आजादी मिली लेकिन भारत-पाकिस्तान के बटंवारे में करीब 5 लाख लोग मारे गए

15 अगस्‍त 1947 को एशिया का उपमहाद्वीप कहलाने वाला भारत, ब्रिटिश हुकूमत से आजाद तो हो गया, लेकिन द्विराष्‍ट्र के सिद्धांत पर. अंग्रेजों ने भारत को आजादी इसी शर्त पर दी कि अखंड भारत खंडित होगा.

Advertisement
आजादी मिली लेकिन भारत-पाकिस्तान के बटंवारे में करीब 5 लाख लोग मारे गए

Admin

  • August 15, 2017 6:04 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: 15 अगस्‍त 1947 को एशिया का उपमहाद्वीप कहलाने वाला भारत, ब्रिटिश हुकूमत से आजाद तो हो गया, लेकिन द्विराष्‍ट्र के सिद्धांत पर. अंग्रेजों ने भारत को आजादी इसी शर्त पर दी कि अखंड भारत खंडित होगा. हिंदुस्‍तान और पाकिस्‍तान के रूप में. भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना, भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया.
 
बहरहाल, अंग्रेजों और लॉर्ड माउंटबेटन के लिए भारत और पाकिस्‍तान नक्‍शे पर महज एक लकीर के जरिये अलग हो गया, लेकिन जमीन पर विभाजन की यह रेखा पूरी मानवजाति के इतिहास की एक ऐसी भयावह, रक्‍तरंजित, अमानवीय, क्रूर और जघन्‍य घटना थी कि पूरे विश्‍व की मानवता शर्मसार हो गई.
 
दरअसल, भारत और पाकिस्‍तान का बंटवारा महज 50 से 60 दिनों के भीतर लाखों लोगों का विस्‍थापन था, जो विश्‍व में कहीं नहीं हुआ. 10 किलोमीटर लंबी लाइन में लाखों लोग देशों की सीमा को पार हुए. महज कुछ ही समय में एक स्‍थान पर सालों से रहने वाले को अपना घर बार, जमीन, दुकानें, जायदाद, संपत्‍ति, खेती किसानी छोडकर हिंदुस्‍तान से पाकिस्‍तान और पाकिस्‍तान से हिंदुस्‍तान गए.
 
15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान कानूनी तौर पर दो स्वतंत्र राष्ट्र बने लेकिन पाकिस्तान की सत्ता परिवर्तन की रस्में 14 अगस्त को कराची में की गईं ताकि आखिरी ब्रिटिश वाइसरॉय लुइस माउंटबेटन, करांची और नई दिल्ली दोनों जगह की रस्मों में हिस्सा ले सके. इसलिए पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त और भारत में 15 अगस्त को मनाया जाता है.
 
भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए. विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 5 लाख लोग मारे गए और करीब 1.45 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत संप्रदाय वाले देश में शरण ली. 
 
भारत के ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में “फूट डालो और राज्य करो” की नीति का अनुसरण किया. उन्होंने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों में बाँट कर रखा. उनकी कुछ नीतियाँ हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्रति.
 
20वीं सदी आते-आते मुसलमान हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और हिन्दुओं को लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार और भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे हैं. इसलिए भारत में जब आज़ादी की भावना उभरने लगी तो आज़ादी की लड़ाई को नियंत्रित करने में दोनों संप्रदायों के नेताओं में होड़ रहने लगी.
 
हिन्दू महासभा जैसे हिन्दू संगठन भारत के बंटवारे के प्रबल विरोधी थे, लेकिन मानते थे कि हिन्दुओं और मुसलमानों में मतभेद हैं. 1937 में इलाहाबाद में हिन्दू महासभा के सम्मेलन में एक भाषण में वीर सावरकर ने कहा था- आज के दिन भारत एक राष्ट्र नहीं है, यहाँ पर दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और मुसलमान. कांग्रेस के अधिकतर नेता पंथ-निरपेक्ष थे और संप्रदाय के आधार पर भारत का विभाजन करने के विरुद्ध थे.
 
(वीडियो में देखें पूरा शो)

Tags

Advertisement