नई दिल्ली: गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशल स्कूल में बीते शुक्रवार को 7 साल के प्रद्युम्न की चाकू से गला रेतकर हत्या कर दी गई थी. प्रद्युम्न की मौत के बाद उनके परिजनों के साथ-साथ पूरा देश आहत है. हालांकि आरोपी बस कंडक्टर को भी गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन इस दिल दहला देने वाले मामलें में अब जाने-माने गीतकार और सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने सोशल मीडिया पर प्रद्युम्न के लिए एक दिल को छूने वाली कविता शेयर की है.
प्रसून जोशी की इस कविता ने लोगों के दिलों को छु लिया है और उनकी ये कविता सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. इससे पहले भी कॉमेडियन सुनील पाल ने एक वीडियो शेयर कर अपना दर्द जाहिर किया था. इस वीडियो में सुनील पाल कह रहे हैं दोस्तों आजकल स्कूल में बच्चों के साथ जो अत्याचार हो रहे हैं, शर्म आनी चाहिए. बता दें कि अब इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट में चल रही रेयान स्कूल समूह के सीईओ रेयान पिंटो की अग्रिम जमानत का प्रद्युम्न के पिता विरोध करेंगे. प्रद्युम्न के पिता वरुण ठाकुर के वकील सुशील टेकरीवाल ने इंडिया न्यूज़ से कहा कि वो बॉम्बे हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर विरोध करेंगे. सुशील टेकरीवाल के मुताबिक वो याचिका दाखिल कर कहेंगे कि सीईओ रायन पिंटो की अग्रिम जमानत की याचिका को ख़ारिज किया जाए. याचिका में कहा गया है कि ये रेयरेस्ट ऑफ रेयर का मामला है. ये ऐसा शिक्षा माफिया है जो स्कूल के लाभांश का हिस्सेदार है. इसके इशारे पर सबूतों को लगातार नष्ट कराया जा रहा है ताकि स्कूल को बचाया जा सके. ऐसे में रेयान पिंटो को गिरफ़्तार किया जाए. वहीं, मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने रायन स्कूल समूह के सीईओ रेयान पिंटो की गिरफ्तारी पर कल बुधवार तक के लिए रोक लगा दी है. रेयान पिंटो ने सोमवार को अदालत में अग्रिम जमानत की अर्जी दायर की थी. अब इस मामले की कोर्ट में सुनवाई कल होगी.
इस कविता में प्रसून जोशी ने लिखा है ,“जब बचपन तुम्हारी गोद में आने से कतराने लगे, जब माँ की कोख से झाँकती ज़िन्दगी, बाहर आने से घबराने लगे, समझो कुछ ग़लत है. जब तलवारें फूलों पर ज़ोर आज़माने लगें, जब मासूम आँखों में ख़ौफ़ नज़र आने लगे, समझो कुछ ग़लत है. जब ओस की बूँदों को हथेलियों पे नहीं, हथियारों की नोंक पर थमना हो, जब नन्हें-नन्हें तलुवों को आग से गुज़रना हो, समझो कुछ ग़लत है. जब किलकारियाँ सहम जायें. जब तोतली बोलियाँ ख़ामोश हो जाएँ. समझो कुछ ग़लत है, कुछ नहीं बहुत कुछ ग़लत है, क्योंकि ज़ोर से बारिश होनी चाहिये थी पूरी दुनिया में, हर जगह टपकने चाहिये थे आँसू, रोना चाहिये था ऊपरवाले को आसमान से फूट-फूट कर शर्म से झुकनी चाहिये थीं इंसानी सभ्यता की गर्दनें शोक नहीं सोच का वक़्त है, मातम नहीं सवालों का वक़्त है.अगर इसके बाद भी सर उठा कर खड़ा हो सकता है इंसान तो समझो कुछ ग़लत है”.