‘रेड द हिमालयन रैली’ को पूरा करने वाली दुनिया की पहली महिला बनीं सारा कश्यप, जानिए पूरी कहानी

अपनी जिद्द को पूरा करने के लिये जरूरत होती है दोगुने जुनून की. ऐसा होने से भले ही बड़े से बड़ा लक्ष्य हासिल करना आसान ना हो, लेकिन मुमकिन जरूर हो जाता है. अपनी इसी जिद्द की वजह से चंडीगढ़ की रहने वाली 30 साल की बाइकर सारा कश्यप ‘रेड द हिमालयन रैली’को पूरा करने वाली दुनिया की अकेली महिला हैं.

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‘रेड द हिमालयन रैली’ को पूरा करने वाली दुनिया की पहली महिला बनीं सारा कश्यप, जानिए पूरी कहानी

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  • August 5, 2017 4:10 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: अपनी जिद्द को पूरा करने के लिये जरूरत होती है दोगुने जुनून की. ऐसा होने से भले ही बड़े से बड़ा लक्ष्य हासिल करना आसान ना हो, लेकिन मुमकिन जरूर हो जाता है. अपनी इसी जिद्द की वजह से चंडीगढ़ की रहने वाली 30 साल की बाइकर सारा कश्यप ‘रेड द हिमालयन रैली’को पूरा करने वाली दुनिया की अकेली महिला हैं.
 
अपनी बाइक के जरिये वो कई ऐसे कारनामें कर चुकी हैं जो दूसरों के लिये सपना होते हैं. वेल्स यूनिवर्सिटी से एमबीए कर चुकी सारा चितकारा यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम कर चुकी हैं. सारा कश्यप को बचपन से ही बाइक चलाने का शौक रहा है. उनके पिता भी एक अच्छे सोलो बाइकर रहे हैं.
 
बचपन में सारा अपने पिता के साथ स्कूटर और मोटरसाइकिल में लंबी दूरी तक घूमने निकल जाया करती थी. एक बार उनके पिता, उनकी मां, भाई और सारा स्कूटर पर सवार होकर पंचकुला, चंडीगढ़ से होते हुए कटरा तक पहुंच गये थे. अपने पिता को राइड करते देख उनको भी बाइक चलाने को शौक पैदा हुआ.
 
सारा के पिता एक आधुनिक सोच वाले इंसान रहे हैं. उन्होने सारा और उनके भाई की परवरिश में कभी कोई अंतर नहीं किया. यही वजह है कि सारा और उनके भाई को बाइक चलाना उनके पिता ने ही सीखाया. सारा कश्यप ने जब कॉलेज की पढ़ाई पूरी की तो उसके बाद वो एमबीए करने के लिये इंग्लैंड चली गई.
 
जिसके बाद साल 2010 में उन्होने वेल्स यूनिवर्सिटी से फाइनेंस में एमबीए  किया है. इसके लिए उनको इंटरनेशनल स्टूडेंट स्कॉलरशिप मिली थी. एमबीए करने के बाद उन्होने इंग्लैंड में ही कई जगह नौकरी की लेकिन दुनिया में छाई आर्थिक मंदी के कारण जब उनको कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उनको वेटरस से लेकर हलाल शॉप तक में काम करना पड़ा.
 
साल 2013 में देश वापस लौटने के बाद उन्होने चंडीगढ़ की चितकारा यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम किया. फरवरी, 2014 में बाइकर का एक ग्रुप राजस्थान के दौरे पर गया, जिसमें सारा कश्यप भी शामिल थी. करीब 22 लोगों के ग्रुप में वो अकेली महिला बाइकर थी. इस टूर को रॉयल एनफिल्ड ने स्पॉन्सर किया था.
 
इस टूर के दौरान ही सारा को बेंगलुरु के एक मीडिया हाउस से नौकरी ऑफर हुई. नई-नई जगह घूमने की शौकीन सारा ने ये सोचकर उस नौकरी के लिये हां कर दी की उनको दक्षिण भारत के पर्यटक स्थलों में घूमने का मौका मिलेगा. बेंगलुरु में रहते हुए साल 2014 में सारा ने फैसला किया कि वो अपना जन्म दिन खरदुंगला​ पास में मनाएंगी.
 
इसके लिए वो अकेले ही करीब 6 हजार किलोमीटर की दूरी बेंगलुरु से खरदुंगला पास, लद्दाख तक अपनी रॉयल एनफिल्ड बाइक पर निकल पड़ी. अपनी इस यात्रा को उन्होने 21 दिन में पूरा किया. इस ट्रिप को पूरा करने के बाद सारा को रॉयल एनफिल्ड की तरफ से जॉब ऑफर हुई. वो देश की पहली महिला बाइकर हैं, जो रॉयल एनफिल्ड की बाइकर राइड टीम हिस्सा बनी. इस तरह वो रॉयल एनफिल्ड कंपनी में राइड और कम्यूनिटी डिपार्टमेंट में काम करने वाली पहली लड़की बनी.

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