नई दिल्ली: अगर आप संजय दत्त के जबरा फैन हैं तो आपको ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए, रोमांस छोड़कर बाकी सब कुछ संजय ने किया है एक्शन, इमोशंस और दारू पीकर थोड़ी थोड़ी कॉमेडी भी. वैसे भी ये संजू बाबा की जेल से आने के बाद कमबैक फिल्म है सो उनके फैंस को इंतजार होगा और संजू बाबा हर फ्रेम में जबरदस्त हैं. लेकिन ओमंग कुमार से जैसी उम्मीद थी, वो उन उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे. पहली नजर में ये आपको मातृ और मॉम जैसी ही लगेगी, हालांकि उनसे काफी कुछ ज्यादा है.
प्रोमोज से ही जाहिर था कि फिल्म बाप बेटी के रिश्तों, बेटी के रेपिस्ट्स से बाप के बदले पर बनी है. जाहिर है स्क्रिप्ट में कुछ भी नया नहीं था, ऐसी थीम पर कई फिल्में बन चुकी हैं. ऐसे में डायरेक्टर पर और ज्यादा प्रैशर होना चाहिए, जबकि थीम कॉमन हो. इसलिए ट्रीटमेंट पर ज्यादा मेहनत की जरूरत होती है, जो बैकग्राउंड, स्क्रीन प्ले, एक्टर्स के सलेक्शन, डायलॉग्स, म्यूजिक और सीरीज ऑफ इन्सीडेंट्स के आपसी तारतम्य के रूप में सामने आती है. ओमंग कुमार बैकग्राउंड और एक्टर्स के सलेक्शन में भले ही पास हो गए हों, लेकिन कमजोर स्क्रीन प्ले और डायलॉग्स ने फिल्म की लय बिगाड़ दी.
फिल्म की कहानी आगरा में जूती शॉप के मालिक अरुण सचदेवा यानी संजय दत्त की है, जिसका एक दोस्त गाइड है शेखर सुमन. संजय की बेटी भूमि के रोल में है अदिति राव हैदरी. जो शादियों में मेंहदी लगाती है, वैडिंग प्लानर जैसी भी है. उसका अफेयर एक डॉक्टर से है और अगले महीने शादी भी है.
पेठे की दुकान का ओनर विशाल उस पर लट्टू है, लेकिन भूमि उसे मना कर देती है. विशाल के मौसेरे भाई के रोल में है धौली यानी शरद केलकर, आपको फिल्म में संजय के अलावा दूसरा किरदार अगर पसंद आएगा तो वो है फिल्म के मेन विलेन शरद केलकर का. अपने भाई की जिद पर वो भूमि को नशीला लड्डू खिलाकर गैंगरेप करते हैं. उनको लगता है अगले दिन शादी है भूमि किसी से नहीं कहेगी, वो कहती भी नहीं लेकिन शादी से ठीक पहले अपने दूल्हे को बता देती है और फिर बारात वापस. एफआईआर, गिरफ्तारी, कोर्ट, केस ट्रायल, आरोपियों के वकील के उलटे सवाल, कोर्ट से न्याय ना मिलना और फिर बाप का बदला लेना, ये सब इस फिल्म में भी है.
अब चूंकि ओमंग कुमार की फिल्म थी, संजय दत्त की कमबैक फिल्म थी तो इसमें कुछ नया करने की कोशिश की गई है. जैसे मेडिकल रिपोर्ट में रेप की बात साबित ही ना होना, वकीलों के सवालों से परेशान संजय दत्त का कोर्ट से खुद ही केस वापस लेना, सब कुछ भूलकर बाप बेटी का फिर से नॉर्मल जिंदगी बिताना, बाद में भूमि के एक मोहल्ले के लड़के से उसके रेप का वीडियो मिलने के बाद बदला लेने की प्लानिंग करना आदि.
बदला भी अलग तरीके से प्लान किया गया, तमाम फिल्मों और न्यूज चैनल्स पर चली घटनाओं को इसमें शामिल किया गया है. जिसमें निर्भया कांड में शामिल नाबालिग वाला मामला भी है और इंसाफ का तराजू का गुप्तांग काटने का आइडिया भी. नाबालिग आरोपी को 18 साल का होने तक कैद में रखते हैं संजय दत्त और तब तक इतना शर्मिंदा कर देते हैं कि वो केक की जगह अपना गला काट लेता है, तो दूसरे को खुद ही अपना गुप्तांग काटने पर मजबूर कर देते हैं.
जाहिर था ओमंग कुमार ने ट्रीटमेंट अलग करने की कोशिश में फिल्म में तमाम एक्सपेरीमेंट किए. ऐसे में बहुत अजीब भी लगता है, लेकिन दो किरदार फिल्म को बांधे रखते हैं, संजय दत्त का और शरद केलकर का. बादशाहो में भी शरद केलकर एक राजस्थानी पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में थे और इसमें राजस्थानी विलेन के तौर पर.
शेखर सुमन का जरूर ढंग से इस्तेमाल नहीं हो पाया, बांग्लादेशियों, जापानियों और चीनियों पर नस्ली जोक बनाते रह गए. अदिति राव हैदरी यूं तो लीड रोल में थीं, लेकिन कई बार उनको जो सीन मिलने चाहिए थे, जो डायलॉग मिलने चाहिए थे, वो मिलते नहीं लगे, ऐसे में कई बार उनको एक्सप्रेशंस से ही काम चलाना पड़ा.
फिल्म आगरा के बैकग्राउंड पर है, इसलिए बेलनंगज लोकेशन पर भी छत के सीन ताजमहल के ठीक पीछे वाले ताजगंज के घरों में फिल्माए गए. जूते, पेठे और गाइड, आगरा के तीनों फेमस बिजनेस इस फिल्म के किरदारों को दिए गए. इमोशनल लेवल पर भी फिल्म को काफी भुनाया गया, श्राद्ध से लेकर फिल्म की रिलीज डेट पर नवरात्रा तक, वैसे भी देवी पूजा फिल्म के सब्जेक्ट को सूट करती है.
फिल्म का क्लाइमेक्स भी मशहूर चांद बावड़ी पर देवी माता की सैकड़ों चुनरियों के बीच फिल्माया गया. बाप बेटी के रिश्ते को भी काफी इमोशनल टच दिया गया, बेटी का बाप तो गूंगा ही होता है साहब जैसे डायल़ॉग्स और बेटी के सर से जुएं निकालकर खाते संजय दत्त के सीन से लेकर. म्यूजिक की फिल्म में ज्यादा जरूरत नहीं थी, गाने याद रखने लायक नहीं लेकिन पसंद आएंगे.
तो मान कर चलिए फिल्म छोटे बजट की है, तो उतना निकाल लेगी. लेकिन ये वो फिल्म नहीं, जो संजय द्त के ग्रांड कमबैक के लिए बनाई जाती है, मैसेज देने के लिए तो मुन्नाभाई सीरीज की फिल्म ही बेहतर है. फिल्म में तमाम तकनीकी खामियां हैं, जिनको इमोशंस और संजय दत्त व शरद केलकर की दमदार एक्टिंग के जरिए ओमंग कुमार ने ढकने की कोशिश की. लेकिन उतने कामयाब नहीं हो पाए.