Shardiya Navratri 2019: मां चंद्रघंटा की कृपा से साधको को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते है और दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है. मां का अराधना करते समय कई प्रकार की दिव्य-ध्वनियां सुनाई देती है. ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते है. मां चंद्रघंटा के कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं दूर होती है.
नई दिल्ली. नवरात्र शुरू होने के साथ ही पूरे देश में त्योहारों का मौसम शुरू हो जाता है. इस बार शारदीय नवरात्र 29 सितंबर से शुरू होगा और 7 अक्टूबर तक चलेगा. मां दुर्गा की पूजा करने वाले उनके भक्तजन नवरात्र की विशेष तैयारी में लगे हुए हैं. 29 सितंबर से गांव हो या शहर हर जगह मां की आरधना में ही भक्तों का समय लगेगा. नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा की 9 रूपों की पूजा पूरी विधि-विधान के साथ की जाती है. नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा जी की तीसरा रूप देवी चंद्रघंटा की पूजा-उपासना की जाती है. नवरात्रि के उपासना में तीसरे दिन की मां की आरधाना की अत्यधिक महत्व है. इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है. इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है.
मां चंद्रघंटा का स्वरूप परम् शांतिदायक और कल्याणकारी है. इनके मस्तक पर घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी वजह से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है. इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. देवी मां के दस हाथ हैं. दसों हाथों में खड्ग,शस्त्र, बाण और अस्त्र विभूषित हैं. इनका वाहन सिंह है.
मां चंद्रघंटा की आराधना सदैव फलदायी होता है. मां भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र कर देती हैं. इनका साधक सिंह के तरह ही पराक्रमी और निर्भय हो जाता है. मां के आराधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता रहता है. यह सबको दिखाई नहीं देती लेकिन साधक और उसके संपर्क में आने वाले लोग इस बात का अनुभव भली-भांती करते हैं. मां चंद्रघंटा का ध्यान, स्तोत्र और कवच का पाठ करने से मणिपुर चक्र जाग्रत हो जाता है. जिससे साधक के सांसरिक परेशीनियों से मुक्ति मिलता.
ध्यान
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥
कवच
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