बर्थडे स्पेशल: अमिताभ को कड़ी टक्कर देने वाले विनोद खन्ना ने ओशो आश्रम में टॉयलेट तक साफ किया

सेक्सी-संन्यासी, बाहुबली, डैशिंग ना जाने कितने नामों से विनोद खन्ना को बॉलीवुड में पुकारा जाता है. देखा जाए तो अमिताभ बच्चन के सबसे बेहतर जोड़ीदार साबित हुए थे विनोद खन्ना, मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एंथोनी, हेराफेरी, खून पसीना ऐसी तमाम फिल्में थीं

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बर्थडे स्पेशल: अमिताभ को कड़ी टक्कर देने वाले विनोद खन्ना ने ओशो आश्रम में टॉयलेट तक साफ किया

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  • October 6, 2017 2:32 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: सेक्सी-संन्यासी, बाहुबली, डैशिंग ना जाने कितने नामों से विनोद खन्ना को बॉलीवुड में पुकारा जाता है. देखा जाए तो अमिताभ बच्चन के सबसे बेहतर जोड़ीदार साबित हुए थे विनोद खन्ना, मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एंथोनी, हेराफेरी, खून पसीना ऐसी तमाम फिल्में थीं अमिताभ बच्चन की जिनमें विनोद खन्ना ना होते तो वो इतनी प्रभावशाली ना होतीं और ऐसी कोई भी मूवी इनमें से नहीं जिसमें विनोद खन्ना का रोल अमिताभ से सुपीरियर ना हो. अमिताभ जैसा ऑरा भले ही विनोद का ना रहा हो लेकिन किसी मायने में कम भी नहीं रहा.
 
 
पेशावर में एक पंजाबी बिजनेसमैन के घर 1946 में पैदा हुए थे विनोद, एक भाई और तीन बहनें थीं उनके परिवार में. आजादी के बाद पहले मुंबई में फिर कुछ समय के लिए दिल्ली में शिफ्ट हुआ उनका परिवार. कुछ साल उनकी पढ़ाई दिल्ली के डीपीएस स्कूल में हुई, वो ईस्ट पटेल नगर में रहते थे, पांचवी क्लास में एडमीशन लिया था और नवीं में जब आए तो परिवार फिर से मुंबई चला गया. बचपन से ही विनोद इतने डैशिंग थे कि कॉलेज की लड़कियों मरती थीं उन पर, लोगों की इतनी तारीफ ने उनके मन में बॉलीवुड की ख्वाहिशें जगा दीं. हालांकि स्वभाव से शर्मीले विनोद को स्कूल में एक टीचर ने एक स्कूल प्ले में एक्टिंग करने को जबरन उतार दिया, फिर तो विनोद की झिझक भी खुलने लगी. इन्हीं दिनों उन्हें अपने साथ पढ़ने वाली गीतांजलि पसंद आ गई.
 
 
पिता चाहते थे कि वो बिजनेस संभालें, इसलिए कॉमर्स में एडमीशन चाहते थे, इधर विनोद पहले इंजीनियर बनना चाहते थे लेकिन बाद में उन्हें एक्टिंग का भूत सवार हुआ. विनोद की जिद पर उन्हें दो साल का वक्त बॉलीवुड में किस्मत आजमाने के लिए दिया गया. उस रोज विनोद के पिता ने उनकी कनपटी पर गन रख दी थी कि अगर बॉलीवुड में जाने की जिद करोगे तो शूट कर दूंगा, फिर मां ने मामला सुलझाया और दो साल का वक्त दिलवाया. उस वक्त सुनील दत्त अपने भाई सोम दत्त को लांच करने के लिए एक मूवी बना रहे थे, ‘मन का मीत’. उनके एक डैशिंग विलेन की तलाश थी, सोमदत्त तो नहीं चल पाए लेकिन विनोद का कैरियर शुरू हो गया. एक हफ्ते के अंदर उन्होंने जो फिल्म मिली, वो सब साइन कर लीं, कुल पंद्रह फिल्में थीं. दरअसल वो पापा का बिजनेस नहीं ज्वॉइन करना चाहते थे.
 
