Kashmir Issue: अमेरिका और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर भरोसा मत करना साहेब

Kashmir Issue, Donald Trump ke Mediation ka Raag: पीएम नरेंद्र मोदी अमेरिका के दौरे पर हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया. बुधवार को जब दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय मुलाकात हुई तो कश्मीर मुद्दे को लेकर ट्रंप ने फिर कश्मीर को लेकर अपना पुराना राग अलाप दिया. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी पीएम इमरान खान और पीएम नरेंद्र मोदी दोनोें राजी हों तो वे मध्यस्थता कराने के लिए तैयार हैं.

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Kashmir Issue: अमेरिका और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर भरोसा मत करना साहेब

Aanchal Pandey

  • September 26, 2019 10:28 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago

नई दिल्ली. भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मसले पर मध्यस्थता को लेकर एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तान छेड़ी है. अगर आप गिनना शुरू करें तो ट्रम्प ने छठी बार मध्यस्थता की बात की है. याद करें तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रम्प ने 22 जुलाई को पहली बार मध्यस्थता की पेशकश की थी. फिर यही प्रस्ताव 2 अगस्त, 23 अगस्त और 10 सितंबर को दोहराया था. और खास बात यह भी कि भारत की तरफ से हर बार ट्रम्प की पेशकश को ठुकराया गया. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-7 शिखर सम्मेलन में ट्रम्प से मुलाकात के दौरान कश्मीर मुद्दे पर तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को गैरजरूरी बताया था. संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी ने ट्रम्प के सामने कहा था कि कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मसला है और हम दुनिया के किसी भी देश को बीच में नहीं लाना चाहते हैं.

संयुक्त राष्ट्र महाअधिवेशन सत्र को संबोधित करने के बाद बुधवार को ट्रम्प जब प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित कर रहे थे तो भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में पाकिस्तान का जिक्र उठा. फिर क्या था, ट्रम्प के दिमाग में स्क्रिप्ट पहले से ही फीड हो रखी थी. बोल पड़े- भारत और पाकिस्तान के संबंध में हमने कश्मीर के बारे में बात की और मैं जो भी मदद कर सकता हूं, उसकी मैंने पेशकश की और वह मदद मध्यस्थता है. मैं जो कर सकता हूं वह करूंगा, क्योंकि दोनों बहुत गंभीर मोड़ पर हैं. ट्रम्प ने कहा, यदि आप दोनों लोगों (मोदी-इमरान) की तरफ देखें तो वे दोनों मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं. मैंने दोनों मित्रों से कहा कि इसे बस सुलझा लें क्योंकि वे दोनों परमाणु शक्ति संपन्न भी हैं.

ट्रम्प के इस बयान पर गौर कीजिए- उन्होंने मोदी के साथ-साथ इमरान को भी अच्छे मित्र की उपाधि से विभूषित किया है और परमाणु संपन्न राष्ट्र का टैग भी लगाया. ट्रम्प के इस भाव को समझना भारत और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि पीएम मोदी राष्ट्रपति ट्रम्प को अपना दोस्त मानते हैं तो फिर हमारा दुश्मन नंबर एक पाकिस्तान हमारे दोस्त अमेरिका और ट्रम्प का अच्छा दोस्त कैसे हो सकता है? है ना कहानी में बड़ा झोल.

दरअसल, अमेरिका के बारे में यह बात जगजाहिर है कि दुनिया में उसका न कोई दोस्त है और न कोई दुश्मन. वह तो देश छोड़िए, आतंकवादी संगठनों को भी दूध पिलाता है, फिर मतलब निकल जाने पर ठिकाने लगा देता है. ओसामा बिन लादेन के बारे में तो आपको पता होगा ही. अभी पिछले ही दिनों अमेरिकी थिंक टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (सीएफआर) में इमरान खान ने कहा कि 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले से पहले अलकायदा के आतंकियों को पाकिस्तानी सेना और आईएसआई ने मिलकर ट्रेनिंग दी थी.

अल कायदा को ट्रेनिंग देने की बात इमरान ने कह तो दी लेकिन होशियारी से इसका दोष भी अमेरिका पर ही मढ़ दिया. इमरान ने ट्रंप की ओर इशारा करते हुए कहा कि दुनिया के शक्तिशाली देशों के नेता इस बात को क्यों नहीं समझते कि आखिर पाकिस्तान में कट्टरता आई कैसे. इमरान ने याद दिलाया कि 1980 में पाकिस्तान ने अमेरिका के कहने पर सोवियत संघ के खिलाफ जेहाद छेड़ा था और उसी के तहत इन आतंकियों को ट्रेनिंग दी गई थी.

उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन पाकिस्तान की तारीफें करते नहीं थकते थे. कहने का मतलब यह कि इमरान खान ने अप्रत्यक्ष रूप से ये कह दिया कि भले ही इन आतंकियों को ट्रेनिंग देने वाले हाथ आईएसआई और पाकिस्तानी सेना के थे, लेकिन ये सब उसी अमेरिका के कहने पर हुआ जिसे खुद अलकायदा के हमले का शिकार होना पड़ा.

यह सच है कि अमेरिका और सोवियत रूस एक वक्त में एक-दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते थे. अमेरिका को तब दुनिया में टक्कर देने वाला एकमात्र देश सोवियत रूस ही था. सोवियत रूस को तबाह करने के लिए ही अमेरिका ने अलकायदा को पाल-पोषकर खड़ा किया था. हालांकि इसका दंश अमेरिका ने भी झेला लेकिन आज आतंकवाद का खात्मा करना अमेरिका की प्राथमिकता में है. दूसरी तरफ पुतिन-ट्रम्प की दोस्ती की कहानी भी सबको चौंकाती है.

दोस्ती भी इस हद तक कि ट्रम्प को अमेरिका का राष्ट्रपति बनाने में पुतिन ने वो सब किया जो रूस के राष्ट्राध्यक्ष की हैसियत से उन्हें नहीं करना चाहिए था. लेकिन किया और ट्रम्प को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा रहा है. अमेरिका के लोग उन्हें संदेह की नजरों से देखते हैं. पत्रकार बार-बार सवाल पूछते हैं.

कहने का मतलब यह कि अमेरिका हों या ट्रम्प, दोनों की मतलब के यार हैं. यही बात हम भारत और पीएम मोदी को बताना और समझाना चाहते हैं. इतिहास पलकर अच्छी तरह से पढ़ और समझ लें. अमेरिका कभी हमारा भरोसेमंद साथी नहीं रहा है और न ही आगे रहने वाला. भारत जैसे देश को तो वह सिर्फ बाजार समझता है- तेल और हथियारों का.

(लेखक पिछले दो दशक से अधिक समय से प्रिंट और डिजिटल पत्रकारिता से जुड़े हैं और वर्तमान में आईटीवी डिजिटल नेटवर्क में कंसल्टिंग एडिटर के पद पर कार्यरत हैं)

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