Budhha Kashmiriyat Ladakh: जम्मू-कश्मीर के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है वहीं घाटी के पूर्व मुख्यमंत्रियों की माने तो आज लोकतंत्र का काला दिन है. नरेंद्र मोदी सरकार के गृह मंत्री अमित शाह ने देश की संसद में आर्टिकल 370 हटाने का रिजॉल्यूशन पेश कर दिया. जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. लद्दाख को भी केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया है. पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती इस फैसले को हिंदू-मुस्लिम रंग दे रही हैं. उमर अब्दुल्ला भी ट्विटर पर सांप्रादायिक हिंसा की आशंका जता चुके हैं. दरअसल इन नेताओं ने कश्मीर और इस्लाम को एक दूसरे का पूरक बताने की कोशिश की है. हकीकत कुछ और है. कश्मीर में इस्लाम से पहले गौतम बुद्ध आए और उनके मेधावी शिष्य सम्राट अशोक जिन्होंने कश्मीर की राजधानी श्रीनगरी बसाई. नए राज्य लद्दाख के बनने से शायद बुद्ध की भी कश्मीर वापसी संभव हो सके.
नई दिल्ली. नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने सोमवार 5 अगस्त का दिन चुना अपने सबसे साहसिक या दुस्साहसी फैसले के लिए. जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया, लद्दाख को बिना विधानसभा का अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और आर्टिकल 370 हटाने पर सदन में बहस शुरू कर दी. राष्ट्रपति ने राज्य के पुनर्गठन को मंजूरी भी दे दी. यह सब कुछ सुबह 9 बजे शुरू हुआ और शाम 5 बजे से पहले हो चुका था. उमर अब्दुल्ला हों या महबूबा मुफ्ती, जम्मू-कश्मीर के ये पूर्व मुख्यमंत्री भयानक, भंयकर, भयावह टाइप के ट्वीट लिख रहे हैं. महबूबा मुफ्ती ने तो इसे देश के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य की जनसंख्या को असंतुलित करने की साजिश बता दी है.
इस्लाम और कश्मीरियत इन नेताओं की बयानबाजी से एक दूसरे के पर्याय लग सकते हैं लेकिन सच यह है कि कश्मीरियत का इतिहास, इस्लाम से काफी पुराना है. भारत में एक दौर ऐसा भी आया जब महात्मा बुद्ध को मानने वाले शांतिप्रिय बौद्धों को भगाया जा रहा था. ऐसे दौर में कश्मीर उनकी शरणस्थली बनीं. कश्मीर दुनिया में बुद्धिज्म के बड़े केंद्र के तौर पर स्थापित हो गया. कश्मीर की राजधानी श्रीनगर भी उन्हीं भगवान बुद्ध के आशिक सम्राट अशोक ने बसाई थी. लद्दाख को अलग राज्य के तौर पर पहचान मिलेगी तो शायद बुद्ध की भी कश्मीर वापसी हो, क्योंकि कश्मीरियत बुद्ध के बिना अधूरी है.
जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर भी बुद्ध के अनुयाई सम्राट अशोक ने बसाई थी. उसी श्रीनगर में अपने घर में हाउस अरेस्ट पूर्व मुख्यमंत्री महबूूबा मुफ्ती लगातार ट्वीट कर रही हैं. घाटी का इंटरनेट काट दिया गया है लेकिन एक्स सीएम साहिबा का नेट चल रहा है. उनके ट्वीट में आर्टिकल 370 को हटाने की कोशिश देश के इकलौते मुस्लिम बहुल राज्य का जनसंख्या संतुलन बिगाड़ने की कोशिश भर है. निश्चित तौर पर महबूबा मुफ्ती कश्मीर के इतिहास से पूरी तरह वाकिफ नहीं हैं.
GOIs intention is clear & sinister. They want to change demography of the only muslim majority state in India , disempower Muslims to the extent where they become second class citizens in their own state.
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) August 5, 2019
सम्राट अशोक ने बसाई थी जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर
कश्मीर की राजधानी ‘श्रीनगरी’ बुद्ध के अनुयाई सम्राट अशोक ने बसाई थी. कश्मीर हमेशा से बुद्धिज्म का एक बड़ा केंद्र रहा है. अशोक की ही तरह अफगानिस्तान के महान राजा कनिष्क का बौद्ध धर्म के प्रसार में बहुत बड़ा योगदान है. कनिष्क का साम्राज्य कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान से लेकर मथुरा और कशमीर तक फैला था. कनिष्क ने कश्मीर में चार बौद्ध काउंसिलों की स्थापना की. उन्होंने कश्मीर, अफगानिस्तान, श्रीलंका, भारत में अनेकों बौद्ध स्तूप, मूर्तियों का निर्माण करवाया. बौद्ध धर्म के शिक्षा केंद्रों की स्थापना की. उन्होंने एक तरफा गांधार में (आधुनिक कांधार) बौद्ध कला-साहित्य तो दूसरी तरफ मथुरा में हिंदू कला-संस्कृति को प्रोत्साहन दिया. कनिष्क स्तूप को तो दुनिया भर में स्थापत्य कला के अदभुत आश्चर्य के तौर पर देखा जाता था. यह स्तूप वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर में है.
