी भी मामले पर बातचीत करते. अपने कमरे में भी उनका काला चश्मा कभी आंखों से नहीं हटता. ठाकरे जो कहते अपनी जुबान पर टिके रहते, चाहे उस बात पर कितना भी विवाद क्यों न मच जाए.
ठाकरे ने सबसे पहले बतौर कार्टूनिस्ट अपना पेशा शुरू किया. कई बार उनके कार्टून ऐसे आते जिनपर विवाद हो जाता. कुछ समय अंग्रेजी अखबार में काम के बाद उन्होंने साप्ताहिक अखबार मार्मिक निकाला. 1966 में बाला साहब ठाकरे ने शिवसेना बनाई और उनका राजनीतिक सफर शुरू हो गया.
राजनीति में बाला साहब ठाकरे ने कई उतार-चढ़ाव जरूर देखे लेकिन कभी कोई शिकन भी माथे पर नहीं लाने दी. किसी परेशानी में भी ठाकरे अपने उसी रौब से रहते जो उनका काम करने का अंदाज था. बाल ठाकरे खुद एक क्रांति थी जिन्हें बदलना शायद खुद उनके ही बस में था.
बाल ठाकरे मुंबई में दक्षिण भारतीय लोगों की उपस्थिति के सख्त खिलाफ थे जिसके लिए उन्होंने ‘पुंगी बजाओ और लुंगी हटाओ’ अभियान भी चलाया जो देशभर में काफी विवादों में रहा.
जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया तो कांग्रेस समर्थन में पहुंचे बाल ठाकरे
कई बार हम शिवसेना को कांग्रेस का विरोधी समझते हैं लेकिन बाला साहेब के लिए कौन विरोध, कौन नहीं सिर्फ वे ही जानते. शुरुआती दौर में महाराष्ट्र में कांग्रेस का शिवसेना को पीछे से समर्थन रहा. बाल ठाकरे ने 1975 में लगी एमरजेंसी में भी इंदिरा गांधी का समर्थन किया. हालांकि, धीरे-धीरे कांग्रेस और शिवसेना अलग विचारों के चलते दूर हो गईं.
‘हिंदू हृदय सम्राट- हाऊ द शिवसेना चेंज्ड मुंबई फ़ॉर एवर’ लिखने वाली सुजाता आनंदन बताती हैं कि जब इंदिरा गांधी ने अपातकाल लगाई तो महाराष्ट्र के तत्कालीन सीएम शंकरराव चव्हाण ने ठाकरे के पास अपने लोगों को भेजकर उन्हें दो विकल्प बताएं कि या तो वे विरोध करते हुए जेल चलें जाएं या दूरदर्शन ऑफिस चलकर इंदिरा गांधी को समर्थन दे दें.
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सीएम के कहने पर ठाकरे ने 15 मिनट विचार किया और इंदिरा को अपना समर्थन दे दिया. उनका ये समर्थन इतना मजबूत हुआ कि आपातकाल हटने के बाद 1978 में जनता सरकार ने जब इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करवाया तो बाला साहेब ने विरोध में बंद का आयोजन किया.
एनसीपी के शरद पवार राजनीति में ठाकरे के दुश्मन तो असल जिंदगी में यार
महाराष्ट्र में अगर एनसीपी और शिवसेना मिलकर सरकार बनाती है तो इसमें ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं. एक समय में एनसीपी प्रमुख शरद पवार और बाल ठाकरे का याराना शानदार रहा. इतना शानदार कि जब ठाकरे को पता चला कि शरद पवार के बेटी सुप्रिया पहला चुनाव लड़ने जा रही है तो बाल ठाकरे ने पवार को फोन किया.
ठाकरे ने फोन पर पवार से कहा कि तुमने मुझे क्यों नहीं बताया कि सुप्रिया चुनाव लड़ने जा रही है, उसे मैंने तब से देखा है जब वो मेरे घुटने पर आती थी. शरद पवार बोले कि पहले बीजेपी-शिवसेना का संयुक्त प्रत्याशी वहां उतारा जा चुका है इसलिए सोचा आपको क्या परेशान करूं तो ठाकरे ने कहा कि कोई उम्मीदवार सुप्रिया के सामने नहीं लड़ेगा. इसपर पवार ने पूछा कि बीजेपी बुरा नहीं मानेगी तो ठाकरे बोले कमलाबाई (भाजपा) को मैं देख लूंगा, मैं जैसा कहूंगा वे ऐसा ही करेंगे.