राहुल बाबा का ‘महाभिनिष्क्रमण’, यानी ज्ञान प्राप्ति तक घुमक्कड़ी

यदहरेव विरजेत तदहरेव प्रवजेत यानी जिस दिन मन उचटे, उसी दिन निकल पड़ना चाहिए. यूं तो राहुल बाबा इस थ्यौरी को काफी पहले से फॉलो करते आ रहे थे, लेकिन इन दिनों इतनी ज्यादा नकारात्मक खबरें आ रही हैं देश में कि दीर्घकालीन लेवल का मन उचट गया है

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राहुल बाबा का ‘महाभिनिष्क्रमण’, यानी ज्ञान प्राप्ति तक घुमक्कड़ी

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  • September 9, 2017 5:13 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: यदहरेव विरजेत तदहरेव प्रवजेत यानी जिस दिन मन उचटे, उसी दिन निकल पड़ना चाहिए. यूं तो राहुल बाबा इस थ्यौरी को काफी पहले से फॉलो करते आ रहे थे, लेकिन इन दिनों इतनी ज्यादा नकारात्मक खबरें आ रही हैं देश में कि दीर्घकालीन लेवल का मन उचट गया है. एक तो सर्वे आ गए कि 2019 में जीतने वाले नहीं, दूसरे नीतीश कुमार धोखा दे गए, तीसरा राजनाथजी ने भरी सभा में पगड़ी उछाल दी ये कहकर कि 72 बार बाबा विदेश भ्रमण गए और एसपीजी को गोली दे गए. अरे ज्ञान लेने जाते हैं कोई दंड पेलने नहीं, जो पिचकुल्लों को साथ ले जाएं, लेकिन होम मिनिस्टर कम नाराज घरवाली के रोल में ज्यादा दिखते हैं, सो खून का घूंट पी कर रह गए बस. लेकिन मन अब महाभिनिष्क्रमण का है, यानी ज्ञान प्राप्ति तक घुमक्कड़ी.
 
इसलिए आनन फानन में पहला प्लान भी बनाया तो नॉर्वे का, एक तो बीजेपी वालों को नहीं पता होगा कि नॉर्वे में क्या है, पॉलटिकल सर्वे में लगे रहते हैं, उनको धेला नहीं मालूम कि नॉर्वे हैप्पी कंट्री इंडेक्स में नंबर वन है. बाबा सब जानते हैं, कोई मानता नहीं ये अलग बात है. हमारे देश के गरीब लोग स्केप ऑफ वेलोसिटी का सिद्धांत इस्तेमाल करके कैसे खुश रहें, ये भी नार्वे से ही सीखा जाएगा ना?. बाबा ने अपनी जवानी में कई बार अपने नेहरूजी की किताब भारत एक खोज पढ़ी थी, उसको पढ़कर ही तो उन्होंने मजदूरों के साथ मिट्टी उठाने, दलित के घर खाना खाने और लोकल ट्रेन में चढ़ने जैसे काम करे. लेकिन नफा होता नहीं दिखा, लगा मामला अब आगे बढ़ गया है, भारत तो अब ऑनलाइन रहता है, खोजने की क्या जरूरत? कांग्रेस की साइट के सर्वे में 77 परसेंट ने फौरन बता दिया कि नेहरूजी गधे पर बैठकर भूटान गए थे. उन्हें पता चल गया है कि भारत में खोजने को अब कुछ नहीं बचा है, बैंकॉक गए थे पिछले साल विपाशना करने तो सबने बताया कि ये तो भारत से ही सीखा है. तो लौटकर गीता और उपनिषद पढ़े यही बाकी रह गए थे, पता करने कि संघी कहां से आइडिया लाते हैं जीतने का और योगा..नहीं योगा नहीं, वो तो मोदी का एजेंडा है. लेकिन गीता में एक श्लोक पढ़कर वो चौंक गए.
 
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
 
यानी श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं. तो बाबा को समझ आ गया कि किसको फॉलो करना है, और वैसे भी मोदी जी देश से ज्यादा विदेश में रहते हैं तो इसके पीछे जरूर कोई ना कोई राज होगा. तो बाबा ने भी बना लिया फॉरेन प्लान. फिर बाबा के ये टुअर दाढ़ी वाले बाबा की यात्राओं से कैसे अलग होंगे? बाबा ने इसका भी इंतजाम कर लिया है, अपनी यात्राओं को नाम दिया है स्टडी टुअर वर्ल्ड टुअर, बिलकुल यूनिक आइडिया.
 
इस पर क्लेरीफाइड भी उनके एक पिछलग्गू ने दिया, देखिए मोदी जी और बाकी नेता तो हमेशा पास्ट में घुसे रहते हैं, सिकंदर यहां आया, औरंगजेब की सड़क का नाम बदल दो, लेकिन फ्यूचर की कोई नहीं सोचता, तो बाबा फ्यूचर की सोचने जा रहे हैं, सीखने जा रहे हैं. बात में तो दम है, वैसे भी उनके खुद के फ्यूचर के साथ-साथ पार्टी का भी डांवाडोल है और बाबा उन सबके बारे में सोचने के बजाय निज स्वार्थ तज कर देश के फ्यूचर के बारे में सोच रहे हैं तो ये तो महान विचार है. स्वागत नहीं करोगे बाबा के विचार का? उनका जो लेक्चर प्लान हुआ है उसका टॉपिक है—-‘India At 70: Reflections On The Path Forward’.
 
