नई दिल्ली: नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में आज अपना बहुमत साबित कर दिया. महागठबंधन में 178 विधायकों के नेता रहे नीतीश कुमार अब एनडीए के मुख्यमंत्री हैं, जिसके पास 131 विधायकों का समर्थन है. सरकार चलाने के लिए इतना बहुत है, लेकिन क्या विश्वासमत जीतने के बाद नीतीश कुमार जनता का भरोसा पूरी तरह जीत पाएंगे.
बिहार में उनको जो जनादेश मिला था, वो एनडीए के खिलाफ सरकार बनाने के लिए था, ना कि एनडीए के साथ सरकार बनाने के लिए. आरजेडी और कांग्रेस के नेता यही सवाल तीन दिन से पूछ रहे हैं. सत्ता गंवाने के बाद क्या सिर्फ आरोप लगाकर जनता के बीच नीतीश को चुनौती दे पाएंगे तेजस्वी, आज इन्हीं सवालों पर होगी महाबहस.
बिहार में महागठबंधन टूटने से लेकर एनडीए की सरकार बनने और विधानसभा में बहुमत साबित करने तक का सफर नीतीश कुमार ने सिर्फ 43 घंटे में पूरा कर लिया. आरजेडी और कांग्रेस के हंगामे और तेजस्वी के तीखे आरोपों के बीच नीतीश कुमार ने आसानी से विश्वास मत जीत लिया.
विधानसभा में शक्ति परीक्षण का नतीजा पहले से तय था. विश्वास मत पर चर्चा से पहले जेडीयू ने दावा किया था कि आरजेडी और कांग्रेस के कई विधायक नीतीश कुमार का समर्थन करेंगे. क्रॉस वोटिंग की आशंका जेडीयू में भी थी, लेकिन सदन में ऐसा कुछ नहीं हुआ. एनडीए ने 132 विधायकों के समर्थन का दावा किया था और नीतीश कुमार को 131 विधायकों का समर्थन मिला.
कहा जा रहा है कि एनडीए के एक विधायक बीमार होने के चलते विधानसभा नहीं पहुंचे. आरजेडी के 80, कांग्रेस के 27 और एक निर्दलीय विधायक ने नीतीश कुमार के खिलाफ वोट किया. विश्वास मत पर चर्चा से पहले और चर्चा के दौरान आरजेडी और कांग्रेस ने नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला.
आरजेडी और कांग्रेस ने सीधा आरोप लगाया कि नीतीश कुमार ने जनादेश को धोखा दिया है. पलटवार एनडीए की ओर से भी हुआ. नीतीश ने साफ कहा कि उन्हें 5 साल सरकार चलाने का जनादेश मिला है, किसी परिवार के गलत कामों का बचाव करने का नहीं.
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