नई दिल्ली: प्रद्युम्न की हत्या एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है. हरेक माता-पिता घबराए हुए हैं. भारत में 80 से 90 फीसदी लोग जो बच्चों की पढ़ाई पर खर्चा कर सकते हैं, वो अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए अपनी औकात के हिसाब से अच्छे से अच्छे स्कूल पढ़ाना चहाते हैं. प्रद्युम्न के पिता एक छोटी सी कंपनी के मैनेजर हैं. उनकी ज्यादा सैलरी नहीं है, दो-दो बच्चे हैं. बेहतर शिक्षा के लिए रेयान इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ते हैं.
स्कूल में न तो ठीक से टॉयलेट हैं, ड्राइवर और कंडक्टर के लिए भी अलग से टॉयलेट नहीं था. साथ ही ड्राइवर और कंडक्टर आसानी से स्कूल के अंदर आसानी से आ जा सकते थे. स्कूल के अंदर बेसिक चीजें भी जैसे बाउंड्री वॉल तक नहीं हैं. स्कूल के एक कोने में जंगल बना हुआ है, एक जगह पार्किग है वो भी ठीक से नहीं है, कोई भी आकर गाड़ी पार्क कर सकता है.
रेयान इंटरनेशनल स्कूल के देश और विदेश में लगभग 126 स्कूल हैं. इतनी बड़ी संस्था होने के बाद भी स्कूल में बेसिक चीजों की क्यों कमी रही. प्रघुम्न हत्याकांड की पुलिस जांच पर भरोसा क्यों नहीं ? प्राइवेट स्कूलों की अंधेरगर्दी सरकार को क्यों नहीं दिखती ?
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