Justice Arun Mishra Upset on Social Media, Social Media Per Bhadke Justice Arun Mishra: सोशल मीडिया पर बुराई से जस्टिस अरुण मिश्रा भड़क गए हैं. उन्होंने कहा कि- सोशल मीडिया में कुछ लोग न्यायपालिका के प्रति दुर्भावना रखते हैं. न्यायमूर्ति मिश्रा ने भूमि अधिग्रहण पर फैसला सुनाया था. उस पर संविधान पीठ एक फैसले की जांच कर रही है. इस पीठ में अरुण मिश्रा भी शामिल हैं. कुछ याचिकाकर्ताओं ने न्यायिक औचित्य के आधार पर उनसे बेंच से बाहर निकलने को कहा था. उनसे कहा था कि खुद को न्यायिक स्वामित्व के आधार पर पुनर्विचार करते हुए बेंच से हटा लें.
नई दिल्ली. क्या कोई जज फैसला सुनाने के बाद उसी पर बैठी बड़ी पीठ के साथ फैसले की जांच कर सकता है? यह सवाल अहम है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरुण मिश्रा ऐसा कर रहे हैं. उन्होंने मंगलवार को उनको इस पीठ से निकलने का सुझाव दे रहे सोशल मीडिया पोस्ट्स और समाचार रिपोर्टों पर नाराजगी जाहिर की है. दरअसल जस्टिस अरुण मिश्रा ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम से संबंधित मुद्दों पर फैसला सुनाया. उनके फैसले की जांच करने के लिए संविधान पीठ बैठाई गई. हैरानी की बात थी कि अरुण मिश्रा इस पीठ का हिस्सा हैं. न्यायमूर्ति मिश्रा ने पांच न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व कर रहे हैं. इसी की जानकारी मिलने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने उन्हें सुझाव दिया कि न्यायमूर्ति मिश्रा न्यायित औचित्य के आधार पर पुनर्विचार संविधान पीठ से बाहर हो जाएं.
इस सुझाव पर भड़कते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि सोशल मीडिया पोस्ट और लेख सिर्फ एक विशेष न्यायाधीश के खिलाफ नहीं हैं बल्कि संस्था को बदनाम करने का प्रयास है. मैं पहला व्यक्ति होगा जो बलिदान कर सकता है यदि संस्था की अखंडता दांव पर है. मैं पक्षपाती नहीं हूं और पृथ्वी पर किसी भी चीज से प्रभावित नहीं होता हूं. अगर मैं संतुष्ट हूं कि मैं पक्षपाती हूं, तो ही मैं खुद को सुनवाई से दूर करूंगा. उन्होंने कहा, मेरे विचार के लिए मेरी आलोचना की जा सकती है, मैं नायक नहीं हो सकता और मैं एक निरंकुश व्यक्ति हो सकता हूं, लेकिन अगर मैं संतुष्ट हूं कि मेरा विवेक साफ है, भगवान के सामने मेरी ईमानदारी साफ है, तो मैं नहीं हिलूंगा.
बता दें कि न्यायमूर्ति मिश्रा उस पीठ का हिस्सा थे जिसने फैसला सुनाया कि सरकारी एजेंसियों द्वारा भूमि अधिग्रहण को रद्द नहीं किया जा सकता है अगर मालिकों को अदालती मामलों में लिंचिंग जैसे कारणों के कारण पांच साल के भीतर मुआवजा स्वीकार करने में देरी होती है. पिछले साल 6 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक बड़ी बेंच भूमि अधिग्रहण से संबंधित दो अलग-अलग फैसलों की शुद्धता का परीक्षण करेगी. इस बेंच में अरुण मिश्रा भी शामिल हैं. अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि जस्टिस मिश्रा केस से पीछे हट सकते हैं या नहीं. न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि सवाल यह है कि क्या हम संविधान पीठ में नहीं बैठ सकते हैं, हालांकि यह हम हैं जिन्होंने मामले को बड़ी पीठ के पास भेज दिया. यह उस फैसले के खिलाफ अपील नहीं है जिसमें मैं पक्ष थां मैं अपना दृष्टिकोण बदल सकता हूं या सही कर सकता हूं.
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