Utpanna Ekadashi Katha: हिन्दू धर्म में कई एकादशी होते हैं. हर साल आमतौर पर 24 एकादशी आती हैं. उन्ही एकादशियों में से एक है उत्पन्ना एकादशी. मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है.
नई दिल्ली. हिन्दू धर्म में कई एकादशी होते हैं. हर साल आमतौर पर 24 एकादशी आती हैं. उन्ही एकादशियों में से एक है उत्पन्ना एकादशी. मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है. इस साल ये एकादशी 22/23 नवम्बर को है. यह व्रत पूर्ण नियम, श्रद्धा व विश्वास के साथ रखा जाता है, इसे व्रत के प्रभावस्वरूप धर्म एवं मोक्ष फलों की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस व्रत के फलस्वरुप मिलने वाले फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान-दान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होते है. एकादशी एक देवी थी जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था. एकादशी मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थी जिसके कारण इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा. इसी दिन से एकादशी व्रत शुरु हुआ था.
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
कथा कि शुरुआत यहां से होती है, सतयुग में एक महा भयंकर मुर नामक दैत्य हुआ करता था. दैत्य मुर ने इन्द्र आदि देवताओं पर विजय प्राप्त कर उन्हें, उनके स्थान से भगा दिया और उनके स्थान पर कब्जा कर लिया था. ये सब देखकर परेशान होकर इन्द्र तथा अन्य देवता क्षीर सागर भगवान श्री विष्णु के पास जाते हैं. देवताओं सहित सभी ने श्री विष्णु जी से दैत्य के अत्याचारों से मुक्त होने के लिये विनती की. इन्द्र देव के वचन सुनकर भगवान श्री विष्णु बोले -देवताओं मैं तुम्हारे शत्रुओं का शीघ्र ही संकार करूंगा.
जब दैत्यों ने भगवान श्री विष्णु जी को युद्ध भूमि में देखा तो उन पर अस्त्रों-शस्त्रों का प्रहार करने लगे. भगवान श्री विष्णु मुर को मारने के लिये जिन-जिन शास्त्रों का प्रयोग करते वे सभी उसके तेज से नष्ट होकर उस पर पुष्पों के समान गिरने लगते भगवान श्री विष्णु उस दैत्य के साथ सहस्त्र वर्षों तक युद्ध करते रहे़ परन्तु उस दैत्य को न जीत सके. अंत में विष्णु जी शान्त होकर विश्राम करने की इच्छा से बद्रियाकाश्रम में एक लम्बी गुफा में शयन करने के लिये चले गये.
दैत्य भी उस गुफा में चला गया ताकि वह श्री विष्णु को मार कर अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सके. उस समय गुफा में एक अत्यन्त सुन्दर कन्या नजर आई और दैत्य के सामने आकर युद्ध करने लगी. दोनों में देर तक युद्ध हुआ जिसके बाद उस कन्या ने उसको धक्का मारकर मूर्छित कर दिया और उठने पर उस दैत्य का सिर काट दिया और वह दैत्य मृत्यु को प्राप्त हुआ.
उसी समय श्री विष्णु जी की निद्रा टूटी तो उस दैत्य को किसने मारा चारों तरफ देखने लगे. इस पर उक्त कन्या ने उन्हें कहा कि दैत्य आपको मारने के लिये तैयार था. तब मैने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध किया है. भगवान श्री विष्णु ने उस कन्या का नाम एकादशी रखा क्योकि वह एकादशी के दिन श्री विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी इसलिए इस दिन को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है.
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