यानी पास्ट के मुद्दे पर फॉरवर्ड पाथ, वैसे भी बाबा बचपन से ही सारे पॉलटिकल लेक्चर फास्ट फॉरवर्ड मोड में ही देखते आए थे. बाबा हमेशा आगे की सोचते हैं, तभी तो जब मोदीजी को डोकलाम पर कुछ समझ नहीं आ रहा था, बाबा चुपके से चीनी राजदूत से मिल लिए और सब सैट कर दिया, और मजे की बात कि जब तक खुल नहीं गई बात, तब तक उसे छुपाए भी रखा, बाबा क्रेडिट लेने में थोड़े संकोची हैं.
 
आप भी मान जाएंगे बाबा की ये क्वालिटी जानकर कि एक ही वक्त में बाबा गुरू भी हैं और चेले भी, यानी अर्धचेलेश्वर. जा तो रहे हैं स्टडी टुअर पर लेकिन ज्ञान बांटने का मौका भी फिसलने नहीं दे रहे हाथ से. आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस पर लेक्चर का इनवाइट दिया तो किसी ने मजाक में लेकिन बाबा ने फौरन लपक लिया, बोल देंगे विकीपीडिया में पढकर, मोदी जी भी तो यही करते हैं. टाइम्स स्क्वायर पर भाषण भी दे देंगे, भीड़ का इंतजाम?. आयोजकों को बताया जाएगा कि सैंतालीस साल के हो गए बाबा, क्या भारत या विदेश की मीडिया कभी पकड़ पाई उन्हें विदेशी धरती पर?  किसी एनआरआई की इतनी पहुंच थी कभी कि एक सेल्फी निकाल लें एयरपोर्ट पर? किसी विदेशी सीसीटीवी में कैप्चर हुए क्या बाबा आज तक? आयोजक ये दावा करेंगे कि बड़ी मुश्किल से पकड़ा है सैंतालीस साल मे पहली बार, एसपीजी तक तो पकड़ नहीं पाती… साली भीड़ तो झख मारकर आएगी.
 
बाबा ने तो सोच लिया है ना आएं उनके साथ ना आएं लैफ्ट वाले, ना आएं मुलायम सिंह, ना आएं नीतिश कुमार… सोच लिया है बाबा खड़ा बाजार में लिए लुकाटी हाथ, जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ। बाबा फक्कड़ तो थे ही, अब घुमक्कड़ भी हो गए हैं, अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा. वैसे भी अपने महाभिनिष्कमण को लेकर तब वो और ज्यादा गम्भीर हो गए, जब उन्हें किसी ने ये शेर सुनाया-सैर कर दुनियां की गाफिल जिंदगानी फिर कहां, जिंदगानी गर रही तो ये जवानी फिर कहां.
 
इससे पहले ऐसा नहीं कि उन्होंने ये शेर नहीं सुना था, लेकिन तब जिस नेता ने उन्हें सुनाया था उन्हें गाफिल की जगह गालिब बोल दिया था. तो बाबा को लगा था कि इस शेर में कोई गालिब को सैर करने की सलाह दे रहा है. इस बार ढलती जवानी में उन्होंने दोबारा सुना तो समझ आया कि साला ये तो वार्निंग है, जिंदगी कम बची है, घूम ले बाबा… घूम-घूम. तो ऐसा बाबा ने बना लिया प्लान दुनियां एक खोज का. बाकी सब तो ठीक है, सारी प्लानिंग अलग-अलग देशों में हो गई है, पब्लिक के बीच जाना है तो राजनाथजी से एसपीजी की भी बात हो गई है. कहां गुरू बनना है और कहां चेला, ये प्लानिंग भी फायनल दौर में है, लेकिन उनका कन्फ्यूजन तब से बढ़ गया है जब से दिग्गी चाचा ने बुल्ले शाह की ये लाइनें सुनाईं हैं-
 
जे रब मिलदा जंगल फिरदे,
ते ओ मिलदा गाईयां, बच्चीयां नूं…।
 
यानी अगर जंगल घूमने से भगवान मिल जाता, तो फिर वो जंगल घूमने जाने वाली गाय और गाय के बच्चे को भी मिल जाता. अब बाबा ने दादी की हिस्ट्री तो पढ़ी ही थी कि कैसे उन्होंने एक बार गाय और बछड़े को अपना चुनाव चिह्न बनाया था, उसके बाद से ही बाबा सीरियसली यही सोचने में लग गए हैं कि क्या पता दुनियां भर का चक्कर लगाने के बजाय खाली हाथ के पंजे की जगह गाय बछड़े को चुनाव चिह्न बनाने से 2019 का चुनाव जीता जा सके…!
 
 

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