Tulasi Vivah 2019 Date Calendar: तुलसी विवाह कब है, तुलसी विवाह पूजा विधि, समय और व्रत कथा के बारे में जानिए

Tulasi Vivah 2019 Date Calendar: इस बार तुलसी विवाह 2019 शनिवार 9 नवंबर को पड़ रहा है. तुलसी विवाह कब है, तुलसी विवाह की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और तुलसी विवाह की कथा क्या है. अगर ये सवाल आपके जहन में भी चल रहे हैं, तो यहां हम आपके इन्हीं सभी सवालों का जवाब दे रहे हैं.

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Tulasi Vivah 2019 Date Calendar: तुलसी विवाह कब है, तुलसी विवाह पूजा विधि, समय और व्रत कथा के बारे में जानिए

Aanchal Pandey

  • July 19, 2019 4:45 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago

नई दिल्ली. तुलसी विवाह 2019 कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. इस बार तुलसी विवाह शनिवार 9 नवंबर 2019 को पड़ रहा है. तुलसी विवाह हर साल देवउठनी एकादशी के दिन होता है. तुलसी विवाह के दिन तुलसी विवाह की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस दिन भगवान विष्णु के शालीग्राम स्वरूप की पूजा की जाती है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने बाद नींद से उठते हैं. तुलसी विवाह के दिन से देव उठने के बाद शादियों के लग्न शुरू हो जाते हैं. तुलसी विवाह कब है, तुलसी विवाह की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और तुलसी विवाह की कथा क्या है. अगर ये सवाल आपके जहन में भी चल रहे हैं, तो यहां हम आपके इन्हीं सभी सवालों का जवाब दे रहे हैं.

तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त

9 नवंबर 2019 – दोपहर 2 बजकर 39 मिनट तक

तुलसी विवाह पूजा विधि

तुलसी विवाह के दिन तड़के सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें. इस दिन व्रत भी रखा जाता है. जो भी तुलसी विवाह करता है वो सुबह उठकर स्नान करने के बाद सबसे पहले सूर्य को अर्घ्य दें. तुलसी विवाह के दिन किसी भी नदी में स्नान करना भी बेहद शुभ माना जाता है. तुलसी पूजा कि दिन रखा गया व्रत एकादशी को शुरू होता है और अगले दिन द्वादश को खोला जाता है. हिन्दू परंपराओं के अनुसार इस दिन तुलसी की पूजा करते हुए पूरे विधि विधान के साथ भगवान विष्णु जी के रूप शलिग्राम स्वरुप के साथ उनका विवाह करवाया जाता है. तुलसी पूजा के दिन बहुत से लोग कन्यादान देते हैं क्योंकि शास्त्रों के अनुसार संसार का सबसे बड़ा दान है कन्यदान.

तुलसी विवाह के दिन उनके विवाह के दौरान तुलसी जी के पौधें को अच्चे से सजाएं. तुलसी के पौधे पर लाल चुनरी ओढ़ाएं. इसके साथ ही गमले पर सभी सुहाग का सामान जैसे चूढ़ा, सिंदूर, नखूनपॉलिश, कंघा, रिबन आदि चढ़ाएं. फिर शालिग्राम की मूर्ति स्थापित करते हुए पूजा आरंभ करें. इसके बाद शालिग्राम को हाथ में लेकर और तुलसी के पौधे की सात परिक्रमा कराएं और फिर आरती गाएं. इसके बाद तुलसी विवाह की रस्में सम्पन्न हो जाएंगी.

तुलसी विवाह व्रत कथा

तुलसी विवाह को लेकर वैसे तो कई कथा और कहानियां है, जिनमें से एक प्रचलित कहानी कह आपको सुनाने जा रहे हैं. दरअसल, राक्षस कुल में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम वृंदा था. यह कन्या बचपन से ही भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी. जैसे ही यह कन्या बड़ी हुई तो उसका विवाह समुद्र मंथन से जन्में जलंधर नाम के राक्षस के साथ करवा दिया गया. पत्नी के भक्ति के कारण राक्षस जलंधर और भी शक्तिशाली हो गया. वहीं उसकी पत्नी वृंदा दिन रात भगवान विष्णु की पूजा किया करती थी, जिसकी वजह से जलंधर महाशक्तिशाली होता गया और दूसरे राक्षसों सभी पर अत्याचार करने लगा.

वृंदा पूजा पाठ की वजह से वो किसी भी युद्ध में विजय प्राप्त करते ही लौटता था. जिसकी वजह से सभी देवी देवता भी हैरान और परेशान थे. इन सब को देखते हुए सभी देवताभगवान विष्णु की शरण में आए और मदद की गुहार लगाई. देवताओं की मदद करने के लिए भगवान विष्णु ने जलंधर का झूठा रूप धारण कर वृंदा की पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया जिसकी वजह से युद्ध कर रहे जलंधर का शक्ति कम हो गई और वो वहीं मारा गया. वहीं भगवान विष्णु के इस छल के लिए वृंदा ने उन्हें पत्थर बनने का शाप दे दिया. वहीं पूरी सृष्टि में हाहाकार मचने के बाद जब मां लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की तो वृंदा ने अपना श्राप वापस लेते हुए खुद को भस्म कर दिया. सभी भगवान विष्णु ने उस राख का पौधा लगाते हुए उसे तुलसी का नाम दिया और यह भी कहा कि मेरी पूजा के साथ आदिकाल तक तुलसी भी पूजी जाएंगी.

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