करवा चौथ 2017 : इस खास कारण से की जाती है चंद्रमा की पूजा
रविवार को सभी सुहागनें अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखने वाली हैं. दिन भर भूखे रहने के बाद पत्नियां चांद और अपने पिया का चेहरा देखने के बाद व्रत खोलती हैं. करवा चौथ की पूजा में चंद्रमा का बहुत महत्व है. चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही सुहागन औरतें अपने पतियों का चेहरा देखती हैं और व्रत खोलती हैं. फैमिली गुरु जय मदान ने करवा चौथ में चंद्रमा की पूजा का महत्व बताया है.
October 6, 2017 2:31 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली : रविवार को सभी सुहागनें अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखने वाली हैं. दिन भर भूखे रहने के बाद पत्नियां चांद और अपने पिया का चेहरा देखने के बाद व्रत खोलती हैं. करवा चौथ की पूजा में चंद्रमा का बहुत महत्व है. चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही सुहागन औरतें अपने पतियों का चेहरा देखती हैं और व्रत खोलती हैं. फैमिली गुरु जय मदान ने करवा चौथ में चंद्रमा की पूजा का महत्व बताया है.
करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा करने का बहुत ही खास महत्व है. चंद्रमा को शीतलता और पूर्णता का प्रतीक माना जाता है और इससे मिली मानसिक शांति से रिश्ते मजबूत होते हैं. यह भी देखा गया है कि ज्यादातर लोग जो मोक्ष को प्राप्त हुए हैं वह भी चंद्रमा वाले दिन यानी पूर्णिमा वाले दिन ही प्राप्त हुए है. जैसे समुद्र को चंद्रमा रेगुलेट करता है वैसे ही हमारे मन को भी चंद्रमा रेगुलेट करता है.
चंद्रमा को लंबी आयु का वरदान मिला है. चांद के पास प्रेम और प्रसिद्धि है. यही वजह है कि सुहागिनें चंद्रमा की पूजा करती हैं. जिससे ये सारे गुण उनके पति में भी आ जाए. करवा चौथ के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए व्रत रखती हैं. इस व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है. करवा चौथ की भी अपनी एक कहानी है जिसे स्त्रियां कथा के रूप में व्रत के दिन सुनती है.
रोमांस का प्रतीक है चंद्रमा
चंद्रमा की शीतल चांदनी पति-पत्नी के बीच प्यार को बढ़ाती है. रिश्तों में शांति और शीतलता लाती है. चंद्रमा को रोमांस का प्रतीक भी माना जाता है.
खाएं पूरा बताशा
दिन भर बिना खाना खाए, बिना पानी पिए रहने के बाद व्रत खोलने के लिए सुहागनों को पूरा बताशा खाना चाहिए, आधा या टूटा बताशा नहीं, क्योंकि वह पूर्ण है और चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है और रिश्ते को भी पूर्ण बनाता है.
बताशा आधा खाकर एक-दूसरे को ना खिलाएं, बल्कि पूरा साबुत बताशा खाएं. ताकि आपके अंदर पूर्णता आए, क्योंकि जब हम अंदर से पूर्ण होते हैं तभी दूसरे को प्यार दे पाते हैं.