Pulwama Terror Attack: क्या 2019 लोकसभा चुनाव से पहले पुलवामा आतंकी हमले ने नरेंद्र मोदी सरकार को दे दिया सत्ता में वापसी का ट्रिगर?

pulwama Terror Attack: पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद नरेंद्र मोदी सरकार पाकिस्तान को कूटनीति से जवाब दे, यह बात हजम नहीं होती. पीएम मोदी साफ तौर पर कह चुके हैं कि वक्त, जगह और प्रारूप सेना तय करे. यानी साफ है कि भारत 'कुछ बड़ा' करने वाला है, शायद कुछ ऐसा, जिसे देखकर दुनिया भी भौचक्की रह जाए. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव से पहले ऐसा होगा जरूर. क्योंकि नरेंद्र मोदी पुलवामा हमले का दाग लेकर वोट मांगने नहीं जाएंगे.

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Pulwama Terror Attack: क्या 2019 लोकसभा चुनाव से पहले पुलवामा आतंकी हमले ने नरेंद्र मोदी सरकार को दे दिया सत्ता में वापसी का ट्रिगर?

Aanchal Pandey

  • February 24, 2019 1:43 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. 14 फरवरी. गुरुवार. वैलेंटाइंस डे. जब पूरा देश मोहब्बत का त्योहार मना रहा था, तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि दोपहर बाद ये सारी खुशी हवा हो जाएगी. जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में जैश-ए-मोहम्मद के एक फिदायीन आतंकवादी आदिल अहमद डार ने छुट्टियों से लौट रहे सीआरपीएफ जवानों के काफिले में विस्फोटक से भरी गाड़ी घुसा दी, जिसके बाद 2 बसों के परखच्चे उड़ गए. सड़कें खून से लाल हो गईं. जवानों के चिथड़े इधर-उधर बिखरे पड़े थे.

40 से ज्यादा लाल खोने के बाद पूरा देश गुस्से से आगबबूला हो गया. लोग पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात कहने लगे. सोशल मीडिया पर राष्ट्रवाद के पोस्ट की बाढ़ आ गई. वीडियोज शेयर होने लगे. पाकिस्तान का मजाक उड़ाया जाने लगा. कश्मीरी छात्रों पर कथित तौर पर हमले होने लगे. देश के एक बड़े वर्ग ने कहा कि पाकिस्तान से युद्ध होना चाहिए और कश्मीर से धारा 35ए हटाई जाए.

यह सब आपके सामने हुआ, आपको मालूम होगा. लेकिन इसके बाद जो हुआ या हो रहा है, उसकी कड़ी और पीछे छिपी बात आपके लिए समझनी जरूरी है. पाकिस्तान, अमेरिका और भारत के नेताओं के बयान को जरा गौर से देखिए. ऊंट किस करवट बैठ रहा है, इसका थोड़ा आभास तो आपको हो जाएगा. जनवरी के आखिर में एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें अमेरिकी खुफिया एजेंसी के शीर्ष अफसर ने कहा था कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भारत में सांप्रदायिक हिंसा भड़क सकती है. आतंकवादी देश में अपना प्रभाव बढ़ा सकते हैं. भारत और चीन के संबंधों में भी तनाव रह सकता है. ऐसा हुआ भी.

राफेल, राम मंदिर, बेरोजगारी, जीएसटी, नोटबंदी. ये आरोप के ऐसे विपक्षी फंदे हैं, जिनका बीजेपी के पास तोड़ फिलहाल नजर नहीं आता. भले ही पार्टी कितनी भी सफाई दे लेकिन जिन मुद्दों के साथ वह सत्ता में आई थी, उनमें से कुछ पर वह खास कमाल नहीं दिखा पाई. उपचुनावों में हार भी उसके लिए चिंता का सबब है. कर्नाटक में सरकार बनाने की सारी तोड़-मोड़ कोशिशें भी कथित तौर पर नाकाम हो गईं. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में जमी-जमाई सत्ता भी चली गई. राजस्थान में भी हार मिली.

2019 आम चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में बीजेपी अपने उसी फॉर्म्युले पर आती दिख रही है, जिसके लिए वह जानी जाती है- हिंदुत्व और राष्ट्रवाद और इसे भुनाने का मौका उसे पुलवामा हमले ने दे दिया है. इस वक्त पूरा देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर देख रहा है. सर्जिकल स्ट्राइक का गाजे-बाजे के साथ ढोल पीटने वाली बीजेपी 40 जवानों की शहादत का कूटनीति से जवाब दे, यह बात गले से नहीं उतरती. पुलवामा हमले का दंश लेकर नरेंद्र मोदी कभी जनता से वोट नहीं मांगेंगे. बल्कि ‘कुछ बड़ा’ करने के बाद उसका गुणगान हर रैली, भाषण में करेंगे.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी कह चुके हैं कि भारत कुछ बड़ा करने जा रहा है. यानी साफ है कि इस बार मोदी सरकार चुप बैठने के मूड में बिल्कुल नहीं है. पड़ोसी देश को घुटनों पर लाने के लिए कूटनीति का हर पैंतरा तो चला ही जा रहा है. अमेरिका, रूस, इस्राइल जैसे मुल्क भी पीछे खड़े हैं. जनता में गुस्से का अंबार है. सरकार को चारों ओर से समर्थन ही समर्थन है.

इस बीच एलओसी के पास के गांव भी खाली करा लिए गए हैं. पैरामिलिट्री की 100 कंपनियों को घाटी में तैनात किया जा चुका है. मुझे लगता है कि भारत को परमाणु हमले का धौंस दिखाने वाले पाकिस्तान ने शायद इस बार खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है. वह इसी सोच में बैठा है कि यह अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह का ‘शांतिप्रिय’ भारत है, जो सिर्फ निंदा करेगा. यही पाकिस्तानी हुक्मरानों की सबसे बड़ी भूल है. क्योंकि सेना को समय, जगह और प्रारूप तय करने देने का मतलब है कि इस बार चाहे युद्ध हो जाए लेकिन चुनाव के वक्त मोदी सरकार आतंकी हमले का दाग खुद के दामन पर नहीं रहने देगी. राष्ट्रवाद की छांव में सारे मुद्दे फुर्र हो ही चुके हैं और भाजपा पुलवामा हमले का ‘ट्रिगर’ उसके दोबारा सत्ता में आने का कारण बन सकता है.

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