उसके बाद नतीजा, सच्चा झूठा, आन मिलो सजना, मस्ताना, मेम साहब जैसी कई मूवीज में विलेन या करेक्टर आर्टिस्ट के रोल मिले. 1971 में हीरो का पहला रोल मिला हम, तुम और वो में, दिलचस्प बात थी कि उस किरदार का नाम विजय था, अमिताभ का फिल्मी नाम. शिवकुमार ने उन्हें ये मौका दिया था, हीरोइन थी भारती, मूवी तो नहीं चली लेकिन दो गाने चल निकले. प्रिय प्राणेश्वरी…. इसी मूवी का गाना था. इसी मूवी में अरुणा ईरानी भी थीं, जो विनोद के भाई प्रमोद की क्लास मेट रह चुकी थीं, उन्हीं की वजह से विनोद को ये मौका मिला था.
 
 
फिर ‘गुलजार’ ने ‘मेरे अपने’ में मौंका दिया शत्रुघ्न सिन्हा के साथ. देखा जाए तो यही मूवी थी जिसने मल्टीस्टारर मूवीज के लिए विनोद खन्ना को डायरेक्टर्स का फेवरेट बना दिया. उन्होंने अपनी जिंदगी में कम से कम पचास मल्टीस्टारर मूवीज में काम किया, वो फिल्में विनोद के बिना कुछ भी नहीं. 1973 में गुलजार की मूवी ‘अचानक’ और ‘मेरा गांव मेरा देश’ विनोद खन्ना की जिंदगी में बड़ा मोड़ लेकर आई. जहां ‘अचानक’ उसी नानावटी केस पर आधारित थी, जिसके पर अक्षय कुमार की मूवी ‘रुस्तम’ आई, तब भी वो इतनी ही बड़ी हिट हुई तो ‘मेरा गांव मेरा देश’ से विनोद ने दिखा दिया कि नेगेटिव रोल्स में भी उनकी कोई सानी नहीं. ऐसा ही एक नेगेटिव रोल ‘डॉन’ के डायरेक्टर चंद्रा बारोट ने मूवी ‘बॉस’ में विनोद को ऑफर किया था, लेकिन वो फिल्म कभी बन नहीं पाई.

 
अरसे बाद बॉलीवुड को एक ऐसा हीरो मिला जो मौका पड़ने पर नेगेटिव शेड के रोल भी कर सकता था, जिसको बाद में बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा और शाहरुख खान ने साबित कर दिखाया. फिर तो विनोद खन्ना बॉलीवुड की बड़ी फिल्मों के जैसे जरूरी हिस्सा बन गए, आशिक, बाहुबली, विलेन, दोस्त, विद्रोही, एक्शन किसी भी रंग का किरदार हो विनोद ने लगभग हर बड़े डायरेक्टर और हर बडे कलाकार के साथ काम किया. विनोद खन्ना का नाम कई हीरोइंस के साथ भी जुड़ा जिनमें अमृता सिंह, मॉडल लुबना एडम्स आदि. लेकिन ये शशि कपूर के बाद बॉलीवुड का ये दूसरा हीरो था, जो संडेज को कभी काम नहीं करता था, संडे परिवार के लिए रिजर्व था.
 
