देखिए वो गाना, जिसने दिया राज कपूर को मेरा नाम जोकर बनाने का आइडिया
राजकपूर की आज डैथ एनीवर्सरी है, 2 जून 1988 को उनकी मौत हो गई थी. लेकिन उससे पहले ही कहीं उन्हें लगने लगा था कि उन्हें अपनी जिंदगी एक मूवी में पिरोनी चाहिए. उनको लगता था कि लोग उन्हें बॉलीवुड का शोमैन तो कहते हैं, लेकिन उनके अंदर के दर्द, उनकी चाहतें, उनकी ख्वाहिशें शायद कोई ढंग से नहीं समझता.
June 2, 2017 6:58 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
मुंबई: राजकपूर की आज डैथ एनीवर्सरी है, 2 जून 1988 को उनकी मौत हो गई थी. लेकिन उससे पहले ही कहीं उन्हें लगने लगा था कि उन्हें अपनी जिंदगी एक मूवी में पिरोनी चाहिए. उनको लगता था कि लोग उन्हें बॉलीवुड का शोमैन तो कहते हैं, लेकिन उनके अंदर के दर्द, उनकी चाहतें, उनकी ख्वाहिशें शायद कोई ढंग से नहीं समझता.
उनको लगता था कि मैं तो लोगों का मनोरंजन करता रहता हूं लेकिन मेरे दिल में क्या चल रहा है, ये कोई नहीं जानता. वो अपनी हालत एक जोकर जैसी समझते थे, ऐसे में उन्हें ऑफर हुई एक ऐसी फिल्म, जिसमें उनका जोकर का रोल था, उस फिल्म ने उनका ये सपना पूरा कर दिया कि वो दिखा पाएंगे कि लोगों का मनोरंजन करते वक्त पर उन पर क्या बीत रही होती है. हालांकि वो फिल्म तो एक गाना और कुछ सींस शूट करके ही डब्बा बंद हो गई, लेकिन राज कपूर को दे गई है बड़ा आइडिया, मेरा नाम जोकर बनाने का.
जी हां मेरा नाम जोकर से भी पहले राज कपूर एक फिल्म में जोकर का रोल कर चुके थे. बस वो फिल्म कभी पूरी नहीं बन पाई और ना ही रिलीज हो पाई. इस फिल्म का नाम था बहुरूपिया, इस फिल्म में उनके साथ बैजयंती माला भी थीं. शंकर जयकिशन के म्यूजिक में रचा और मन्ना डे की आवाज में एक गाना जोकर के गैटअप में राज कपूर पर फिल्माया भी गया था, जो आज सोशल मीडिया पर उपलब्ध भी है. इस गाने को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर ये फिल्म बनती तो राजकपूर को कोई जरूरत ही नहीं थी मेरा नाम जोकर बनाने की. इस गाने के बोल हैं हंस कर हंसा…..
1965 में ही इस फिल्म के बारे में तय हो गया था कि ये बन नहीं पाएगी. लेकिन तब तक राज कपूर को लग चुका था कि यही एक ऐसी फिल्म है, जो उनकी कहानी और उनके दर्द को देश के सामने, उनके फैंस के सामने ला सकती है. वैसे भी राज कपूर को संगम के बाद एक सुपर डुपर हिट की तलाश थी. ऐसे में कि राज कपूर ने मेरा नाम जोकर का आइडिया उसी फिल्म से लिया, बहरूपिया और जोकर वैसे भी एक ही तरह के टाइटल थे. हालांकि बहरूपिया में वैजयंती माला थीं, लेकिन मेरा नाम जोकर में उन्होंने बैजयंती माला की जगह सिम्मी ग्रेवाल, पदमिनी और एक रूसी हीरोइन को कास्ट किया.
मेरा नाम जोकर का स्क्रीनप्ले लिखने का जिम्मा सौंपा उन्होंने ख्वाजा अहमद अब्बास को, जो कि अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी के डायरेक्टर थे. राज कपूर की ज्यादातर फिल्में उन्होंने ही लिखी थीं. मेरा नाम जोकर इतनी लम्बी हो गई थी कि उसमें दो इंटरवल रखने पड़े थे, कुल 255 मिनट की फिल्म थी वो. हालांकि बाद में उसके एडिट वर्जन भी जारी किए गए. फिल्म को बनाते बनाते ही 6 साल लग गए. इसी फिल्म से रिषि कपूर को लांच किया गया, राज कपूर के बचपन के रोल में, जो पहले शशि कपूर को मिलते थे.
मनोज कुमार, दारा सिंह और धर्मेन्द्र ने इस फिल्म में गेस्ट रोल्स किए. शुरू में मेरा नाम जोकर नहीं चली, राज कपूर काफी निराश हुए लेकिन वो बॉलीवुड की कालजयी फिल्मों में गिनी जाती है. 1980 में वो फिल्म फिर रिलीज हुई और सुपर डुपर हिट साबित हुई. लोग राज कपूर के याद करते हैं, तो इस फिल्म का गीत जीना यहां,..मरना यहां के बिना राज कपूर का सफर पूरा नहीं होता. हाल ही में जब मैडम तुसाद म्यूजियम के लिए दिल्ली के रीगल सिनेमा को बंद करने का फैसला लिया गया तो राजकपूर की जिन दो फिल्मों को आखिरी शोज के रूप में चलाने का फैसला किया गया वो थी संगम और मेरा नाम जोकर.
आप मेरा नाम जोकर की इंस्पिरेशन बहुरूपिया के इस गीत को इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं—