Kerala New Governor Arif Mohammad Khan: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और केरल के नए राज्यपाल नियुक्त किए गए हैं. इन सभी में आरिफ मोहम्मद खान का नाम सुर्खियों में बना हुआ है क्योंकि ये वही आरिफ मोहम्मद खान हैं जिन्होंने शाह बानो केस में कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार से मंत्री पद और पार्टी से इस्तीफा दे दिया था.
नई दिल्ली. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, महाराष्ट्र और केरल के लिए नए राज्यपालों को नियुक्त किया है. इन सभी नियुक्तियों में आरिफ मोहम्मद खान के नाम ने काफी लोगों को चौंकाया क्योंकि ये वहीं आरिफ मोहम्मद खान हैं जिन्होंने शाहबानो तीन तलाक केस में कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार से मंत्री पद और पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. उस दौरान आरिफ खान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के पिता और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार में बतौर गृह राज्य मंत्री कार्यरत थे. ऐसे में सालों बाद अब बीजेपी की नरेंद्र मोदी मोदी सरकार में आरिफ मोहम्मद खान की केरल के गवर्नर पद पर नियुक्ति सुर्खियों में घिर गई.
केरल के राज्यपाल के पद पर अपनी नियुक्ति को लेकर आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि उन्हें यह जनता की सेवा का शानदार अवसर मिला है. राज्यपाल ने आगे कहा कि उन्हें उस देश में पैदा होने का सौभाग्य मिला तो विविधता में इतना विशाल और समृद्ध है. आरिफ मोहम्मद खान ने आगे कहा कि उनके लिए यह भारत के एक हिस्से को जानने का अच्छा मौका है जो भारत की सीमा भी बनाता है और जिसे भगवान का देश कहा जाता है.
Kalraj Mishra, Governor of Himachal is transferred & appointed as Governor of Rajasthan. Bhagat Singh Koshyari appointed as Governor of Maharashtra, Bandaru Dattatreya as Governor of Himachal, Arif Mohammed Khan as Guv of Kerala, Tamilisai Soundararajan as Governor of Telangana pic.twitter.com/oKOe8xUOOz
— ANI (@ANI) September 1, 2019
कौन हैं राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान
आरिफ मोहम्मद खान का जन्म साल 1951 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ. इन्होंने अपनी पढ़ाई दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ की एएमयू और लखनऊ के शिया कॉलेज से पूरी की. छात्र जीवन में ही आरिफ राजनीति से जुड़ी गए. कम उम्र में ही उन्होंने एक स्थानीय पार्टी भारतीय क्रांति दल के टिकट से बुलंदशहर की सियाना विधानसभा से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. साल 1977 में 26 साल की उम्र में वे पहली बार विधायक बने. 1980 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली और इसी साल कानपुर सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.
शाहबानों के समर्थन में आकर सहना पड़ा था मुस्लिम समुदाय का विरोध
साल 1984 में उन्होंने बहराइज सीट से चुनाव जीता. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आरिफ को गृह राज्य मंत्री बनाया. इसी दौरान शाह बानो का केस चर्चाओं में था. साल 1986 में उन्होंने शाहबानो मामले में सरकार के विरोध में जाकर कांग्रेस पार्टी और मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. दरअसल, उस दौरान खान मुस्लिम महिलाओं के हक की वकालत कर रहे थे लेकिन राजनीति और मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग आरिफ मोहम्मद खान के विचारों के विरोध में नजर आ रहा था.
राजीव गांधी सरकार के दौरान ही शाहबानो के पक्ष में आकर आरिफ मोहम्म ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जबरदस्त पैरवी करते हुए 23 अगस्त 1985 को लोकसभा में एक जानदार भाषण भी दिया. हालांकि, कुछ ही दिनों में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल लॉ संबंधी एक कानून संसद में पास करवा दिया. उस दौरान राजीव गांधी के इस स्टैंड से नाराज होकर खान ने पार्टी और अपना मंत्री पद छोड़ दिया.
कांग्रेस के बाद बसपा, जनता दल और भाजपा तक पहुंचने का सफर
कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने जनता दल का दामन थामा और साल 1989 में फिर लोकसभा पहुंचे. जनता दल की सरकार में उन्होंने बतौर नागरिक उड्डयन मंत्री काम किया. हालांकि, बाद में उन्होंने जनता दल का दामन छोड़कर मायावती की बसपा का हाथ थाम लिया. साल 2004 में आरिफ मोहम्मद खान ने भारतीय जनता पार्टी का हाथ थामा. कैसरगंज सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गए. साल 2007 में उन्होंने भाजपा छोड़ दी क्योंकि उन्हें अपेक्षित तवज्जो नहीं दी जा रही थी. साल 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के साथ बातचीत कर उन्होंने तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाए जाने में अहम भमिका भी निभाई.
क्या था शाह बानो मामला?
साल 1978 में एडवोकेट अहमद खान ने अपनी पहली पत्नी शाह बानो को तीन बार तलाक बोलकर तलाक दे दिया था. हालांकि, शाह बानो ने इस कुप्रथा का विरोध करते हुए अदलात में गुजारा भत्ता की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी. सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया था. लेकिन राजीव गांधी सरकार ने कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया था. जिसके बाद साल 2019 में शाह बानो को असली जीत मिली और तीन तलाक प्रथा के खिलाफ केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कानून बनाया.