82 तक वो नॉन स्टॉप काम करते रहे द बर्निंग ट्रेन, कुर्बानी, मुकद्दर का सिकंदर, परवरिश, खून पसीना, एक हसीना दो दीवाने, डाकू और जवान, इनकार, फरेबी, चोर सिपाही, एक और एक ग्यारह, अमर अकबर एंथोनी, मैं तुलसी तेरे आंगनी की, हत्यारा, जमीर, कुंवारा बाप, फरिश्ते, बंटवारा जैसी तमाम फिल्में विनोद खन्ना ने की. इसी दौरान विनोद खन्ना ने गीतांजलि से शादी कर ली और चौदह साल बाद दो बेटों राहुल और अक्षय के बाद उनसे तलाक ले लिया. बाद में कविता से शादी कर ली. इस दौरान ये कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन के साथ जिन फिल्मों में काम किया, उनको अमिताभ से ज्यादा पैसा दिया गया. फिर 1982 में वो दौर आया, जब उन्हें सैक्सी हीरो के बजाय सैक्सी सन्यासी कहा जाने लगा. वो ओशो रजनीश के सम्पर्क में आए, अक्सर उनके पुणे आश्रम में जाने लगे. 31 दिसंबर 1975 को विनोद ने मूवीज से अपने संन्यास का ऐलान कर दिया. हालाकि फिल्मों की शूटिंग पूरी की. वहां उन्होंने ओशो आश्रम के टॉयलेट तक साफ किए. वो आध्यात्म की दुनियां में उनके साथ चले गए, पांच साल उन्हीं के साथ दुनियां घूमते रहे. अमेरिका के रजनीश पुरम में विनोद एक आम शिष्य की तरह ही रहते, और छोटे छोटे काम करते थे. इसी दूरी ने परिवार से उनकी दूरियां बढ़ गईं और वीबी ने तलाक ले लिया. बाद में 1990 में कविता से शादी की, जिससे उनके दो बच्चे हैं बेटा साक्षी और बेटी श्रद्धा.
 
1987 में विनोद ने वापसी की, तब भी उन्हें गोविंदा, सलमान, संजय दत्त आदि से ज्यादा पैसा मिल रहा था. डिम्पल कपाडिया के साथ उन्होंने ‘इंसाफ’ से वापसी की, उसके बाद ‘जुर्म’ और फिर ‘चांदनी’. वापसी के बाद डिम्पल के साथ घटी एक घटना काफी चर्चित रही थी, फिल्म ‘प्रेम धरम’ के सेट पर विनोद खन्ना और डिम्पल के बीच एक किस सीन शूट होना था, डायरेक्टर ने कट बोला लेकिन विनोद लगातार डिम्पल को पकड़कर किस करते रहे, डिम्पल शॉक्ड थी क्योंकि सीन इतना इंटीमेट और लम्बा नहीं था. डायरेक्टर के दो असिस्टेंट्स वहां पहुंचे और विनोद को हटाया, डिम्पल तुरंत अपने मेकअप रूम में घुस गईं. लोगों ने कहा कि विनोद अरसे तक लड़कियों से दूर रहे हैं, शायद कंट्रोल नहीं कर पाए.

 
वापसी में भी उनको मिलने वाली ज्यादातर मल्टी स्टारर फिल्में थीं, लेकिन बंटवारा, फरिश्ते और क्षत्रिय जैसी धर्मेन्द्र के साथ की गईं एक्शन फिल्में चली भीं. दयावान और महासंग्राम भी काफी पंसद की गईं. डॉन के रूप में विनोद को काफी पसंद किया गया. हालिया फिल्मों में दबंग, दबंग टू और वांटेड में विनोद नजर आए लेकिन उससे पहले ही वो राजनीति में सक्रिय हो गए. इसी दौरान अपने बेटे अक्षय खन्ना को उन्होंने ‘हिमालय पुत्र’ से लांच भी किया. 1997 में बीजेपी में शामिल होकर विनोद ने गुरूदासपुर से लोकसभा का चुनाव जीता, बाजपेयी सरकार में दो विभागों में मंत्री भी रहे. 2009 में हारने के बाद 2014 में फिर वहां से सांसद थे. दिलचस्प बात ये है कि पहली बार सांसद उम्मीदवार का नाम ऐलान होने से पहले वो जानते तक नहीं थे कि गुरुदासपुर है कहां, ये बात उन्होंने एक इंटरव्यू में मानी थी.

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