‘सर्व अस्ते वदा’: सर्व धर्म समभाव का पहला प्रयोग
कश्मीर में इस्लामी शासकों के आने से पहले तक यानी लगभग 11वीं सदी तक बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा. यहां की शासन व्यवस्था का सूत्र था ” सर्व अस्ते वदा”. इसका अर्थ है जो भी पूर्व में ईश्वर हुए जो वर्तमान में हैं या जो भविष्य में होंगे हम सभी का अस्तित्व स्वीकार करते हैं. यह सर्व धर्म समभाव की पहला प्रयोग था जो लगभग एक हजार साल तक सफलतापूर्वक चला. कश्मीर कभी धार्मिक हिंसा के लिए नहीं जाना गया. भारत से किनारे किये जाने के बाद बुद्धिज्म कश्मीर में ही फला-फूला. दूसरी तरफ अफगानिस्तान भी बुद्धिज्म का बड़ा केंद्र था. अफगानिस्तान में सबसे पहले बौद्ध धर्म लगभग 2300 साल पहले आया जब मौर्य साम्राज्य के सम्राट चंद्रगुप्त और सेल्युकस साम्राज्य के मिलन से ग्रीको-बौद्ध सभ्यता अस्तित्व में आई.
कश्मीर को बुद्ध की जरूरत है….
कश्मीर किसी भी किस्म की धार्मिक कट्टरता का विरोधी रहा है. यह कश्मीर के स्वभाव में है. यहीं कारण था कि जब हिंदू शुद्धतावादियों ने बौद्धों को हटाने का प्रयास किया तो कश्मीर ने उन्हें सहर्ष स्वीकार किया. बौद्ध धर्म के सबसे बड़े केंद्र राजगीर में बुद्ध को मानने वाले कम होते गए लेकिन कश्मीर और अफगानिस्तान सहित दुनिया के अनेक देशों में बुद्ध की शिक्षा लोगों को प्रभावित करती रही. कश्मीर अपनी कला-संस्कृति और बौद्ध विहारों के लिए दुनिया भर में मशहूर था. ज्ञान का केंद्र कश्मीर लगभग दो दशक से आंतरिंक संघर्ष झेल रहा है. कश्मीरी ब्राह्मणों का पलायन हो या कश्मीरी युवाओं का आतंकवाद की तरफ आकर्षित हो जाना. खतरा यहीं नहीं है जिस तरह से कश्मीर में धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है वह भी बुद्ध की जरूरत को रेखांकित करता है. कश्मीर कभी वहाबी इस्लाम का भी झंडाबरदार नहीं रहा. यहीं वजह है कि कश्मीर में सूफी संतों की बड़ी परंपरा रही है.
बिना बुद्ध के कश्मीरियत का जिक्र अधूरा, क्या लद्दाख के अलग राज्य बनने से लौटेंगे बुद्ध
आधुनिक भारत में जिसका जन्म 15 अगस्त 1947 को हुआ, कश्मीर की एक अलग पहचान है. कश्मीरियत की सारी बहसों में बुद्ध का जिक्र न होना बताता है कि बात अधूरी है. दरअसल बुद्ध का धर्म बुद्धि का धर्म है. ओशो ने बुद्ध को धर्म का पहला वैज्ञानिक कहा था. बुद्ध को समझना अपने भीतर की यात्रा को समझने का प्रयास है. बुद्ध के अनुयाई होने से पहले सम्राट अशोक हों या महान कनिष्क दोनों अपनी क्रूरता के लिए जाने जाते थे. बुद्ध ने उनका जीवन बदल दिया. बुद्ध ने अपने जीवनकाल में जितने लोगों को प्रभावित किया उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती. बुद्ध के जाने के बाद भी उनकी शिक्षा का प्रसार दुनिया भर में हुआ. अब जब लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला किया गया है ऐसे में उम्मीद जगती है कि बुद्ध को याद किया जाएगा. बता दें लद्दाख ही जम्मू-कश्मीर का वह इलाका है जहां बौद्ध धर्म बचा हुआ है.
बुद्ध जिसे दुनिया ने पूजा
देशों के वर्तमान स्वरूप में अगर देखें तो भारत, बांग्लादेश, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, जापान, मलेशिया, मंगोलिया, म्यांमार, नेपाल, नॉर्थ कोरिया, फिलिपिंस, सिंगापुर, साउथ कोरिया, श्रीलंका, ताईवान, थाईलैंड, वियतनाम सहित कई देशों में बौद्ध धर्मावलंबी रहते हैं. बुद्धिज्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है. दुनिया की लगभग 7 फीसदी आबादी बौद्ध धर्म को मानती है बुद्ध को एशिया का लाइटहाउस कहा जाता है. लेकिन असल में बुद्ध दुनिया के लाइटहाउस थे. हिंसा और अविश्वास के अंधेरे में भटक रही कश्मीर घाटी को भी इसी रौशनी की जरूरत है. बुद्ध ने तो कहा भी था, “अप्पो दीपो भव:” अपना प्रकाश स्वयं बनो. कश्मीरियत के जिक्र में सर्व अस्ते वदा का जिक्र न होना और बुद्ध की बात न होना एक एकांगी और अधूरी चर्चा है. बुद्ध का प्रकाश और प्रेम हमारे कश्मीर को फिर से जन्नत सरीखा बना दे यहीं कामना है.
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