नई दिल्ली : लोढा समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए बीसीसीआई ने जो विशेष समिति बनाई है, उसमें बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सुपुत्र जय शाह की भी खूब चल रही है. उन्हें न सिर्फ इस समिति में चुना गया है, बल्कि उनकी पहल पर ही उन निरंजन शाह को विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया है, जो उम्र और कार्यकाल के मामले में लोढा समिति के मानदंडों पर खरे नहीं उतरते.
निरंजन शाह सौराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव हैं और पिछले तीन दशकों से इस एसोसिएशन में सक्रिय हैं. लोढा समिति के अनुसार कोई भी अधिकारी 70 की उम्र से ज़्यादा नहीं होना चाहिए और न ही उसे काम करते हुए अधिकतम तीन कार्यकाल से ऊपर होने चाहिए. इन दोनों कसौटियों पर वह बीसीसीआई से संबंधित किसी भी एससिएशन में पद पर बने नहीं रह सकते.
नाम की पैरवी
निरंजन शाह को गम्भीर संदेश देने के बजाय उन्हें लोढा समिति को लागू कराने वाली समिति में शामिल किया जाना आश्चर्य का विषय है. विश्वस्त जानकारी के अनुसार इस समिति में निरंजन शाह के नाम की सिफारिश गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव जय शाह ने की. जय शाह वैयक्तिक तौर पर लोढा समिति के एक राज्य एक वोट के तर्क से संतुष्ट नहीं हैं और वह अपनी सीमितताएं भी जानते हैं इसलिए उन्होंने अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने निरंजन शाह के नाम की पैरवी की.
तीन टीमें
इस समय गुजरात में तीन टीमें हैं – गुजरात, सौराष्ट्र और बड़ौदा. लोढा समिति के अनुसार इनमें से एक टीम ही रह सकती है. ऐसे में निरंजन शाह विशेष समिति में यह मनाने की कोशिश करेंगे कि कम से कम राज्य से दो टीमों को इसकी अनुमति दी जाए और अपनी बात मनवाने के बाद वह सौराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन में सचिव पद से इस्तीफा दे देंगे क्योंकि वह जानते हैं कि इस समिति में इस बात को लेकर पहले से ही सहमति बन गई है कि 70 साल और कार्यकाल के मुद्दे पर वह लोढा समिति के साथ हैं.
अब यहां सवाल यह उठता है कि जो समस्या गुजरात की है, वहीं महाराष्ट्र की भी है. यहां भी तीन ऐसी एसोसिएशन हैं जो बीसीसीआई से संबंधित हैं. मुम्बई, महाराष्ट्र और विदर्भ के रूप में तीन टीमें लोढा समिति को खटक रही हैं लेकिन यहां से एक भी प्रतिनिधि को इसमें शामिल नहीं किया गया है.
एक राज्य एक वोट
बोर्ड ने मेघालय और मिज़ोरम को सदस्यता दी है. इसे ध्यान में रखते हुए मेघालय क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव नवा भट्टाचार्य को इसमें शामिल किया गया है जिससे एक राज्य एक वोट का मामला ज़ोर शोर से उठेगा. यहां तर्क यह है कि पूर्वोत्तर भारत में क्रिकेट का विकास करना है और सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश से जब एक टीम रणजी ट्रॉफी या अन्य बोर्ड के टूर्नामेंटों में खेलती है तो महाराष्ट्र और गुजरात से तीन-तीन टीमें क्यों हैं.
ज़ाहिर है कि यह विशेष समिति एक जुलाई को होने वाली बैठक में तीन के बजाय दो टीमों के मसले पर सहमत हो जाएं लेकिन इन्हें न तो पांच की जगह तीन चयनकर्ता मंजूर हैं और न ही अपनी ऑडिट रिपोर्ट कैग (कम्प्टोलर एंड ऑडिटर जनरल) से से ऑडिट करने को तैयार हैं. यहां पर ज़्यादातर सदस्य बोर्ड की स्वायत्तता का मसला उठा रहे हैं. यहां 70 की उम्र और अधिकतम तीन कार्यकाल के मुद्दे पर सहमति बनती दिख रही है, जिसमें निरंजन शाह और बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन का बाहर जाना तय है.