नई दिल्ली : जुलाई का महीना शुरू नहीं होता, मानसून दस्तक नहीं देता कि देश में हाहाकार मच जाता है. नाले जैसी बहने वाली नदियां समंदर बन जाती हैं और इंसान की बस्तियों पर पानी का ऐसा हमला होता है कि लोग उजड़ जाते हैं. जान-माल सबका नुकसान अब करोड़ों में नहीं अरबों में होता है.
बिहार में बाढ़ से ऐसी-ऐसी तस्वीरें आ रही हैं जिस पर नजरें नहीं ठहरती, लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हो रहा. अभी कुछ दिनों पहले गुजरात में यही हालत थी. उसके पहले असम में यही हाल था. उसके पहले पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में यही हाल था. मतलब पूरा हिन्दुस्तान कराह रहा है. इससे कितना नुकसान होता है, आपने कभी सोचा है ? और क्या इस नुकसान को रोका नहीं जा सकता.ॉ
तीन दिनों से बाढ़ की मार झेल रहे बिहार के लोगों पर एक और खतरा मंडराने लगा है और ये है महामारी का. जैसे-जैसे पानी उतर रहा है, लोगों को महामारी की चिंता सताने लगी है. बिहार में 13 जिले और 70 लाख लोग महाप्रलय में डूबे हुए हैं. कोसी, कमला-बलान और महानंदा समेत कई नदियां तांडव मचा रही हैं. नेपाल से आ रहा नदियों के पानी ने और भी हालात बिगाड़ रखे हैं.
बिहार में बाढ़ आज से नहीं आती. दशकों से यहां की नदियों को शोक कहकर पुकारा जाता है, लेकिन इस शोक को रोकने के लिए कोई ठोस पहल नहीं होती. पूरे इलाके का नहरीकरण नहीं होता. नदियों को जोड़ने की योजना पर काम नहीं होता. नदियों में जमने वाले सिल्ट को निकालने का काम नहीं होता. बाढ़ से निपटने की तैयारी नहीं की जाती. फिर जब बाढ़ आ जाती है तो पूरा सिस्टम ही हांफते-भागने लगता है.
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