करवा चौथ 2017: चांद की पूजा के बाद व्रत खोलते समय पति को छलनी से देखने का ये है पौराणिक महत्व

आखिर क्यों करवा चौथ व्रत के दिन महिलाएं चांद की पूजा क्यों करती है. साथ ही पति को छलनी से क्यों देखती है. हम आपको बता रहे हैं इन दोनों के मनोवैज्ञानिक और पौराणिक पक्ष.

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करवा चौथ 2017: चांद की पूजा के बाद व्रत खोलते समय पति को छलनी से देखने का ये है पौराणिक महत्व

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  • October 8, 2017 3:22 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली : देश भर में आज महिलाएं करवा चौथ का व्रत मना रही है. महिलाएं सुबह से ही सज-धजकर पति की लंबी उम्र के लिए पूजा कर रही है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार करवा चौथ का व्रत सुहागन महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रत माना गया है. करवा चौथ का यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है. करवा चौथ के दिन महिलाएं दिन भर व्रत रखकर रात में चांद दिखते ही अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं. महिलाएं व्रत रखकर करवा चौथ से सम्‍बंधित कथा सुनती और सुनाती भी हैं तथा रात में चंद्रोदय होने पर उसकी पूजा-अर्चना कर पति के हाथों से पानी का घूंट पीकर अपना उपवास पूरा करती हैं. सुहागन महिलाएं इस व्रत पर कथा और उसकी पूरी पूजा विधि करके अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं. 
 
करवा चौथ के दिन महिलाएं चांद की पूजा करती है, उसके बाद अपने पति को छलनी में देखकर पति के हाथों से पानी पीकर अपना व्रत खोलती है. तो सवाल उठता है कि आखिर क्यों करवा चौथ व्रत के दिन महिलाएं चांद की पूजा क्यों करती है. साथ ही पति को छलनी से क्यों देखती है. हम आपको बता रहे हैं इन दोनों के मनोवैज्ञानिक और पौराणिक पक्ष.
 
चांद की पूजा का महत्व
छांदोग्योपनिषद् के अनुसार चंद्रमा पुरुष रूपी ब्रह्मा का रूप है, जिसकी उपासना करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. चंद्रमा शांति प्रदान करता है और मानसिक शांति से संबंध मजबूत होते हैं. चंद्रमा शिव जी की जटा का गहना है इसलिए दीर्घायु का भी प्रतीक है. पति की दीर्घायु की कामना को लेकर ही व्रत का समापन चंद्रदर्शन के साथ होता है. चंद्रमा को लंबी आयु का वरदान मिला है जिसके पास रूप, शीतलता और प्रेम और प्रसिद्धि है इसलिए सुहागिन स्त्रियां चंद्रमा की पूजा करती हैं, जिससे ये सारे गुण उनके पति में भी आ जाए.
 
 
पति को छलनी से देखने का महत्व
मनोवैज्ञानिक पक्ष- करवा चौथ व्रत की समाप्ति के दौरान पूजा करते समय महिलाएं पहले छलनी से चंद्रमा को देखती हैं, उसकी पूजा करती है उसके बाद अपने पति को. ऐसा माना जाता है कि पत्नी जब छलनी से अपने पति को देखती है तो उसने अपने ह्रदय के सभी विचारों व भावनाओं को छलनी में छानकर शुद्ध कर लिया है, जिससे उसके सभी दोष दूर हो चुके हैं. महिला के दिल में सिर्फ पति के लिए सच्चा प्यार बचा है.
 
 
पौराणिक कथा- वहीं कथाओं और किवंदतियां के अनुसार वीरवती नाम की एक पतिव्रता स्त्री ने अपने पति के लिए करवाचौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख के कारण वीरवती की हालत बिगड़ने लगी. वीरवती की ऐसी हालत देखकर उसके भाई घबरा गए. इसलिए भाईयों ने चांद निकलने से पहले पेड़ की ओट में छलनी के पीछे दीप रखकर वीरवती से कहा कि चांद निकल आया है. वीरवती ने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया. जिसके कारण वीरवती के पति की मृत्यु हो गई. वीरवती को जब पति की मृत्यु की सूचना मिली तो वह व्याकुल हो उठी.
 
वीरवती को पता चला कि उसके भाइयों ने धोखे से उसका व्रत खुलवा दिया है. कहा जाता है कि वीरवति ने अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया बल्कि उसके शव को सुरक्षित अपने पास रखा और अगले वर्ष करवाचौथ के दिन नियम पूर्वक व्रत रखा जिससे करवामाता प्रसन्न हुई. वीरवती का मृत पति जीवित हो उठा. वहीं छलनी का एक अर्थ छल करने वाला होता है. इसलिए महिलाएं स्वयं अपने हाथ में छलनी लेकर चांद देखती है ताकि कोई अन्य उसे झूठा चांद दिखाकर व्रत भंग न करे. करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सीखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे प्रतिव्रत से डिगा न सके.

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