लखनऊ: देश में जब सांप्रदायिक ताकतें अपनी जड़ें जमा रही हैं. जब देश की धार्मिक सौहार्द्र की भावना खत्म होते जा रही है, उस दौर में वाराणसी में रहने वाली आलम आरा की ये कहानी न सिर्फ हमारे समाज को एक संदेश देती है, बल्कि हिंदूस्तान की एक अलग तस्वीर प्रस्तुत करती है.
एक तरह जब हिंदू-मुस्लिम धर्म और के नाम पर एक दूसरे से लड़ रहे हैं, वहीं आलाम आरा धार्मिक सौहार्द की लौ जला रही हैं. मुस्लिम होकर भी पिछले 17 सालों से आलम आरा शिवलिंग बनाकर अपनी जिंदगी जी रही हैं. आरा का कहना है कि यहां हम हिंदू और मुस्लिम नहीं हैं, बल्कि हम सभी एक हिंदूस्तानी हैं.
आरा का मानना है कि हिंदू-मुस्लिम के बीच ये अलगाव समय बर्बाद करने के समान है. आरा के मुताबिक, ‘मुझे मूर्ति बनाने की कला भगवान से मिली है और हम बहुत प्यार से शिवलिंग बनाते हैं.
आगे आरा ने कहा कि शिवलिंग बनाना हमारी इनकम का जरिया है. जब कला की बात आती है तो कोई हिंदुस्तानी और मुसलमान नहीं होता. मुझे उम्मीद है कि काफी लोग इस बात को महसूस करेंगे कि कला की कोई बाउंड्री और धर्म नहीं होता. काम के रास्ते में कभी भी धर्म आड़े नहीं आना चाहिए.
आरा का कहना है कि हिंदू-मुस्लिम से कुछ नहीं होता और हमें किसी भी कीमत पर धर्म के नाप पर नहीं लड़ना चाहिए. बता दें कि जहां एक ओर लोग जहां भारत की विविधता को खत्म करने में लगे हैं, वहीं आलम आरा जैसी कुछ मिसाल ऐसी हैं, जो धार्मिक सौहार्द्र का दीपक जला रही हैं.