अर्ध सत्य: 18 राज्यों में सालाना तबाही, फिर भी सिस्टम खामाशो ?

बरसात का मौसम है-देश के तमाम शहर-गांव नदी बने हुए हैं, नदियां तबाही की वजहें बनी हुई हैं, इस बेलगाम मौसम में लावरवाही की हद करनेवाले लोग दिखते हैं, इस लापरवाही में घर-बार तो छोड़िए जान तक गंवा बैठने वाले लोग मिलते हैं और मज़े मज़े में जान को जोखिम में डाल देनेवाले भी लोग मिलते हैं.

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अर्ध सत्य: 18 राज्यों में सालाना तबाही, फिर भी सिस्टम खामाशो ?

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  • July 16, 2017 1:09 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: बरसात का मौसम है-देश के तमाम शहर-गांव नदी बने हुए हैं, नदियां तबाही की वजहें बनी हुई हैं, इस बेलगाम मौसम में लावरवाही की हद करनेवाले लोग दिखते हैं, इस लापरवाही में घर-बार तो छोड़िए जान तक गंवा बैठने वाले लोग मिलते हैं और मज़े मज़े में जान को जोखिम में डाल देनेवाले भी लोग मिलते हैं.
 
शहरों में हर तरह का टैक्स देने के बाद भी नगरपालिका और नगरनिगमों से कोई नहीं पूछता कि बारिश के बाद पानी निकलता क्यों नहीं. क्यों भ्रष्टाचार की भेंट सड़कें, पुल और बांध चढ जाते हैं और कोई कहता नहीं कि ये क्या अंधेरगर्दी है. लेकिन नियम-कायदों पर कोई आपको कसने लगे तो सबसे पहले हम अपनी औकात बताने पर आ जाते हैं. तुरंत फोन पर हाथ जाता है कि कोई नेताजी, साहेब जी, बाहुबली जी, कोई भी जी हुजूर को बोलकर इस नियम बतानेवाले की बोलती बंद करा दो. 
 
दरअसल हम हिंदुस्तानियों की मानसिकता, खुद में बरसात से पैदा हुए सैलाब-सी है. पानी रहता तो है लेकिन ताबाही का. ना पी सकते और ना उसके चलते जी सकते. हम ना कोई नियम जिम्मेदारी का पालन करते हैं और ना ही जो लोग ऐसा करवाना चाहते हैं उनको चैन से रहने देते हैं. 
 
एसडीएम साहब ने अपनी जान गंवा दी- एक जिम्मेदार-समझदार अफसर ने. हमारी मानसिकता ही है कि चलो देखेंगे, अब इंतजार कौन करे या फिर कौन लंबा रास्ता नापे. थोड़ा जोखिम ही है ना, पार कर लेंगे. इसी ओवरकॉन्फिडेंस में हम जान तक गंवा बैठते हैं. यहां मुझे हाल ही में सेल्फी के चक्कर में नागपुर के वैना डैम में अभी पांच रोज पहले नाव के पलटने वाली घटना याद आ रही है कुछ लोग डैम में सैर सपाटे के लिये नाव की सवारी कर रहे थे. 
 
(वीडियो में देखें पूरा शो)

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