एक तरफ संघ ने कुछ ही दिनों पहले आईआईटी रुड़की की कैंटीन में नॉन-वेज फूड को हिंदू विरोधी करार दिया था लेकिन अब एक ऐसी बात सामने आ रही है जिससे संघ के शीर्ष क्रम नेताओं पर ही सवाल खड़े हो गए हैं. आरएसएस पर शोध कर रहे दिलीप देवधर ने कहा कि 2009 में सरसंघचालक बनने तक मोहन भागवत नॉन-वेज खाने का आनंद लिया करते थे. मैंने बालासाहब देवरस को भी आरएसएस प्रमुख बनने तक चिकन और मटन सबके सामने खाते देखा है. काफी आरएसएस प्रचारक नॉन-वेज खाना खाते हैं. यह अलग बात है कि बाकी लोगों के खाने पर यह हिंदू विरोधी हो जाता है.
नई दिल्ली. एक तरफ संघ ने कुछ ही दिनों पहले आईआईटी रुड़की की कैंटीन में नॉन-वेज फूड को हिंदू विरोधी करार दिया था लेकिन अब एक ऐसी बात सामने आ रही है जिससे संघ के शीर्ष क्रम नेताओं पर ही सवाल खड़े हो गए हैं. आरएसएस पर शोध कर रहे दिलीप देवधर ने कहा कि 2009 में सरसंघचालक बनने तक मोहन भागवत नॉन-वेज खाने का आनंद लिया करते थे. मैंने बालासाहब देवरस को भी आरएसएस प्रमुख बनने तक चिकन और मटन सबके सामने खाते देखा है. काफी आरएसएस प्रचारक नॉन-वेज खाना खाते हैं. यह अलग बात है कि बाकी लोगों के खाने पर यह हिंदू विरोधी हो जाता है.
देवधर ने कहा कि आरएसएस ने कभी भी मीट या नॉन-वेज फूड पर बैन लगाने की बात नहीं कही है. देवधर ने कहा, ‘आरएसएस में नॉन-वेज फूड खाने पर कोई रोक नहीं है. हालांकि मुख्यालय में या संघ के आयोजनों में आप मांसाहार नहीं कर सकते हैं. बाकी समय में आप अपनी पसंद का खाना रेस्तरां या अपने घर पर खाएं.’ उन्होंने कहा कि अगर नॉन-वेज फूड में मछली, चिकेन और मटन तक का मामला हो तो संघ को कोई दिक्कत नहीं है, दिक्कत बीफ से है.
देवधर ने बताया कि एक बार तो संघ के पूर्व प्रमुख एम एस गोलवलकर ने वरिष्ठ प्रचारकों मोरोपंत पिंगले और पांडुरंग क्षीरसागर से खानपान की उनकी आदतों पर मजाक करते हुए पूछा था कि आज का मेन्यू क्या था- मछली या मुर्गा. देवधर ने कहा कि तबसे उन्होंने काफी संघ प्रचारकों को मांसाहारी देखा है. उन्होंने कहा कि ऑर्गनाइजर वाले लेख में जो बात कही गई, उसका संघ में कुछ ही लोग समर्थन करते हैं, ‘जो ऐसे बेमतलब के मुद्दे उठाकर पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को दिक्कत में डालना चाहते हैं.’