Rahul Gandhi to Contest From Wayanad: स्मृति इरानी के डर से अमेठी के साथ-साथ वायनाड सीट से भी लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं राहुल गांधी?

Rahul Gandhi to Contest From Wayanad: लोकसभा चुनाव 2019 में राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के अमेठी के साथ-साथ केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं. क्या अमेठी में राहुल गांधी को बीजेपी प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी से हार का डर सता रहा है, इसलिए उन्होंने वायनाड से भी चुनाव लड़ने का फैसला लिया है?

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Rahul Gandhi to Contest From Wayanad: स्मृति इरानी के डर से अमेठी के साथ-साथ वायनाड सीट से भी लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं राहुल गांधी?

Aanchal Pandey

  • March 31, 2019 2:04 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने गढ़ उत्तर प्रदेश के अमेठी के अलावा इस बार केरल की वायनाड लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ेंगे. वरिष्ठ कांग्रेस नेता ए. के. एंटनी ने रविवार को मीडिया से बात करते हुए इसकी जानकारी दी. इस बारे में पहले भी अटकलें चली थीं लेकिन बीच में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने संकेत दिए थे कि राहुल गांधी अमेठी छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे. हालांकि अब स्थिति साफ हो गई है राहुल गांधी अमेठी के साथ वायनाड से भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं. ए. के. एंटनी का कहना है कि वायनाड में पार्टी कार्यकर्ताओं की मांग की वजह से यह फैसला लिया गया है. हालांकि इसी बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या राहुल गांधी को अमेठी में स्मृति इरानी से हार का डर सता रहा है इसलिए वे वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे हैं?

अमेठी से बीजेपी प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी एक बार फिर राहुल गांधी के सामने चुनावी मैदान में है. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भी स्मृति इरानी अमेठी से ही चुनाव लड़ी थीं, हालांकि उस दौरान उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. मगर चुनाव नतीजों के बाद स्मृति इरानी की बीजेपी नेताओं ने खूब तारीफ की थी क्योंकि हार का अंतर करीब एक लाख वोट तक ही सिमट कर रह गया था. यानी कि कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाले लोकसभा क्षेत्र अमेठी से राहुल गांधी ने कम अंतर से स्मृति इरानी को हराया था.

स्मृति को इसका फल भी मिला और नरेंद्र मोदी सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया. पिछले पांच सालों में ऐसे कई मौके आए हैं जब स्मृति ने अमेठी को लेकर राहुल गांधी को घेरा. उन्होंने राहुल गांधी पर अमेठी की जनता के साथ विश्वासघात करने के आरोप लगाए. साथ ही बताया कि पिछले सात दशकों में कांग्रेस ने अमेठी में कुछ नहीं किया.

क्या अमेठी की जनता का दिल जीतने में कामयाब हुईं स्मृति इरानी?

पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेठी में रैली थी, उस समय भी स्मृति इरानी ने मंच से अमेठी की जनता को कहा कि राहुल गांधी ने पिछले पांच साल में सिर्फ पीएम मोदी के खिलाफ भद्दी टिप्पणियां की हैं, उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र के विकास से कोई लेना-देना नहीं है. इस रैली में पीएम मोदी ने अमेठी में घरेलू हथियार फैक्ट्री समेत क्षेत्र में करोड़ों रुपये की योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया था और लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सरकार के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस का परंपरागत किला कहे जाने वाले अमेठी में राहुल गांधी अपने लोगों का अपनापन पाने में कमजोर साबित हुए हैं. स्मृति इरानी और बीजेपी इसी का फायदा उठा कर वहां वोटर्स को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहे हैं. इसका उन्हें कुछ फायदा भी हुआ है.

हालांकि यह भी माना जा रहा है कि पिछली बार स्मृति इरानी को मोदी लहर का सबसे ज्यादा फायदा हुआ था. इस बार मोदी लहर जैसा कोई फैक्टर काम नहीं करने वाला है इसलिए उनके लिए राहुल गांधी को हराना इतना आसान नहीं होगा जितना वे सोच रही हैं.

वायनाड में भी राहुल की राह आसान नहीं-

वहीं दूसरी ओर वायनाड की बात करें तो वह भी कांग्रेस की मजबूत लोकसभा सीट रही है. वाम प्रभावित इलाके में 2014 के चुनाव में कांग्रेस यह सीट निकालने में कामयाब रही थी. हालांकि वायनाड पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सीपीआई के बीच कड़ी टक्कर हुई थी और मात्र 20 हजार वोट से कांग्रेस कैंडिडेट एम. आई. शानावास ने सीपीआई के सत्यन मोकरी को मात दी थी. यहां कांग्रेस का मुकाबला बीजेपी या एनडीए से नहीं बल्कि लेफ्ट पार्टी से होगा.

कांग्रेस पार्टी के हवाले से बयान आया है कि वायनाड में लंबे समय से पार्टी कार्यकर्ता राहुल गांधी को प्रत्याशी बनाने की मांग कर रहे हैं, जिसके बाद यह फैसला लिया गया है. लेफ्ट पार्टी के नेताओं ने भी बयान जारी कर साफ कर दिया है कि अब वायनाड में राहुल गांधी का सीधे वाम मोर्चे से मुकाबला होगा और वे इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं.

जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने पर कांग्रेस इस दक्षिण भारतीय इलाके में भले ही मजबूत होगी लेकिन उनके इस फैसले से लेफ्ट और कांग्रेस के बीच रिश्तों में खटास आ सकती है, जिसका फायदा तीसरी पार्टी यानी बीजेपी या बीडीजेएस को मिल सकता है.

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